देश के अलग-अलग इलाकों में मौजूद शत्रु संपत्तियों के विवाद और समाधान को लेकर लंबे समय से कोई नियमबद्ध प्रक्रिया तय करने की कोशिश चलती रही है, पर इस मसले पर कोई ठोस पहल नहीं हो सकी थी। अब केंद्र सरकार की पहल के बाद इस दिशा में कोई साफ तस्वीर सामने आने की स्थिति बन रही है, जिसमें शत्रु संपत्ति के रूप में घोषित की गई अचल संपत्तियों को खाली कराने और उसकी बिक्री की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी।
देश भर में कुल बारह हजार छह सौ ग्यारह शत्रु संपत्तियों की पहचान की गई
इस तरह की संपत्तियों के निपटारे के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों में कुछ बदलाव किया गया है, ताकि इसकी आगे की प्रक्रिया को स्पष्ट और आसान तरीके से पूरा किया जा सके। इससे संबंधित अधिसूचना के मुताबिक, संपत्तियों की बिक्री से पहले संबंधित जिलाधिकारी या उपायुक्त की मदद से शत्रु संपत्तियों को खाली कराने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। गौरतलब है कि सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर इस संबंध में कराए गए एक सर्वेक्षण के बाद अब तक देश भर में कुल बारह हजार छह सौ ग्यारह शत्रु संपत्तियों की पहचान की गई है, जो देश के बीस राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों में फैली हुई हैं।
कई लोगों ने फर्जी दावे पेश करके उन पर कब्जा भी जमा लिया
दरअसल, विभाजन के समय बहुत सारे लोग पाकिस्तान चले गए थे। जाने वालों में कुछ चीन भी गए। उन सबके नाम दर्ज जमीन-जायदाद का तब कोई प्रक्रियागत प्रबंधन नहीं हो सका और उनके मालिकाना हक का सवाल विवादित बना रहा। उन्हें तकनीकी रूप से शत्रु संपत्ति कहा गया। संभव है कि ऐसी संपत्तियों के कुछ वास्तविक दावेदार भी रहे हों, लेकिन इससे संबंधित कोई व्यावहारिक कानून न होने का लाभ उठा कर कई लोगों ने फर्जी दावे पेश करके उन पर कब्जा जमा लिया। कई जगह भूमाफिया ने अवैध रूप से इमारतें खड़ी कर लीं।
सरकार की ओर से कराए गए सर्वेक्षण के बाद यह सामने आया कि चिह्नित ऐसी परिसंपत्तियों में से बारह हजार चार सौ पचासी संपत्तियां पाकिस्तान जा चुके लोगों की हैं, तो एक सौ छब्बीस संपत्तियों पर कभी मालिकाना हक रखने वाले चीन की नागरिकता ले चुके हैं। ऐसे में शुरुआती दौर में ही होना यह चाहिए था कि सरकारी तंत्र ऐसी विवादित या बिना मालिकाना हक वाली संपत्तियों को चिह्नित करके उसका उचित प्रबंधन करता। तब यह ज्यादा आसान होता। लेकिन शायद प्रक्रियागत जटिलताओं की वजह से यह काम दशकों तक लटका रहा।
फिलहाल ऐसी सभी संपत्तियां भारत के शत्रु संपत्ति के अभिरक्षक यानी सीईपीआइ के अधीन हैं। इन संपत्तियों के निपटान के लिए नई व्यवस्था के तहत अब जो कार्रवाई होने जा रही है, उसमें तय प्रक्रिया के तहत अगर किसी शत्रु संपत्ति की कीमत एक करोड़ रुपए से कम आंकी गई है, तो सीईपीआइ की ओर से पहले उन पर काबिज लोगों से ही उन्हें खरीदने की पेशकश की जाएगी। किन्हीं स्थितियों में वे इनकार करते हैं तो उन्हें गृह मंत्रालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के तहत बेचा जाएगा।
मगर जिन संपत्तियों की कीमत इससे ज्यादा और सौ करोड़ के बीच है, उनकी बिक्री ई-नीलामी के जरिए होगी या फिर केंद्र सरकार खुद शत्रु संपत्ति निपटारा समिति की सुझाई गई कीमत पर उन्हें बेचेगी। अब तक संबंधित राज्य सरकारों के उदासीन रवैये के चलते ऐसी संपत्तियों के निपटारे का मामला न सिर्फ लटका रहा, बल्कि कई शत्रु संपत्तियों के गायब होने की भी खबरें आर्इं। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि शत्रु संपत्तियों से जुड़े विवादों का हल निकल पाएगा।