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रामनाथ गोयनका पुरस्कार समारोह, 10 प्वाइंट्स में समझें प्रधान न्यायाधीश ने क्या कहा

भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले पत्रकारों को प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका पुरस्कार प्रदान किये।

RNG Award | Indian Express |
बुधवार को नई दिल्ली में उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए महिला पत्रकार को रामनाथ गोयनका एवार्ड देते सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और एक्सप्रेस समूह के उपाध्यक्ष विवेक गोयनका। (फोटो-रेणुका पुरी- इंडियन एक्सप्रेस)

भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने बुधवार को नई दिल्ली में पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य (Excellence Work in Journalism) करने वाले पत्रकारों को प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका पुरस्कार (Ramnath Goenka awards) प्रदान किये। इस मौके पर उन्होंने कहा कि स्वस्थ और क्रियाशील लोकतंत्र (Functional and Healthy Democracy) को पत्रकारिता के विकास के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने “सामाजिक सामंजस्य और राजनीतिक सक्रियता (Social Cohesion and Political Activism)” में स्थानीय और समुदाय आधारित पत्रकारिता (Community-Based Journalism) की भूमिका पर भी जोर दिया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बातों को यहां 10 प्वाइंट्स में समझें।

  1. पत्रकारिता और कानून के पेश में काफी कुछ समानता है। दोनों पेशे के लोगों को यह दृढ़ विश्वास है कि कलम की ताकत तलवार से ज्यादा है। इसलिए वे तमाम विरोधों और पेशेवर कठिनाइयों के बावजूद अपने काम में जुटे रहते हैं।
  2. उन्होंने कहा कि आम जनता को जानकारी देने के लिए पत्रकार लगातार जटिल सूचनाओं को सरल बनाने की कोशिश करते हैं। हालांकि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि सरल करने के चक्कर में सूचना की सच्चाई और सटीकता खत्म न हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो इससे सूचना और जटिल हो जाएगी। यह पूरी दुनिया के लिए सच है।
  3. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मीडिया बहस और चर्चा को शुरू करता है। यह समस्या के निवारण के लिए पहला कदम होता है। जब समाज में समस्या को लेकर जड़ता आ जाती है तब मीडिया उसको बाहर निकालता है। मौजूदा समस्याओं को सही रूप में पेश करने में मीडिया हमेशा से अहम भूमिका निभाता रहा है।
  4. कहा कि हाल ही में अमेरिकी फिल्म इंडस्ट्री में प्रमुख हस्तियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों वाली खबरें छपने के बाद मीटू मुवमेंट चलाया गया था। इसका व्यापक प्रभाव दुनियाभर में दिखाई दिया। भारत में निर्भया और ज्योति बलात्कार कांड का मीडिया ने प्रमुखता से कवर किया। इसकी वजह से बड़ा आंदोलन शुरू हो सका और बाद में आपराधिक कानून में सुधार किया गया। यहां तक कि रोजाना की खबरें भी संसद और विधानसभाओं में चर्चाओं को शुरू कराने में मदद करती हैं।
  5. मीडिया राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है और इस नाते यह लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है। एक क्रियाशील और स्वस्थ लोकतंत्र की यह जिम्मेदारी है कि वह पत्रकारिता को एक संस्था के रूप में प्रेरित करे, जिससे वह सत्ताधीशों से सवाल कर सके। यह कहा भी जाता है कि “सत्ता से सच बोलो।” अगर प्रेस को ऐसा करने से रोका गया तो यह लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता होगा। यदि देश में लोकतंत्र को बनाए रखना है तो प्रेस को आजादी देनी ही होगी।
  6. सीजेआई ने कहा भारत में समाचार पत्रों की महान विरासत है। इन समाचार पत्रों ने सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन को प्रेरित किया। आजादी से पहले समाज सुधारकों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने लोगों को जागरूक करने के लिए समाचार पत्र निकाले थे। डॉ. अम्बेडकर ने भारत में सबसे उपेक्षित समुदायों के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करने के लिए ‘मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता और प्रबुद्ध भारत’ जैसे कई समाचार पत्र निकाले थे। तब हमारे साहसी महिलाओं और पुरुषों ने अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार आंदोलन चलाया था। आजादी के पहले के भारत के समाचार पत्रों और अन्य प्रकाशनों से हमें उस समय के विस्तृत इतिहास की झलक मिलती है। अखबारी कागज ने आत्मा की आकांक्षा, स्वतंत्रता की लालसा को आवाज दी।
  7. उन्होंने कहा हमारे देश और दुनिया भर में कई पत्रकार कठिन और प्रतिकूल हालातों में काम करते हैं, लेकिन यही उनका गुण है और इसे बनाए रखना चाहिए। एक नागरिक के रूप में हम कई मुद्दों पर पत्रकारों के विचार से सहमत नहीं हो सकते हैं, लेकिन असहमति को नफरत में नहीं बदलना चाहिए और नफरत से हिंसा को बढ़ावा नहीं होने देना चाहिए। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण फैसलों में पत्रकारों के अधिकारों पर जोर दिया है। एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा: “भारत की आजादी तब तक सुरक्षित रहेगी जब तक कि पत्रकार बदले की धमकी से डरे बिना सत्ता से सच बोलते रहेंगे।”
  8. स्थानीय या समुदाय आधारित पत्रकारिता ने सामाजिक एकता और राजनीतिक सक्रियता को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें न केवल नागरिकों को शिक्षित करने की क्षमता है बल्कि कम जानकारी वाले मुद्दों को उठाने और नीतिगत स्तर पर उन मुद्दों पर बहस के लिए एजेंडा निर्धारित करने की भी क्षमता है। स्थानीय पत्रकारिता स्थानीय मुद्दों और वहां के लोगं की समस्याओं को उजागर करती है, जिसे आम तौर पर राष्ट्रीय मीडिया कवर नहीं करता है। रिसर्च से यह बात साफ हुई है कि कि मुख्यधारा का मीडिया सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। हाशिये और नीचे के लोगों के मुद्दों और समस्याओं की आवाज सामुदायिक पत्रकारिता ही उठाती है। सोशल मीडिया के आने के बाद इस काम में और तेजी आ सकी है।
  9. कोविड-19 (COVID-19) महामारी के दौरान मीडिया की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी। इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया ने लॉकडाउन के दौरान बड़े पैमाने पर आम जनता तक जरूरी सूचनाएं दीं। आम लोगों को विभिन्न सावधानियों के साथ-साथ बचाव के कदमों के बारे में लगातार सचेत किया गया। मीडिया ने प्रशासनिक खामियों और ज्यादतियों को भी उजागर किया। कई हाई कोर्ट और भारत के सुप्रीम कोर्ट ने महामारी के दौरान लोगों के अधिकारों के उल्लंघन का स्वत: संज्ञान के लिए मीडिया की रिपोर्ट पर भरोसा किया।
  10. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म आने के बाद से आम लोगों को भी अपना ऑनलाइन मीडिया चैनल लॉन्च करने का अवसर मिला है। इस तरह, ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों ने मीडिया के लोकतंत्रीकरण को बढ़ावा दिया है। वर्षों पहले ऐसा नहीं था। अब शायद पाठक के धैर्य की कमी है। पाठकों के पास ध्यान देने की अवधि कम होती है।

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First published on: 23-03-2023 at 06:00 IST
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