इंडियन एक्सप्रेस के रामनाथ गोयनका अवार्ड समारोह में पहुंचे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने इमरजेंसी के दौरान का एक किस्सा सुनाया। वो बोले कि 1977 में उनकी उम्र 16 साल की थी। तब उन्होंने देखा कि चुप रहकर कैसे अपनी ताकत उसी तरह से दिखाई जा सकती है जैसे कि बोलकर। उन्होंने उस वाकये का जिक्र किया जिसमें इंडियन एक्सप्रेस ने अपना एडिटोरियल पेज खाली छोड़कर विरोध जताया था।
सीजेआई ने कहा कि इमरजेंसी एक भयावह दौर था। 1980 में सरकार ने इंडियन एक्सप्रेस पर निशाना साधने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। ग्रुप को नोटिस तक दिया गया। पुलिस ही नहीं तमाम दूसरे तरीके भी अखबार की आवाज को दबाने के लिए अमल में लाए गए। लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने दिखाया कि भय मुक्त पत्रकारिता कैसे होती है।
कानून और पत्रकारिता में दिखती है कलम की ताकत
सीजेआई ने कानून और पत्रकारिता का जिक्र कर कहा कि दोनों ही पेशों में दिखता है कि कलम की ताकत क्या होती है। दोनों जगह बताया जाता है कि कलम की ताकत तलवार से ज्यादा धारदार होती है। दोनों ही पेशों में दुश्वारियों भी काफी आती हैं। लेकिन लोग इन्हें पसंद नहीं करते हैं। उनका कहना था कि पत्रकार दुरूह मसलों पर काम करके उन्हें आसान बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन उन्हें देखना होगा कि इस सारी कवायद में एक्यूरेसी पर असर न पड़े। उनका कहना था कि पत्रकार का काम अव्यवस्था को खत्म करने का होता है। इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक शेखर गुप्ता का जिक्र कर वो बोले कि मेरा मानना है कि वो मेरी बात से जरूर सहमत होंगे।
चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्य की अवधारणा में मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है। ये एक ऐसी संस्था है जो सत्ता से सवाल पूछ सकती है। लेकिन लोकतंत्र को धक्का तब लगता है जब मीडिया को उसका काम करने से रोका जाता है। मीडिया करंट इश्यूज को शेप देता है। MEETOO मूवमेंट का जिक्र कर उन्होंने कहा कि इस दौरान कई जानीमानी शख्सियतों पर यौन शोषण के आरोप लगे। पूरी दुनिया में इसका असर देखने को मिला था।
लोकतंत्र को बहाल रखना है तो मीडिया को उसका काम करने देना होगा
सीजेआई ने कहा कि लोकतंत्र को बहाल रखना है तो मीडिया को उसका काम करने देना होगा। भारत में अलग-अलग तरह के समाचार पत्र हैं। आजादी से पहले इन्हें समाज सेवियों के जरिये चलाया जाता था। उन्होंने लोगों को उनके अधिकार बताए। उस समय के अखबार हमें तब की सही स्थिति की जानकारी मुहैया कराते हैं। उनका कहना था कि पत्रकार तमाम तरह की मुश्किलें झेलकर काम करते हैं। वो कई बार ऐसे तरीके भी अपनाते हैं जिनसे वो खुद या फिर आम लोग सहमत नहीं होंगे। लेकिन ये असहमति घृणा नहीं बननी चाहिए। इससे हिंसा जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।
चंद्रचूड़ ने कहा कि 1982 में LLM की डिग्री पूरी करने के लिए वो अमेरिका जा रहे थे। उसी दिन कलर टीवी भी लॉन्च हुआ था। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि मीडिया तब तक सरवाइव करेगी जब तक वो सत्ता से सच को लेकर सवाल पूछती रहेगी। उनका कहना था कि पहले के दौर में मीडिया के पास ज्यादा स्पेस था और लोगों के पास कम। लेकिन सोशल मीडिया के आने से लोगों के पास ज्यादा स्पेस है और मीडिया के पास कम। उनका कहना था कि लेकिन खोजी पत्रकारिता की जगह इस दौर में भी कोई नहीं ले सकता।
कोविड के दौरान मीडिया ने बताया सच
उन्होंने लोकल मीडिया की महत्ता बताते हुए कहा कि जिन लोगों को नेशनल अखबार कवर नहीं करते उनकी आवाज को लोकल मीडिया उठाता है। कोविड के समय में मीडिया काफी असरदार दिखा। उनका कहना था कि मीडिया ने एडमिनिस्ट्रेशन को झकझोरने का काम किया है। गुजरात के वाकये का जिक्र करते हुए वो बोले कि कोविड के दौरान मरीजों को केवल 108 एंबुलेंस में आने के लिए बोला गया था। हमें मीडिया के जरिये सच का पता चला और फिर स्वतः संज्ञान लेकर एक्शन हुआ।