मोदी सरकार ने किया टैक्स फ्री, पर बस पांच पैसे सस्ता होगा सैनिटरी पैड!
महिला अधिकार संगठनों ने इसे कम करवाने के लिए करीब साल भर आंदोलन चलाया था। शनिवार (21 जुलाई) को आयोजित हुई जीएसटी काउंसिल की 28वीं बैठक में सैनिटरी पैड से कर हटाने का फैसला लिया गया।

जीएसटी काउंसिल ने अपनी 28वीं बैठक में सैनिटरी पैड को करमुक्त करने का फैसला लिया था। लेकिन इकॉनामिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पैड निर्माता कंपनियों और कर विशेषज्ञों का मानना है कि इससे मशहूर ब्रांड की कीमतों में कोई विशेष अंतर नहीं आएगा। इससे पहले सैनिटरी पैड पर सरकार ने 12% की दर से टैक्स लगाया था, महिला अधिकार संगठनों ने इसे कम करवाने के लिए करीब साल भर आंदोलन चलाया था। शनिवार (21 जुलाई) को आयोजित हुई जीएसटी काउंसिल की 28वीं बैठक में इन उत्पादों से कर हटाने का फैसला लिया गया। इससे पैड पर लगे टैक्स को हटाने के लिए आंदोलनरत संगठनों को आभासी जीत का आभास हुआ है। जबकि पैड निर्माताओं का मानना है कि ग्राहकों को सैनिटरी पैड से टैक्स हटने का बहुत अधिक लाभ नहीं होगा।

ग्राहकाें को नहीं मिलेगी बड़ी राहत: सुहानी मोहन, सस्ते सैनिटरी पैड बनाने वाली कंपनी सरल डिजाइन की संस्थापक हैं। सुहानी मोहन ने इकॉनामिक टाइम्स से बात करते हुए कहा,”मेरा मानना है कि ग्राहक को सैनिटरी पैड टैक्स मुक्त होने से बहुत ज्यादा लाभ नहीं होगा। ग्राहक जब 10 पैड का पैक खरीदेगा तब उसे सिर्फ 5 पैसे की बचत होगी। निर्माता पैड बनाने पर लगने वाले कच्चे माल की खरीद में जीएसटी चुका रहे हैं। कीमतों में बड़ा अंतर सिर्फ ऐसी हालत में ही हासिल किया जा सकता है, जब पैड बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल पर भी जीएसटी की दरें कम की जाएं।”
क्या चाहती हैं कंंपनियां? : भारत में सैनिटरी पैड का कारोबार करीब 4,500 करोड़ रुपये का है। ये हालात तब हैं जबकि करीब 80 फीसदी भारतीय महिलाएं पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं। लेकिन जिस तरह से पैड के ऊपर जीएसटी हटाने का फैसला किया गया है। इससे पैड का कारोबार करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को जरूर सक्रिय कर दिया है। अब कंपनियां सरकार पर दबाव बना रही हैं कि वह उन्हें कच्चे माल की खरीद पर लगने वाले टैक्स से राहत दे। ईटी से बातचीत में कारोबारी के प्रतिनिधि ने कहा, पैड निर्माता सरकार से प्रति पैड .3 पैसा कर वापसी की मांग कर रहे हैं, जबकि प्रति पैड कुल लागत 2.30 पैसे है।
तस्वीर का दूसरा पहलू : लेकिन इस मांग का दूसरा चेहरा भी है, जिसके कारण ये मांग किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है। बहुराष्ट्रीय निर्माता कंपनियों जैसे जॉनसन एंड जॉनसन को भारतीय बाजार में उत्पाद बेचने और ब्रांड का इस्तेमाल करने के लिए अपनी पैतृक कंपनियों को रॉयल्टी देनी पड़ती है। कंपनियों का ये काम जीएसटी के 18% वाले टैक्स क्षेत्र के दायरे में आता है। कंपनियां चाहती हैं कि इसे भी पैड की मूल कीमत से जुड़ा हुआ मान लिया जाए।
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