एक तरफ सारा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है, वहीं उनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक धड़े के रूप में उभरी फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष रही है। आर्थिक संकट, कई विभाजन और प्रबंधन की कमी की वजह से ये ऐतिहासिक पार्टी अपनी अंतिम सांसें ले रही है। पार्टी अब देश के कुछ हिस्सों तक सीमित है जिसका कोई सांसद या विधायक नहीं है।
सुभाष चंद्र बोस ने अप्रैल 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद, एक मंच के तहत वामपंथी और समाजवादी विचारधारा वाले नेताओं को मजबूत करने के लिए पार्टी के भीतर एक गुट बनाने का फैसला किया था। बोस को इसका पहला अध्यक्ष और एचवी कामथ को महासचिव चुना गया था। बाद में इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (एआईएफबी) कर दिया गया। संगठन ने पश्चिम बंगाल को अपना मुख्य गढ़ बनाए रखने के साथ ही तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और असम में अपनी चुनावी मौजूदगी स्थापित की थी।
इन वर्षों में, एआईएफबी अपनी स्वतंत्र पहचान खोते हुए माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे का एक घटक बन गई। राष्ट्रीय राजनीति में इसका मत प्रतिशत 2004 के 0.35 प्रतिशत से गिरकर 2019 के लोकसभा चुनाव में 0.05 प्रतिशत हो गया। बंगाल में यह गिरावट और तेज है। 2011 के 4.80 प्रतिशत से घटकर 2021 के विधानसभा चुनाव में महज 0.53 प्रतिशत रह गई। वर्तमान में, पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में एआईएफबी के कुछ चुनिंदा पंचायत सदस्य हैं।
एआईएफबी के महासचिव देवब्रत बिस्वास का कहना है कि यह सच है कि हम गहरे संकट का सामना कर रहे हैं। अब हमारी पार्टी का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक भी सांसद या विधायक नहीं है। सदस्यों की संख्या भी बीते वर्षों में घटी है। हम अब पुनरुद्धार की रणनीति पर चर्चा कर रहे हैं।
#WATCH | It was not Gandhi's peace movement that brought independence to India.The activities of Azad Hind Fauj and Netaji brought independence to this country and it was admitted by the then PM of England, Clement Richard Attlee: Ardhendu Bose, #NetajiSubhashChandraBose's nephew pic.twitter.com/9HGn4IbeOi
— ANI (@ANI) January 23, 2022
एटली ने भी माना कि आजादी नेताजी की वजह से मिली
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भतीजे अरदेंदु घोष का कहना है कि ब्रिटेन के तत्कालीन पीएम रिचर्ड एटली भी मानते थे कि भारत को आजादी महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन के चलते नहीं बल्कि नेताजी जी की आजाद हिंद फौज की वजह से मिली। अंग्रेस सरकार नेताजी के तेवरों से बैकफुट पर आ गई थी।