इस वजह से हिमालयी क्षेत्रों में हिमनदों, हिम नद झीलों और संभावित हिमनद झीलों के फटने से बाढ़ की घटनाएं बढ़ी हैं। इस स्थिति से भविष्य में निपटने के लिए जल शक्ति मंत्रालय की विशेष समिति ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है। इसके तहत ग्लेशियर को बचाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन होना चाहिए और हिमालय क्षेत्र की निगरानी को बढ़ाना चाहिए।
इन पहल से इन प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने का रास्ता निकाला जा सकेगा। यह रपट हाल ही में लोकसभा के पटल पर पेश की गई है। रपट जल शक्ति मंत्रालय की जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग ने तैयार की है और समिति के सभापति परबतभाई सवाभाई पटेल ने लोकसभा के पटल पर इसे पेश किया गया है। समिति ने केंद्र सरकार को सिफारिश की है कि एक पृथक समर्पित पर्वत संकट और अनुसंधान संस्थान की स्थापना की जानी चाहिए ताकि इस जगह का एक विस्तृत डाटा आंकलन उपलब्ध हो और पूर्व चेतावनी की व्यवस्थाओं को लागू किया जा सके।
इसके अतिरिक्त हिमनद अनुसंधान के लिए पर्याप्त बजटीय आबंटन किए जाने की आवश्यकता है, इसकी मदद से धन की कमी से अनुसंधान संबंधित गतिविधियों को रोकने बचा सकेगा। समिति में लोकसभा व राज्यसभा के कुल 31 सदस्य शामिल थे। समिति ने बताया कि उसे भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) ने बताया कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र में 9775 हिमनद है। इसके अलावा कुल 1306.1 घन किमी बर्फ की मात्रा सिंधु, गंगा, और ब्रह्मपुत्र के हिमनदित घाटियों में संरक्षित है। हालांकि सरकार के पास अलग से बर्फ और बर्फ के पानी की मात्रा उपलब्ध नहीं है।
ग्लेशियर पिघलने की मुख्य वजह हिमालयी काराकोरम क्षेत्र का गर्म होना : समिति ने रिपोर्ट में बताया है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने जानकारी दी है कि हिमालयी काराकोरम क्षेत्र वैश्विक औसत से 0.5 डिग्री सेल्सियस की दर से गर्म हो रहा है। जिससे वर्षा और हिमपात की घटनाओं से बुनियादी ढांचे को भी नुकसान होगा।