उनके द्वारा दिया गया ‘जय हिंद’ नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ और ‘दिल्ली चलो’ का नारा भी उन्होंने ही दिया। नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म ओड़िशा के कटक में हुआ था।
कटक के प्रोटेस्टेंट स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर 1909 में उन्होंने रेवेनशा कालेजिएट स्कूल में दाखिला लिया। उनचासवीं बंगाल रेजीमेंट में भर्ती के लिए उन्होंने परीक्षा दी, किंतु आंखें खराब होने के कारण उन्हें सेना के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया। पिता की इच्छा थी कि सुभाष आइसीएस बनें, मगर उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी।
आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए आइसीएस परीक्षा पास कर ली। पर अंग्रेजों की गुलामी के लिए उनका मन नहीं माना और 22 अप्रैल, 1921 को त्यागपत्र दे दिया। रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह पर वे महात्मा गांधी से मिले। गांधी ने उन्हें कोलकाता जाकर चितरंजन दास के साथ काम करने की सलाह दी। उनके साथ सुभाष असहयोग आंदोलन में सहभागी हो गए।
कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने जीता और दासबाबू कोलकाता के महापौर बन गए। उन्होंने सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाष ने अपने कार्यकाल में कोलकाता महापालिका का पूरा ढांचा और काम करने का तरीका ही बदल डाला।1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाए। कोलकाता में सुभाष ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। गांधीजी उन दिनों पूर्ण स्वराज्य की मांग से सहमत नहीं थे। मगर सुभाषबाबू और जवाहरलाल नेहरू को पूर्ण स्वराज की मांग से पीछे हटना मंजूर नहीं था।
1938 में कांग्रेस के इक्यावनवें वार्षिक अधिवेशन से पहले गांधीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष को चुना। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सुभाष ने योजना आयोग की स्थापना की। जवाहरलाल नेहरू उसके पहले अध्यक्ष बनाए गए। सुभाष ने बंगलुरु में मशहूर वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरैया की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद की स्थापना भी की।
यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध की आहट हुई तो सुभाष चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर भारत का स्वतंत्रता संग्राम तेज किया जाए। मगर गांधीजी इससे सहमत नहीं थे। फिर 3 मई, 1939 को सुभाष ने कांग्रेस के अंदर ही फारवर्ड ब्लाक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की और क्रांतिकारी गतिविधियां शुरू कर दी। अंग्रेज सरकार ने सुभाष सहित फारवर्ड ब्लाक के सभी मुख्य नेताओं को कैद कर लिया।
नजरबंदी से निकलने के लिए सुभाष 16 जनवरी, 1941 को पुलिस को चकमा देते हुए एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन के वेश में अपने घर से निकले। धनबाद जिले के गोमो रेलवे स्टेशन से फ्रंटियर मेल पकड़ कर वे पेशावर पहुंचे। पेशावर से काबुल और फिर वहां से आरलैंडो मैजोंटा नामक इटालियन व्यक्ति बनकर वे रूस की राजधानी मास्को होते हुए जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे।
वहां उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की। 29 मई, 1942 को सुभाष एडोल्फ हिटलर से मिले, मगर उसने सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया। फिर सुभाष पूर्वी एशिया की ओर निकल गए। वहां पहुंच कर उन्होंने वयोवृद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व संभाला।
21 अक्तूबर, 1943 के दिन नेताजी ने सिंगापुर में आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिंद (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) की स्थापना की। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंडमान और निकोबार द्वीप जीत लिए। फिर उन्होंने इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया, लेकिन अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा और दोनों फौजों को पीछे हटना पड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूंढ़ना जरूरी था। 18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गए। उस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिए।