महाराष्ट्र देश के अमीर राज्यों में से एक है। लेकिन, यहां पर भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक विषमताएं इस कदर हावी हैं कि ‘अमीर राज्य’ का खिताब कागजों पर ही अच्छा लगता है। राज्य के अधिकांश इलाके ऐसे हैं जहां पर सूखा और किसानों की बदहाली बाकी राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा है। मराठवाड़ा और विदर्भ के क्षेत्र लगातार सूखे और किसान आत्महत्याओं को लेकर चर्चा में रहे हैं। इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक मराठवाड़ा स्थित बीड़ जिले में सूखा पहले के मुकाबले काफी जल्दी अपना प्रकोप दिखाने लगा है। गांवों के तमाम तालाब और कुंए सूख चुके हैं। आदमी, मवेशी और किसानों के खेत बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। बीड़ जिले के कई गांवों में टैंकरों के जरिए पानी की सप्लाई की जा रही है। जहां लोगों को रोजाना घंटो लाइन में लेकर पानी लेना पड़ता है।
तीन साल पहले महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार ने कई गांवों में पंचायतों के साथ मिलकर कुंओं का निर्माण कराया था। लेकिन, वे सभी कुंए सूख चुके हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह कई सालों से सामान्य से काफी कम बारिश का होना है। बीड़ के सभी 11 तालुका सूखे की भयंकर चपेट में हैं। बीते तीन सालों में बारिश का अनुपात सामान्य से काफी कम रहा है। इसकी वजह से जमीन का पानी भी काफी नीचे चला गया है। सबसे बड़ी बात की इस जिले की करीब 80 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। मगर, व्यापक स्तर पर अभी तक कोई ऐसी ठोस योजना नहीं बन पाई है जिससे 80 फीसदी लोगों को सीधे पाइपलाइन के जरिए पानी मुहैया कराया जा सके।
अगर पूरे मराठवाड़ा क्षेत्र की बात करें तो यहां के 77 फीसदी किसानों की जमीन 5 एकड़ से ज्यादा नहीं है। इंडियास्पेंड की जुलाई 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां की प्रति व्यक्ति आय भी राष्ट्रीय आय की तुलना में 12,547 रुपये कम हैं। लगातार सूखे की वजह से किसानों के आत्महत्याओं की खबरें भी सुर्खियों में रही हैं। 2018 में यहां पर 125 किसानों ने खुदकुशी कर ली। पानी की कमी की वजह से बड़े किसानों ने रबी की फसल की बुवाई छोड़ दी। इलाके के लोग चीनी मीलों में काम करने के लिए बाध्य हैं। वैसे महाराष्ट्र का करीब 50 फीसदी हिस्सा पानी की कमी से जूझ रहा है। वहीं, इंडिया स्पेंड की एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत की 40 फीसदी जमीन पर सूखे का प्रभाव है। ऐसे में इसकी डायरेक्ट मार गांव-देहात और किसानों पर ही पड़ रही है।