केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठनों का आंदोलन जारी है। सरकार के साथ उनकी बातचीत अब तक बेनतीजा रही है। किसान संगठन और विपक्षी दल इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, हालांकि सरकार इनको किसानों के हित में बता रही है। इन कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी सुनवाई कर रहा है। इसी पृष्ठभूमि में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने अपनी राय दी है।
सरकार संग किसानों की वार्ता बेनतीजा रहने के बाद टिकैत ने टीवी चैनल न्यूज24 पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा- हम खेत में बीच डालने के बाद चार-छह महीने इंतजार करते हैं। फिर फसल आती है और जब फसल पक जाती है तो ओले पड़ जाते हैं। इसके बाद भी खेत को छोड़ा नहीं जा सकता। अगली फसल की फिर तैयारी शुरू कर देते हैं। टिकैत ने राजस्थान में एक किसान का उदाहरण दे बताया कि उसके गांव में 11 साल बारिश नहीं हुई। मगर किसान अपना गांव नहीं छोड़ता। वो अपना खेत नहीं छोड़ता, हर साल खेत में जाता है और जुताई करता है। रिपोर्टर ने किसान नेता से अन्नदाताओं के धैर्य को लेकर सवाल पूछा था।
एक सवाल के जवाब में राकेश टिकैत ने कहा कि आंदोलन खत्म नहीं होगा। आंदोलन चाहे कितने भी दिन चले, जारी रहेगा। उन्होंने कहा- सामान भेजने पर थोड़ी रोक लगाई गई है क्योंकि आंदोलन स्थल पर दो से तीन महीने का राशन उपलब्ध है। 26 जनवरी पर किसानों की परेड पर राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार इस बार परेड छोटी निकाल रही है। अगर सरकार चाहे तो आगे की परेड किसान पूरी कर देंगे। परेड छोटी नहीं होनी चाहिए।
इसी बीच रविवार को टिकैत ने नागपुर में कृषि बिलों का हल ना निकलने पर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि आंदोलन जारी रहेगा। आंदोलन में करीब 10 दौर की वार्ता हो चुकी है, सरकार पूर्ण रूप से अड़ियल रुख कर रही है। मामले में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने भी प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने कहा- किसान यूनियन टस से मस होने को तैयार नहीं है। उनकी लगातार ये कोशिश है कि कानूनों को रद्द किया जाए। भारत सरकार जब कोई कानून बनाती है तो वो पूरे देश के लिए होता है, इन कानूनों से देश के अधिकांश किसान, विद्वान, वैज्ञानिक, कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोग सहमत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों के क्रियान्वयन को रोक दिया है तो मैं समझता हूं कि जिद्द का सवाल ही खत्म होता है। हमारी अपेक्षा है कि किसान 19 जनवरी को एक-एक क्लॉज पर चर्चा करें और वो कानूनों को रद्द करने के अलावा क्या विकल्प चाहते हैं वो सरकार के सामने रखें।