कोरोना और ठंड के बीच LAC पर चीन से निपटने को भारत किस तरह है तैयार? जानें
भारतीय सैनिक सियाचिन में 21 हजार फीट, कारगिल में 14-15 हजार फीट और पूर्वी लद्दाख में 14-17 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात हैं।

सीमा विवाद के बीच भारत और चीन की सेनाएं सरहद पर आमने सामने हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC पर दोनों देशों के सुरक्षा बल एक दूसरे पर निगरानी रखे हुए हैं। पीछे हटने की आपसी सहमति नहीं बनने के कारण अब नई दिल्ली और बीजिंग के सैनिक कोरोना काल और कड़ाके की सर्दियों में भी वहीं जमे रहेंगे। सैनिकों की तैनाती पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल पीजेएस पन्नू ने बताया कि हमारे सैनिक सियाचिन में 21 हजार फीट, कारगिल में 14-15 हजार फीट और पूर्वी लद्दाख में 14-17 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात हैं। पीजेएस पन्नू ने 2016 से 2017 तक XIV कोर की कमान संभाली थी।
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल ने बताया कि सियाचिन और कारगिल दोनों जगह ऐसे पोस्ट हैं जहां बर्फबारी शुरू होते ही बाहरी दुनिया तक पहुंच नहीं होती। कारगिल क्षेत्र में 15 से 20 फीट तक बर्फ जम जाती है… जहां हिमस्खलन का खतरा अधिक है, पांच से छह महीने के लिए सैनिक लॉकडाउन की स्थिति में हैं। हालांकि इन परिस्थितियों निपटने की ट्रेनिंग हमारे सैनिकों को पहले से मिली है, मगर ये आसान नहीं होगा।
ऐसे इलाकों में सैन्य निगरानी के दौरान परेशानियों पर रिटायर्ड मेजर जनरल एपी सिंह बताते हैं कि इसमें पहला मौसम है, जहां बहुत ज्यादा ठंड और तेज रफ्तार से चलने वाली हवाएं शामिल हैं। दूसरा वहां का दुर्लभ वातावरण जहां ऑक्सीजन की कमी और ऊंचाई पर रहना मुश्किल काम है। तीसरा बेशक हमारे दुश्मन हैं। ये तीनों ही विश्वासघाती हैं। सिंह 2011 और 2013 के बीच LAC पर तैनात XIV कॉर्प्स के लिए रसद का नेतृत्व करते थे।।
उन्होंने बताया कि मैदानी इलाकों से यहां पहुंचने वाले सैनिकों के लिए पहली चुनौती ऑक्सीजन स्तर की व्यापक गिरावट है। ये 25 से 65 फीसदी तक हो सकती है। मगर इन इलाकों में तैनाती से पहले सैनिकों को दो सप्ताह से ज्यादा जलवायु के अनुकूल अभ्यास से गुजरना पड़ता है। इसमें पहले चरण में 9 से 12 हजार फीट की दूरी, दो दिन का आराम, चार दिन पैदल और थोड़ी चढ़ाई शामिल है। दूसरे चरण में 12 से 15 हजार फीट की ऊंचाई पर चलना, चढ़ना और थोड़ी दूरी तक भार ले जाना शामिल है। अगला चरण 15 हजार फीट या उससे ज्यादा का होता है। इसमें भी चलना और चढ़ने का रूटीन शामिल हैं। हालांकि इस चरण में सैनिकों को भार नहीं उठाना होता है।
आपातकालीन स्थिति में इस प्रक्रिया को चार दिन तक कम कर दिया जाता है। एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि हालांकि अभी ऐसी स्थिति नहीं है। उन्होंने बताया कि तुलनात्मक रूप से सियाचित में सैनिकों को 21 दिनों की ट्रेनिंग के बाद शामिल किया जाता है।
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