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मुलायम ही नहीं रहे तो केस में क्या बचा, CJI बोले तो हुआ अखिलेश और प्रतीक का जिक्र, SC ने पूछा- छह साल बाद क्यों आए

सीबीआई ने 2019 में शीर्ष अदालत को बताया था कि मुलायम और उनके दो बेटों- अखिलेश और प्रतीक के खिलाफ संज्ञेय अपराध होने का “प्रथम दृष्टया कोई सबूत” नहीं मिला था, इसलिए प्रारंभिक जांच (PE) को FIR में नहीं बदला गया था।

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Mulayam Singh Yadav: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव। (फाइल फोटो)

आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जांच बंद करने की सीबीआई की रिपोर्ट की कॉपी की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने पूछा कि छह साल बाद याचिका दायर करने का क्या मतलब है। अदालत का कहना था कि मुलायम सिंह यादव ही नहीं रहे तो फिर केस में क्या बचा। याचिकाकर्ता ने अखिलेश और प्रतीक का जिक्र किया। कोर्ट ने उलटा सवाल दागा कि सीबीआई ने मामला बंद करने का फैसला 2013 में किया। आपने 2019 में याचिका दायर की। छह साल तक क्या करते रहे थे।

सीबीआई ने 2019 में शीर्ष अदालत को बताया था कि मुलायम और उनके दो बेटों- अखिलेश और प्रतीक के खिलाफ संज्ञेय अपराध होने का “प्रथम दृष्टया कोई सबूत” नहीं मिला था, इसलिए प्रारंभिक जांच (PE) को FIR में नहीं बदला गया था। सात अगस्त 2013 के बाद मामले में कोई जांच नहीं हुई थी।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि एक मार्च 2007 और 13 दिसंबर 2012 के फैसले के बाद से सीबीआई ने सात अगस्त, 2013 को अपनी प्रारंभिक जांच बंद कर दी और आठ अक्टूबर 2013 को अपनी रिपोर्ट सीवीसी को सौंपी। यह याचिका छह साल बाद 2019 में दाखिल की गई है। आवेदन में कोई दम नहीं है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है।

शीर्ष अदालत ने बताया कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन हो चुका है। बेंच ने याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी से पूछा कि मामले में क्या बचा है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मुलायम के खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई है, लेकिन आरोप उनके बेटों-अखिलेश और प्रतीक के खिलाफ भी हैं।

अखिलेश और प्रतीक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि सीबीआई ने प्रारंभिक जांच करने के बाद क्लोजर रिपोर्ट दायर की और कहा कि नियमित मामला दर्ज करने के लिए कोई औचित्य नहीं बनता है। चतुर्वेदी के वकील ने तर्क दिया कि उन्होंने सीवीसी के समक्ष एक आरटीआई आवेदन दायर किया था। उन्हें सूचित किया गया था कि सीबीआई ने ऐसी कोई क्लोजर रिपोर्ट दायर नहीं की थी।

जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि क्लोजर रिपोर्ट 2013 में दायर की गई थी और याचिकाकर्ता ने 2019 में अपनी याचिका दायर की थी। उन्होंने पूछा कि हमें बताए कि इतने वर्षों के बाद हम इस आवेदन पर कैसे विचार कर सकते हैं। वकील ने कहा कि जब एक संज्ञेय अपराध प्रथम दृष्टया बनता है तो शिकायतकर्ता को क्लोजर रिपोर्ट की प्रति प्रदान की जानी चाहिए। बेंच ने जवाब दिया कि वह क्लोजर रिपोर्ट की प्रति के लिए आवेदन पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है।

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First published on: 13-03-2023 at 18:46 IST
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