रमज़ान के महीने के दौरान इफ्तार पार्टियां जो कभी भारत के राजनीतिक कैलेंडर में एक फिक्स डेट थी, वो अब धीरे-धीरे गायब हो रही है। एक समय था जब इफ्तार पार्टियों में शामिल हो रहें अतिथियों के मायने निकाले जाते थे। माना जाता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 7 जंतर मंतर रोड पर अपने करीबी मुस्लिम दोस्तों के लिए इफ्तार की मेजबानी की थी, जो तब कांग्रेस मुख्यालय था। उसी के बाद से इफ्तार पार्टी का चलन शुरू हुआ।
हालांकि जवाहरलाल नेहरू के उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री ने इस प्रथा को बंद कर दिया। लेकिन इंदिरा गांधी जिन्हें अपने मुस्लिम समर्थन आधार को बरकरार रखने के लिए फिर से इसे शुरू करने की सलाह दी गई थी उन्होंने फिर से शुरू किया, जो बाद में उनके उत्तराधिकारियों द्वारा जारी रखा गया। इफ्तार न केवल राजनीतिक खेल कौशल का प्रतीक बन गया बल्कि मुस्लिम नेताओं और पूरे समुदाय के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक पहुंच का प्रतीक बन गया।
उत्तर प्रदेश में पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा ने इफ्तार को आधिकारिक कार्यक्रम बनाया। बाद में ये एक ऐसी प्रथा बन गई जिसे उनके उत्तराधिकारियों द्वारा और भी अधिक उत्साह के साथ जारी रखा गया। इनमें मुलायम सिंह यादव, मायावती, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह और अखिलेश यादव शामिल थे। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दशकों पुरानी परंपरा को तोड़ा। उन्होंने पहले ‘कन्या पूजन’ का आयोजन किया है और नवरात्रि उपवास के दौरान अपने आधिकारिक सीएम आवास पर ‘फलाहारी दावत’ की मेजबानी की। 2017 में राज्य की बागडोर संभालने के बाद से योगी आदित्यनाथ ने कभी भी रोजा इफ्तार की मेजबानी नहीं की है।
हालांकि भाजपा कभी भी इफ्तार पार्टी के खिलाफ नहीं थी। 2019 के अंत तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने राजभवन में एक इफ्तार आयोजित किया, हालांकि सीएम योगी कभी भी उसमें शामिल नहीं हुए।
अटल बिहारी वाजपेई भी इफ्तार पार्टी का आयोजन करते रहें। उस समय कैबिनेट मंत्री रहे शाहनवाज हुसैन इसके मुख्य कर्ताधर्ता होते थें। हुसैन का कहना है कि मुरली मनोहर जोशी ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में भाजपा की पहली आधिकारिक इफ्तार पार्टी आयोजित की थी। शाहनवाज हुसैन ने याद करते हुए इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि, “प्रधानमंत्री के रूप में अटलजी ने इसे दो बार आयोजित किया और फिर उन्होंने सुझाव दिया कि मैं इसकी मेजबानी करूं जिसमें सभी प्रमुख हस्तियों को आमंत्रित किया जाए और वह भी इसमें शामिल होंगे।”
राष्ट्रपति भवन ने भी इफ्तार पार्टियों का आयोजन किया। बाद में एपीजे अब्दुल कलाम के कार्यकाल के दौरान इसे बंद कर दिया गया था। उन्होंने इस पर खर्च होने वाले पैसों को अनाथालयों के लिए भोजन, कपड़े और कंबल पर खर्च करने का फैसला किया था। बाद में प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी ने इसे फिर से शुरू किया। पीएम मोदी ने कभी राष्ट्रपति भवन में प्रणब मुखर्जी के इफ्तार में हिस्सा नहीं लिया। 2017 में राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी के अंतिम वर्ष में मोदी मंत्रिमंडल का कोई भी मंत्री राष्ट्रपति भवन में इफ्तार का हिस्सा नहीं था।
हालांकि इफ्तार एक सांकेतिक इशारा था अल्पसंख्यक समुदाय तक पहुँच बढ़ाने का और राजनीतिक दल इसमें एक बड़ा सन्देश देखते थे। लेकिन अब इफ्तार पार्टियों के गायब होने से पता चलता है कि वक्त और राजनीतिक परिस्थितयां बदल गईं हैं।