नाबालिग बेटी के गर्भपात के मामले में पिता ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट के सामने सहमति जता दी थी। लेकिन सहमति फार्म (Consent Form) पर दस्तखत करने वो नहीं पहुंचा। हाईकोर्ट ने पिता की लिखित मंजूरी के बगैर की 16 साल की लड़की का गर्भपात कराने का आदेश दे दिया। कोर्ट का कहना था कि लड़की के गर्भ को 24 हफ्ते का होने में दो या तीन दिन ही बचे हैं। हम कोई चांस नहीं ले सकते।
हाईकोर्ट ने निर्मल छाया कांप्लेक्स के सुपरिटेंडेंट को सहमति फार्म पर दस्तखत करने की अनुमति दे दी। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने उनको गर्भवती नाबालिग लड़की का संरक्षक नियुक्त किया था। जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने इसकी अनुमति देते हुए कहा कि हम कोई चांस नहीं ले सकते हैं। नाबालिग बीते साल 17 अक्टूबर से निर्मल छाया कांप्लेक्स की कस्टडी में है। मेडिकल बोर्ड ने 24 फरवरी को दी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि लड़की का गर्भ 22 सप्ताह का हो चुका है। उनका कहना था कि मेडिकली उसका गर्भपात कराया जा सकता है। अभी उसे कोई खतरा नहीं है।
अदालत ने माना कि लड़की का बच्चे को जन्म देना ठीक नहीं होगा। क्योंकि वो खुद नाबालिग है। ऐसे में वो बच्चे का लालन पालन करने में पूरी तरह से असमर्थ है। कोर्ट ने सात मार्च के अपने आदेश में कहा था कि बच्चे को जन्म देने के बाद लड़की को सारी उम्र तकलीफों से गुजरना होगा। कोर्ट का कहना था कि हम केवल इस बात पर बच्चे को दुनिया में आने की अनुमति नहीं दे सकते, क्योंकि पिता हां बोलने के बाद दस्तखत नहीं कर रहा है।
दस्तखत से मुकरने वाले पिता के खिलाफ होगी जांच
हाईकोर्ट एक याचिका की सुनवाई कर रहा था जिसमें लड़की के जरिये पिता ने उसकी कस्टडी मांगी थी। इसकी सुनवाई के दौरान ही पता चला कि लड़की गर्भवती है। उस दौरान कोर्ट ने गर्भपात की बात कही तो पिता सहमति देने को तैयार था। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि फिलहाल लेडी हार्डिंग अस्पताल में गर्भपात कराया जाए। उसके बाद पिता के खिलाफ सहमति पत्र पर दस्तखत न करने के लिए जांच की जाए।
कोर्ट ने कहा कि लड़की के गर्भपात और उसकी देखभाल का खर्च राज्य सरकार देगी। मामले की अगली सुनवाई 5 अप्रैल को की जाएगी। एमीकस क्यूरी रेबेका जॉन ने अदालत को बताया कि कि पिता के घर पर जाकर भी देखा गया लेकिन वहां ताला लटका मिला।