सुप्रीम कोर्ट मंगलवार (17-मई-2022) को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में वाराणसी जिला अदालत के वीडियोग्राफी के सर्वे के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगा। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधक कमेटी अंजुमन इंतजामिया कमेटी की ओर दाखिल की गई है। दरअसल, मस्जिद प्रबंधक कमेटी जिला अदालत के फैसले के खिलाफ 21 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट गई थी और कहा था कि यह उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 (The Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991) का उल्लंधन है लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है, जिसके बाद मस्जिद प्रबंधक कमेटी ने सुप्रीमकोर्ट का रूख किया।
क्या है उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, और क्या है इसके प्रावधान?
जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है। यह अधिनियम किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने से प्रतिबंधित करता है और 15 अगस्त 1947 के बाद इस जिस धार्मिक स्थल का जो स्वरूप उसे बनाए रखने पर जोर देता है।
अधिनियम की धारा की 3 किसी भी दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल के स्वरूप को आंशिक और पूर्ण रूप से किसी अन्य धर्म के धार्मिक स्थल बनाने से प्रतिबंधित करती है। इसके साथ यह एक ही धर्म के अगल-अगल पांतों पर भी लागू होता है। इस अधिनियम की धारा 4 (1) कहती है कि जिस धार्मिकस्थल का स्वरूप 15 अगस्त, 1947 को जैसा था। उसे वैसा ही बरकरार रखा जाए। वहीं, इस अधिनियम की धारा 4 (2) के मुताबिक धार्मिकस्थल का स्वरूप के बदलने के लिए कोई भी नया वाद नहीं दाखिल किया जा सकता है।
इस अधिनियम के खिलाफ लखनऊ के विश्व भद्रा पुजारी पुरोहित महासंघ, कुछ सनातन वैदिक धर्म के लोगों और भाजपा के नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी, जिस पर सुनवाई लंबित है। इस कानून को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है जो संविधान की प्रमुख विशेषता है और कहा था कि मनमाने आधार पर एक कट ऑफ डेट लगाना तर्कहीन है जो हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के धार्मिक अधिकारों को कम करता है।
इस अधिनियम को 1991 में कांग्रेस सरकार ने प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा की ओर से लाया गया था। उस दौरान देश में राम जन्मभूमि के लिए आंदोलन चरम पर था, जिस कारण देश में सांप्रदायिक तनाव काफी बढ़ गया था।