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देश में स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए सार्वजनिक निवेश बढ़ाए जाने पर जोर, धीमी प्रगति के लिए कम बजट वजह

समिति ने सिफारिश की कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के साथ मिलकर स्रातक/स्रातकोत्तर चिकित्सा छात्रों के बीच चिकित्सा अनुसंधान के लिए रुचि को बढ़ावा देने के लिए नीति/दिशानिर्देश जारी करने चाहिए।

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केंद्रीय समिति ने कहा कि लगातार बढ़ती आवश्यकताओं के अनुरूप बजट नहीं दिया जा रहा है।

एक संसदीय समिति ने पाया है कि भारत में स्वास्थ्य अनुसंधान में सार्वजनिक निवेश अभी तक काफी अपर्याप्त है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग संबंधित संसद की स्थायी समिति ने सोमवार को लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि स्वास्थ्य में अनुसंधान के लिए सीमित बजटीय आबंटन चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में धीमी प्रगति के पीछे एक प्रमुख कारण है।

कोविड के अनुभव और उभरती चुनौतियों का दिया हवाला

कोविड के अनुभव और उभरती चुनौतियों का हवाला देते हुए, समिति ने जोर देकर कहा कि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को बजटीय आबंटन को 2025-26 तक कुल स्वास्थ्य बजट का कम से कम पांच फीसद और जीडीपी का 0.1 फीसद तक बढ़ाया जाना चाहिए। रिपोर्ट में समिति ने कहा कि भले ही देश के प्रमुख चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइसीएमआर) के लिए बजटीय आबंटन में पिछले चार वित्तीय वर्षों में धीरे-धीरे वृद्धि देखी गई है, लेकिन यह लगातार बढ़ती आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है।

सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र स्वास्थ्य में अनुसंधान अक्सर कम वित्त पोषित रहा : समिति

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कोविड-19 महामारी ने राष्ट्र के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए एकीकृत क्षेत्रीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के अनुसंधान बुनियादी ढांचे में निवेश के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति का कहना है कि भारत में अनुसंधान के लिए आबंटित बजट का अधिकांश हिस्सा आम तौर पर परमाणु अनुसंधान, रक्षा अनुसंधान और अंतरिक्ष अनुसंधान जैसे क्षेत्रों को आबंटित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है, हालांकि, सबसे बुनियादी लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र यानी स्वास्थ्य में अनुसंधान अक्सर कम वित्त पोषित रहा है।

समिति ने रिपोर्ट में उदाहरण देते हुए कहा कि वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद दोनों की स्थापना 1940 के दशक में हुई थी, लेकिन आज वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के लगभग दोगुने बजटीय आबंटन के साथ तेजी से विकास किया है। समिति ने सिफारिश की कि स्वास्थ्य अनुसंधान बुनियादी ढांचे को विकसित और मजबूत करने के लिए उल्लेखनीय निवेश होना चाहिए ताकि भारत जैसे विविध और विशाल देश में चिकित्सा अनुसंधान के लिए उत्साह बढ़े।

समिति ने कहा कि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को अपनी गतिविधियों को बढ़ाने और अपने मौजूदा कार्यक्रमों और सुविधाओं को बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक रोडमैप के साथ आना चाहिए। इससे विभाग को बजट आबंटन बढ़ाने में मदद मिलेगी और इस तरह स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए उपलब्ध धन में वृद्धि होगी। आइसीएमआर ने 2022-23 में अनुसंधान उद्देश्यों के लिए लगभग 1300 करोड़ रुपए खर्च किए।

समिति का मानना है कि भारत स्वास्थ्य के मोर्चे पर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है जैसे संचारी रोगों में वृद्धि, उच्च रक्तचाप, कैंसर और गंभीर कुपोषण, देश के विभिन्न हिस्सों में एनीमिया, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद को अनुसंधान पर 1300 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने की तत्काल आवश्यकता है। समिति ने कहा कि स्वास्थ्य में अनुसंधान के लिए सीमित बजटीय आवंटन चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में धीमी प्रगति के पीछे एक प्रमुख कारण है।

