लीथियम के बिना बिजली से चलने वाले वाहन चलाना संभव नहीं है। यूरोप में ई-वाहनों पर शोध तो हो रहा है, लेकिन लीथियम की लंबे समय तक उपलब्धता एक बड़ा सवाल है। यूरोप अपने पास पर्याप्त भंडार होने का बावजूद लैटिन अमेरिका से लीथियम आयात कर रहा है। हालांकि, वहां से लीथियम मंगवाना खर्चीला साबित हो रहा है। इनके अलावा, इसके पुनर्चक्रीकरण (रीसाइक्लिंग) में काफी मात्रा में ऊर्जा और रसायन खप रहे हैं। क्या लीथियम हासिल करने के कोई और रास्ते भी हैं?
प्रकृति में पाया जाने वाला लीथियम हमेशा शुद्धतम रूप में उपलब्ध नहीं होता। यह अन्य तत्वों से जुड़ा होता है। ऐसा इसमें इलेक्ट्रोन की स्थिति के चलते होता है। इसमें एक इलेक्ट्रान की जगह खाली होती है जिसे यह केमिकल बांड बनाने के लिए आसानी से छोड़ देता है। लीथियम को इन पदार्थों से अलग कर पाना आमतौर पर एक जटिल प्रक्रिया है।
लैटिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। इस इलाके में दुनिया का आधे से ज्यादा लीथियम भंडार मौजूद है। यहां यह खारे पानी की झीलों की सफेद परत के नीचे नमक के साथ मिला होता है। झील से पानी निकालकर उसे वाष्पित होने दिया जाता है। इस तरह, पानी उड़ जाता है और लीथियम संपन्न पदार्थ बच जाता है। फिर लीथियम को अलग करने के लिए रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से कुछ रसायन जहरीले होते हैं।
इसके अलावा जब खारे पानी को झील से निकाला जाता है तो यह भूजल को भी खींच लेता है, जो यहां के शुष्क इलाके में बड़ी समस्या है। मध्यम श्रेणी की एक इलेक्ट्रिक कार की बैटरी बनाने के लिए तीन से 12 हजार लीटर पानी खर्च हो जाता है। जानकार मानते हैं कि भूजल का बेतरतीब दोहन इन लीथियम संपन्न इलाकों को रेगिस्तान में तबदील कर सकता है। यह हमारी बैटरियों के लिए बहुत बड़ी कीमत है।
पुर्तगाल के पास इतना लीथियम है कि पूरे यूरोप की मांग पूरी कर सके। बहरहाल, यूरोप में भी संरक्षणवादी लीथियम खनन के प्रभावों को लेकर चिंतित हैं। पुर्तगाल के उत्तरी इलाके में बसे बारोसो में जल्द ही बड़े पैमाने पर खनन शुरू हो जाएगा, लेकिन बारोसो इलाके के लोग अपनी जमीन को लेकर चिंतित हैं। लीथियम को लेकर किसानों से मिली जानकारी के आधार पर विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं।
जानकारों के मुताबिक, खदान घरों से 200 मीटर की दूरी पर होती है। यह पानी को बर्बाद कर सकती है और मैदानों की ताजा घास-झाड़ियां धूल से अट जाएंगी, बर्बाद हो जाएंगी। किसानों को डर है कि उनकी जमीन पहले की तरह अच्छी नहीं रहेगी। जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही मर्सिडीज, आडी, वोक्सवैगन और बीएमडब्ल्यू जैसी दिग्गज आटोमोबाइल कंपनियों का घर भी है।
ये कंपनियां धीरे-धीरे बाजार में नए इलेक्ट्रिक माडल ला रही हैं। लीथियम की मांग को पूरा करने के लिए जर्मनी नए रास्ते तलाशने में जुटा है। एक अनुमान के मुताबिक, जर्मनी में 27 लाख टन लीथियम है। यह मात्रा पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा है। यूरोपीय संघ के बहुत से अन्य सदस्यों के पास भी लीथियम के भंडार हैं, लेकिन या तो खनन मुश्किल है या बहुत ज्यादा खर्चीला। ऐसे में वैज्ञानिक जियोथर्मल शक्ति का इस्तेमाल बिजली और लीथियम, दोनों के लिए करना चाहते हैं। जर्मनी के लीथियम भंडार राइन नदी के हजारों मीटर नीचे दबे हैं, खौलते पानी के सोतों में। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लीथियम निकालने में जियोथर्मल बिजली काम आ सकती है।
आइडिया ये है कि अत्यधिक गहराई में मौजूद गर्म पानी को हीटिंग और बिजली के लिए निकाला जाए। तभी लीथियम भी निकाल लिया जाए। वुलकान एनर्जी रिसोर्सेस के महानिदेशक डा डार्स्ट क्रायटर कहते हैं, अपर राइन घाटी में जो लीथियम हम तैयार कर रहे हैं, वो पूरी तरह कार्बन डायआक्साइड मुक्त है। आस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका के लीथियम की तरह नहीं, जो लंबे ट्रांसपोर्ट रूट और उत्पादन तकनीक की वजह से बहुत सा कार्बन डायआक्साइड उत्सर्जित करता है।