इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने एक लेख में राय देते हुए कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद की रेस में नरेंद्र मोदी को पछाड़ नहीं सकते हैं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी दो बार नरेंद्र मोदी को चुनौती देने में विफल रहे, ऐसे में क्या वो तीसरे कोशिश में सफल हो सकते हैं। हाल के सर्वे में पता चला है कि कांग्रेस नेता ऐसा करने में सफल नहीं हो सकते। सर्वे में मतदाताओं से अपने पसंदीदा प्रधानमंत्री को चुनने के लिए कहा गया। इममें नरेंद्र मोदी को 66 फीसदी लोगों ने पसंद किया जबकि राहुल गांधी महज 8 फीसदी लोगों की पसंद थे।
पीएम पद की रेस में राहुल के मोदी से पीछे रहने के इतिहासकार ने कई कारण भी बताए हैं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के बारे में सबसे अच्छी बात ये है कि वो नेकनीयत वाले शख्स हैं। मगर उनमें प्रशासनिक क्षमता का कोई संकेत नहीं दिखता। उनमें बड़ा पद लेने की कोई इच्छा नहीं है। महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां और कभी सामाजिक समस्याएं हल करने की प्रतिबंद्धता नहीं दिखती।
लेख में कहा गया कि राहुल गांधी के बारे में कहा जाता है कि वो धाराप्रवाह हिंदी बोलने में असमर्थता के बावजूद यूपी से तीन बार सांसद रहे। एक बड़ी आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषा में उनकी कमी निश्चित रूप से एक कारण है कि उन्होंने 2014 से 2019 के आम चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करते हुए बहुत खराब प्रदर्शन किया।
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रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि राहुल गांधी पूर्व प्रधानमंत्रियों के बेटे, पोते और परपोते हैं, जो कि अधिकतर भारतीयों की नजर में लाभदायक पक्ष नहीं है। राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस जब प्रधानमंत्री और उनकी सरकार पर प्रेस को दबाने और असंतोष फैलाने का आरोप लगाती है तो सत्तापक्ष के पास सहज जवाब होता है: इंदिरा गांधी और उनके आपातकाल के बारे में कांग्रेस क्या कहेगी? इसी तरह कांग्रेस भारतीय क्षेत्र में चीनी सैनिकों के दाखिल होने पर पीएम मोदी को घेरती है तो सत्तारूढ़ पार्टी का सहज जवाब होता है: 1962 में जवाहरलाल नेहरू की चीन के प्रति शिष्टता के बारे में कांग्रेस क्या कहेगी?
इतिहासकार कहते हैं कि 2019 में वापस लौटते हैं जब राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत ईमानदारी को पार्टी के चुनावी अभियान में मुख्य मुद्दा बनाते हुए ‘चौकीदार चोर है’ नारा दिया। ये खराब समीक्षा थी। कांग्रेस को इसके बजाय लगातार पूछते रहना चाहिए था कि 2014 में अच्छे दिन का वादा कहां है।
लेख में कहा गया कि राहुल गांधी पिछले 16 सालों से सार्वजनिक जीवन में हैं और राजनीति में उनके करियर का आकलन उन लक्षणों को उजागर करेगा जो उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में अनुपयुक्त बनाते हैं। जैसे- चुनाव अभियानों में गलत नारों और विषयों को चुनने के रूप में उनके पास राजनीतिक बुद्धिमत्ता का अभाव है। राहुल गांधी सामान्य रूप से एक उदासीन वक्ता हैं और विशेष रूप से भारत में सबसे अधिक समझी जाने वाली भाषा हिंदी में। उनके पास प्रशासनिक अनुभव का अभाव है। हफ्तों तक लगातार सार्वजनिक मंच से गायब रहने के अलावा उनमें सहनशक्ति और तप का अभाव है।