सभी पूर्व निर्धारित मरीजों की कार्डियक सर्जरी नहीं हो पा रही है, जबकि प्रतीक्षा सूची चार साल लंबी है। इससे मरीजों में बेचैनी और परेशानी बढ़ रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती मरीज रोशन (बदला नाम) के परिजनों ने बताया कि उनके मरीज की बाइपास सर्जरी होनी है। रात से तैयारी थी कि आपरेशन होगा। सुबह से खाली पेट रखा था ओटी में ले भी गए। लेकिन बाद में उन्हें वापस वार्ड में भेज दिया गया यह कह कर कि आज ‘आक्जीजनेटर’ नहीं आ पाया है तो आपरेशन नहीं हो पाएगा। उन्हीं के साथ खड़े एक अन्य मरीज मुकेश (बदला नाम) के भाई ने बताया कि उनके मरीज को भी एक हफ्ते में दूसरी बार निराश होना पड़ा।
उन्होंने बताया कि उन्हें भी यही वजह बताई गई है। एक अन्य महिला मरीज सुजाता (बदला नाम ) के पति ने भी बताया कि उनके मरीज को भी आपरेशन की तैयारी के बाद भी आपेरशन नहीं हो पाने की समस्या से गुजरना पड़ा। उन्होंने बताया कि एक बार तो कहा गया कि कोई इमरजंसी का मरीज आ गया था इसलिए उसका आपरेशन पहले करना पड़ा।
सुजाता के पति ने बताया कि पहले तो भर्ती के लिए ही बिस्तर नहीं मिल रहा था क्योंकि पहले से भर्ती मरीजों को भी यह मशीन न होने के वजह से आपरेशन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा था। जब उनके आपरेशन हुए बिस्तर खाली हुआ तब जाकर हमारे मरीज को भर्ती करने को बिस्तर मिला। मरीजों ने बताया कि दिक्कत करीब तीन महीने से है। एम्स के हृदय वक्ष तंत्रिका केंद्र (सीएन सेंटर) में भी मरीजों का तांता लगा रहता है। एक सूत्र के मुताबिक रोजाना ओपीडी में जितने मरीज आते हैं उनमें से करीब 30 या 40 मरीज को सर्जरी के लिए भेजा जाता है। लेकिन करीब तीन महीने से यहां आपरेशन में भारी गतिरोध है।
सिर्फ हो रहे दो से तीन आपरेशन : यहां कुल आठ ओटी है जिनमें रोजाना करीब 15 मरीजों के बाइपास आपरेशन हो जाते थे। लेकिन इस वक्त करीब दो से तीन मरीजों के ही आपरेशन हो पा रहे हैं। क्योंकि बाइपास सर्जरी में उपयोग की जाने वाली आक्सीजनेटर मशीन की सही से आपूर्ति नहीं हो पा रही है। किसी तरह दो से तीन आक्सीजनेटर ही आ पाता है। इसमें भी बच्चों को प्राथमिकता दी जाती है।
कंपनी नहीं कर रही आपूर्ति : मशीन की आपूर्ति न हो पाने के पीछे दिक्कत इसकी कीमतों को लेकर है। जिस कंपनी को इसकी निविदा करीब चार-पांच साल पहले दी गई है वह अब करीब नौ हजार रुपए प्रति मशीन देने में असमर्थता जता रही है। अब इसकी कीमत करीब 16 हजार हो गई हैं। जानकारों का कहना है कि कंपनी पर दबाव बनाना चाहिए और उसे काली सूची में डालकर नई खरीद प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए।