क्या है पेस्ट एंड रोडेंट कंट्रोल: यह रेलेवे का नुकसान रोकने के लिए एक बड़ी पहल है। रेलवे बाहर की एजेंसी के द्वारा यह काम करवाती है। इसके तहत चूहे मारने के अलावा तिलचिट्टों, चींटियों, मच्छड़ों, दीमक व अन्य प्रकार के नुकसानदेह कीड़े-मकोड़ों से बचाव पर फोकस किया जाता है।
ऐसे किया गया रोडेंट कंट्रोल: पश्चिमी रेलेवेे नेे इस बात का पूरा ब्योरा दिया है कि पेस्ट एंड रोडेंट कंट्रोल के तहत क्या और कैसे किया गया। यह काम ट्रेनों, कोच डिपो, पिट लाइंस और यार्ड में किया गया।
कोच में ऐसे किया गया: फर्स्ट एसी के हर केबिन, कूपे, अटेंडेंट क्यूबिकल और बिजली कंट्रोल पैनल में एक-एक ग्लू बोर्ड रखा गया। अन्य एसी डिब्बे में प्रत्येक पैसेंजर कंपार्टमेंट में चार-चार और इलेक्ट्रिक कंट्रोल पैनल में एक-एक ग्लू बोर्ड रखा गया। छह ग्लू बोर्ड पैंट्री कार में भी रखे गए। आरक्षित गैर एसी कोचेज में भी हर पैसेंजर कंपार्टमेंट में चार-चार ग्लू बोर्ड रखे गए। चूहेदान रख कर भी चूहों को फंसाने की कोशिश की गई।
पिट लाइंस, कोच डिपो और यार्ड में ऐसे हुआ: यहां रोडेंट कंट्रोल के लिए सर्वे के बाद कदम उठाए गए। सर्वे यह जानने के लिए किया गया कि कहां कितना बड़ा बिल बनाया गया है। इन बिल को मिट्टी और पत्थर से भरा गया। इसके बाद केमिकल डाला गया। यह प्रक्रिया चार कोच डिपो में की गई। इन डिपो में 2000 कोचों का रखरखाव होता है। इनके अलावा यार्ड में भी 2,02,299.89 वर्ग मीटर क्षेत्र में यह काम किया गया।
इसके अलावा जहां जरूरी हुआ, वहां पेस्ट कंट्रोल के लिए भी छिड़काव किया गया। कोच में भी फॉगिंग की गई। तिलचट्टों की रोकथाम के लिए भी कदम उठाए गए।
रेलवे को चूहों से बड़ा नुकसान होता है। ये चूहे गोदामों में रखे सामान को नुकसान पहुंचाते हैं, तार काटकर बड़ी क्षति भी कर सकते हैं। कई बार ट्रेनों में भी चूहे दौड़ते-भागते दिखाई देते हैं और रेलवे को भरपाई करनी पड़ती है। ऐसे ही एक मामले में दूरंतो एक्सप्रेस में मुंबई से एरनाकुलम जा रहे एक वकील ने उपभोक्ता आयोग में शिकायत की थी तो मध्य रेलवे को उन्हें 19 हजार रुपए हर्जाना देने का आदेश सुनाया गया था।