रिपोर्ट में कहा गया कि समिति का मानना है कि अनुसंधान की कमी एक प्रणालीगत समस्या है जो स्वास्थ्य प्रणाली के पूरे पदानुक्रम जैसे मेडिकल कॉलेजों, संस्थानों, अस्पतालों और अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से व्याप्त है। रिपोर्ट के मुताबिक समिति का मानना है कि अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए आईसीएमआर को अपने बाहरी खर्च को और बढ़ाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद को सरकारी मेडिकल कालेजों के प्रबंधन के साथ सामंजस्य में काम करना चाहिए और ऐसे कालेजों के शीर्ष संकायों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें अनुसंधान अनुदान के रूप में प्रति वर्ष एक निश्चित राशि प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि इससे अधिक शोध उत्पादन उत्पन्न करने में मदद मिल सकती है।

समिति ने सिफारिश की कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के साथ मिलकर स्रातक/स्रातकोत्तर चिकित्सा छात्रों के बीच चिकित्सा अनुसंधान के लिए रुचि को बढ़ावा देने के लिए नीति/दिशानिर्देश जारी करने चाहिए क्योंकि छात्रों को अनुसंधान से अवगत होने की आवश्यकता है और इसे अतिरिक्त बोझ के रूप में नहीं लेना चाहिए।

समिति ने कहा कि नीति/दिशानिर्देशों में यह सुनिश्चित करने के तरीके शामिल होने चाहिए कि अनुसंधान शिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए और इसके लिए सुविधाएं और बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त धन प्रदान किया जाना चाहिए। समिति ने कहा कि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग का वर्ष 2023-24 के लिए बजटीय आबंटन कुल स्वास्थ्य बजट का केवल 3.34 फीसद है, जबकि 2022-23 में यह 3.71 फीसद था। उसने कहा कि इसलिए, इस साल स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए आबंटन के हिस्से में वृद्धि के बजाय, आबंटन में गिरावट देखी गई है। वर्ष 2022 में, समिति ने सिफारिश की थी कि स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए बजटीय आबंटन कुल स्वास्थ्य बजट का 5 फीसद होना चाहिए।

समिति ने अफसोस जताया कि उसकी पूर्व की सिफारिश को संज्ञान में नहीं लिया गया। उसने दोहराया कि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को बजटीय आबंटन को कुल स्वास्थ्य बजट का कम से कम पांच फीसद किया जाना चाहिए क्योंकि इससे भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों को कम करने के लिए आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल और अनुसंधान बुनियादी ढांचा बनाने में मदद मिलेगी। इसमें कहा गया है कि जीडीपी के फीसद के रूप में वास्तविक स्वास्थ्य अनुसंधान व्यय 2021-22 से 0.02 पर स्थिर रहा है।

समिति ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य अनुसंधान पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि की लगातार मांग की जा रही है और कोविड-19 महामारी ने स्वास्थ्य में अनुसंधान के वित्तपोषण के महत्व को उजागर किया है। उसने कहा कि जीडीपी के फीसद के रूप में स्वास्थ्य अनुसंधान व्यय अभी भी बहुत कम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की आबादी के आकार और विशेष रूप से कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान इसके हालिया खट्टे अनुभवों को देखते हुए, समिति का मानना है कि स्वास्थ्य अनुसंधान के बुनियादी ढांचे पर सरकारी खर्च को काफी बढ़ाने की गंभीर आवश्यकता है क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य संसाधन, जो कोविड-19 जैसे प्रकोपों से निपटने के लिए आवश्यक हैं, भारत में अभी भी कमजोर हैं।

समिति ने कहा कि इसके लिए नैदानिक अनुसंधान अवसंरचना के विकास, परीक्षण और नैदानिक सुविधाओं के उन्नयन, मानव संसाधन और क्षमता विकास और अन्य सहायता सेवाओं के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होगी। रिपोर्ट में कहा गया कि इसलिए, पूंजीगत व्यय घटक को इस परिवर्तनकारी प्रोत्साहन की सख्त आवश्यकता है, अन्यथा सामान्य बजट आबंटन-व्यय पैटर्न को जारी रखने से सिर्फ मौजूदा प्रणाली को बनाए रखने में ही मदद मिलेगी लेकिन इसमें सुधार और भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिए तैयार होना संभव नहीं होगा। समिति ने सिफारिश की कि स्वास्थ्य अनुसंधान व्यय को धीरे-धीरे 2025-26 तक सकल घरेलू उत्पाद के 0.1 फीसद तक बढ़ाया जाना चाहिए।

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First published on: 22-03-2023 at 07:02 IST
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