इसे विरोध प्रदर्शन कर रही महिलाओं के लिए बड़ी कामयाबी के रूप में देखा जा रहा है। वहां के अटार्नी जनरल मोहम्मद जफर मोंटेजेरी ने समाचार एजंसी ‘आइएसएनए’ को बताया कि नैतिकता पुलिस का न्यायपालिका से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए इसे खत्म किया जा रहा है।
मोंटेजेरी की टिप्पणी एक धार्मिक सम्मेलन में आई है, जहां उन्होंने एक प्रतिभागी को जवाब दिया जिसने पूछा था कि नैतिकता पुलिस को बंद क्यों किया जा रहा है? ईरान में नैतिकता पुलिस को औपचारिक रूप से ‘गश्त-ए इरशाद’ के रूप में जाना जाता है। वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने इस एजंसी का गठन ‘विनम्रता और हिजाब की संस्कृति को फैलाने’ के लिए किया था। ईरान में 16 सितंबर को 22 साल की छात्रा महसा अमिनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद हिजाब विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए थे। सरकार विरोधी प्रदर्शन में अब तक तीन सौ लोग मारे जा चुके हैं और हजारों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया है।
नैतिकता पुलिस उन लोगों और खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती रही है, जो देश के इस्लामी कानून के हिसाब से कपड़े नहीं पहनते या किसी भी तौर पर शरिया कानून को तोड़ते हैं। वहां राष्ट्रपति हसन रूहानी के दौर में लिबास को लेकर कुछ राहत दी गई थी। तब महिलाओं को ढीली जींस और रंगीन हिजाब पहनने की मंजूरी दी गई थी। जुलाई में जब इब्राहिम रईसी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने बहुत सख्ती से पुराना ही कानून लागू कर दिया।
गौरतलब है कि ईरान में 14 सितंबर को 22 साल की महिला महसा अमिनी की मौत पुलिस हिरासत में हो गई थी। ईरान की पुलिस ने महसा अमिनी को इसलिए हिरासत में लिया था, क्योंकि उन्होंने अपने सिर को नहीं ढका था। यानी हिजाब नहीं पहना था। ईरान में महिलाओं के लिए हिजाब एक जरूरी कानून है। महसा अमिनी की मौत के बाद पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ और हजारों महिला और पुरुष सड़कों पर उतर आए।
ईरान में वैसे तो हिजाब को 1979 में जरूरी करार दिया गया था। वर्ष 1979 से पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजाद ख्याल था। 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं। 1967 में ईरान के पर्सनल ला में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी के हक मिले। पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया।