रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2012 तक वन्य जीवों की संख्या में अट्ठावन फीसद की कमी आई है। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार 1990 से 2020 के बीच पिछले तीन दशकों में ग्यारह लाख से ज्यादा समुद्री कछुओं का अवैध शिकार किया गया। जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक में हर साल चौवालीस हजार से ज्यादा कछुओं का शिकार किया गया।
इसमें पंचानबे फीसद कछुओं की केवल दो प्रजातियों हरे समुद्री कछुए (किलोनिया मिडास) और हाक्सबिल समुद्री कछुओं (एरेत्मोचेलीज इम्ब्रिकाटा) की थी। जबकि, इन दोनों ही प्रजातियों को अमेरिका की लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए बनाए कानून के तहत सूचीबद्ध किया गया है। दुनिया में पैंसठ देशों या क्षेत्रों में कछुओं के शिकार और उपयोग पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद आज भी इन जीवों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है।
इसी तरह से दुनिया भर में गैंडों की प्रजातियों को खतरा है और वे विलुप्त होने के कगार पर हैं। दक्षिण अफ्रीका में 2008 से 2017 के बीच सात हजार से अधिक गैंडों का अवैध शिकार हुआ, जो दुनिया की सत्तर प्रतिशत से अधिक गैंडों की आबादी का घर है। 2011 में, अफ्रीका के काले गैंडों की प्रजाति को विलुप्त घोषित किया गया था। हर दिन, लगभग तीन गैंडों का शिकार सींगों के लिए किया जाता है।
ऐसा नहीं कि सिर्फ बड़े या महत्त्वपूर्ण जानवरों पर संकट है। राजस्थान के कुछ इलाकों में सियार, जंगली बिल्ली, भेड़िया, नेवला, सेंड ग्राउज झाऊ चूहा भी विलुप्त होने के कगार पर हैं। यहां गिद्ध, गोडावण, चीतल, काला हिरण, सारस, लोमड़ी चील भी तेजी से विलुप्त हो रहे हैं।