ड्रग्स से जुड़े एक मामले में पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को गुजरात हाईकोर्ट का वो फैसला नागवार गुजरा जिसमें ट्रायल जल्दी पूरा करने की बात की गई थी। भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर हाईकोर्ट के फैसले पर एतराज जताया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें फटका लग गया।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने संजीव भट्ट की याचिका को बेमतलब की करार देते हुए कहा कि अमूमन आरोपी अपने मामलों को जल्द सुनने की दरखास्त करते दिखते हैं। लेकिन पूर्व आईपीएस उल्टी धारा बहा रहे हैं। वो चाहते हैं कि गुजरात हाईकोर्ट ने उनके मामले में ट्रायल जल्द पूरा करने का जो फैसला दिया है हम उसके खिलाफ आदेश पारित करें। ये समझ से परे है। बेंच ने संजीव भट्ट पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि पूर्व आईपीएस को ये पैसा गुजरात स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी के पास जमा कराना होगा।
जानते हैं कि क्या था मामला
ये मामला 1996 का है। संजीव भट्ट उस समय बनासकांठा के एसपी थे। पुलिस ने राजस्थान के एक शख्स समरसिंह राजपुरोहित को पालनपुर के होटल से अरेस्ट किया था। पुलिस का कहना था कि उसके पास से ड्रग्स बरामद की गई। लेकिन राजस्थान पुलिस ने इसका पुरजोर विरोध किया। उनका कहना था कि राजस्थान के पाली में एक विवादित जमीन को ट्रांसफर न करने पर समरसिंह को गुजरात पुलिस ने फंसाया। पूर्व इंस्पेक्टर आईबी व्यास ने 1999 में गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि मामले की निष्पक्ष जांच हो।
31 मार्च 2023 तक पूरा करना होगा ट्रायल
गुजरात हाईकोर्ट ने मामले की जांच जून 2018 में सीआईडी के हवाले कर दी। सितंबर में भट्ट को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद सीआईडी ने व्यास और संजीव भट्ट के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को दिए आदेश में कहा कि सुनवाई 9 माह में पूरी कर ली जाए। 2022 में हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट को सुनवाई पूरी करने के लिए कुछ अतिरिक्त समय भी दिया। हालांकि 2023 में लोअर कोर्ट ने फिर से दरखास्त की कि मामले की सुनवाई पूरी करने के लिए कुछ अतिरिक्त समय और चाहिए। हाईकोर्ट ने उनकी मांग को मान लिया लेकिन कहा कि 31 मार्च 2023 तक ट्रायल हर हाल में पूरा कर लिया जाए। संजीव भट्ट को ये फैसला नागवार गुजरा और वो सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गए।