83 की उम्र में भी रतन टाटा को है कार चलाने, प्लेन उड़ाने और पढ़ने का शौक, बताया- पियानो बजाने में क्या आई मुश्किल…
रतन टाटा भारतीय उद्योग जगत की ऐसी शख्सियत हैं जिनके बारे में शायद ही कोई न जानता हो। वे अपनी दिलचस्पियों को लेकल भी अक्सर चर्चा में रहते हैं।

रतन टाटा भारतीय उद्योग जगत की ऐसी शख्सियत हैं जिनके बारे में शायद ही कोई न जानता हो। वे अपनी दिलचस्पियों को लेकल भी अक्सर चर्चा में रहते हैं। रिटायरमेंट के बाद भी वे कार चलाने, प्लेन उड़ाने, पढ़ने और पियानो बजाने तक में रुचि रखते हैं। सीएनबीसी टीवी 18 को दिए इंटरव्यू में टाटा ने बताया था, ”ऐसा नहीं हो सकता कि आपकी सिर्फ एक विषय में दिलचस्पी हो। मैं खुशकिस्मत रहा हूं कि मेरी इन चीजों में रुचि रही है। जब रिटायर हुआ तो सोचा कि दोबारा से पियानो बजाना सीखूंगा। बहुत पहले पियानो बजाना सीखा था। मुझे एक पियानो टीचर सिखाया भी करते थे।” जब उनसे पूछा गया कि आपके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है। तो उन्होंने कहा, ”ऐसे बहुत से पल रहे हैं। लेकिन किसी एक उपलब्धि को बताना आसान नहीं है।”
बता दें कि रतन टाटा टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं। 1990 से साल 2012 तक वे इस पद पर रहे। हालांकि अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक भी उन्होंने चेयरमैन का पद संभाला था। खास बात ये है कि जितने साल रतन टाटा ने टाटा समूह को संभाला , समूह की कमाई 40 गुना बढ़ी और मुनाफा भी 50 गुना बढ़ा।
टाटा समूह सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसकी 65 प्रतिशत कमाई तो विदेश से होती है। टाटा रिटायरमेंट के बाद भी लगातार चैरिटी से जुड़े रहे हैं। कारोबार जगत में भी उन्हें उनकी नैतिकता और मूल्यों के लिए जाना जाता है। टाटा शुरू से ही शिक्षा, चिकित्सा और ग्रामीण विकास के समर्थक रहे हैं। रतन टाटा को साल 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से भारत सरकार सम्मानित कर चुकी है।
मालूम हो कि 1937 में जन्मे रतन टाटा टाटा समूह के संस्थापक जमेशद टाटा के पोते हैं। उन्होंने टाटा समूह में अपने करियर की शुरुआत टाटा स्टील से की थी। बता दें कि टाटा जब 10 साल के थे तब ही उनके माता-पिता अलग हो गए थे। स्कूली पढ़ाई भारत में करने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चले गए थे। रतन टाटा के निजी जीवन की बात की जाए तो वे अविवाहित हैं।