कोरोनावायरस महामारी की वजह से पिछले करीब 6 महीनों में देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है। केंद्र सरकार लगातार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अलग-अलग स्तर पर कोशिशें कर रही है। मसलन लॉकडाउन खोलने से लेकर अलग-अलग सेवाओं को दोबारा खुलने की छूट देकर डिमांड और सप्लाई में आई दरार दो दोबारा पाटने की कोशिश की जा रही है। इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रोत्साहन पैकेज की भी घोषणा की थी। हाल ही में वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था के लिए ऐसा ही पैकेज भविष्य में फिर लाने की बात कही थी। हालांकि, उनका यह ऐलान अब तक जमीन पर नहीं आ पाया है और इससे नीति आयोग जैसे विशेषज्ञ संस्थानों में भी बैचेनी बढ़ रही है।

बताया गया है कि केंद्र की ओर से राहत पैकेज की घोषणा में देरी से प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति (EAC), मुख्य आर्थिक सलाहकार कार्यालय (CEA) और नीति आयोग जैसे विशेषज्ञ संस्थानों में चिंता बढ़ी है। इन संस्थानों में कई नीति विशेषज्ञ केंद्र सरकार के खर्च से बचने के तरीके से नाराज हैं। खासकर तब जब सरकार में भी इस बात को लेकर सर्वसम्मति है कि अभी या कुछ देर से, लेकिन प्रोत्साहन पैकेज देने से भारत कृषि और श्रम क्षेत्र में हुए बड़े सुधारों का फायदा उठा सकता है।

बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून के अंत से लेकर जुलाई की शुरुआत तक 10 दिनों में कम से कम चार बैठकों में हिस्सा लिया। इनमें EAC, CEA कार्यालय और नीति आयोग के वरिष्ठ अफसरों की तरफ से प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय के सामने प्रेजेंटेशन दिखाई गईं। बैठक में दो चीजों पर सर्वसम्मति थी कि सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखने के लिए खर्चों को बढ़ाना चाहिए और दूसरा की वित्त क्षेत्र में सुधारों को जगह देनी चाहिए। वह भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हिस्सेदारी की बिक्री कर के।

इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल, रविशंकर प्रसाद और गजेंद्र सिंह शेखावत शामिल थे। बैठक में मौजूद एक अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि मीटिंग का लक्ष्य साफ था कि पीएम मोदी अपने कैबिनेट में ही खर्चों को लेकर आम सहमति बना रहे थे।

इन्फ्रास्ट्रक्चर और हेल्थकेयर प्रोजेक्ट्स को शुरू करने की योजना: मीटिंग में एक्सपर्ट्स की तरफ से जो प्रमुख विचार पेश किए गए, उनमें कामगारों को मिलने वाली दिहाड़ी में सब्सिडी, देश के 700 जिलों में प्रत्येक में हजार से ज्यादा घर; जिन जिला ब्लॉक में अस्पताल नहीं, वहां 100 बेड्स के अस्पताल और छह महीने की शहरी रोजगार गारंटी योजना। सूत्रों के मुताबिक, इन प्रस्तावों का मुख्य उद्देश्य मंदी का सामना कर रही अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने पर ही था, क्योंकि हालिया समय में देश में कोरोनावायरस और लॉकडाउन की वजह से करोड़ों लोगों के रोजगार छिन चुके हैं। हाउजिंग और हेल्थकेयर में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का अर्थव्यवस्था पर बेहतर प्रभाव होगा और इससे मांग भी पैदा होगी।