इलेक्टोरेल बॉन्ड से जुड़े केस की सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच 11 अप्रैल को करेगी। हालांकि पहले सीजेआई चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई के लिए 2 मई की तारीख दी थी लेकिन सीनियर एडवोकेट दुष्य़ंत दवे ने कर्नाटक चुनाव का जिक्र कर कहा कि वहां मई में चुनाव होने हैं। अगर मामले की सुनवाई मई में ही करेंगे तो कर्नाटक में इलेक्टोरेल बॉन्ड का बेजा इस्तेमाल हो जाएगा।
इस पर सीजेआई ने 11 अप्रैल की तारीख तय कर दी। हालांकि इस दिन सीजेआई की बेंच इस बात पर सुनवाई करेगी कि इस मामले को संवैधानिक बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए भेजा जाए या नहीं?
आज हुई सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से सीजेआई की बेंच को एक चिट्ठी दी गई। इसमें अनुरोध किया गया था कि उसे जवाब काउंटर एफिडेविट फाइल करने के लिए समय दिया जाए। केंद्र की दलील थी कि मामले की सुनवाई को फिलहाल स्थगित किया जाए।
सीनियर एडवोकेट शदान फरासत ने सीजेआई से अपील की कि मामले की सुनवाई संवैधानिक बेंच करे। लोकतांत्रिक प्रणाली में राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को लेकर कोई ठोस फैसला बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि संवैधानिक बेंच इस मामले में कोई पुख्ता फैसला दे।
बता दें कि 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला कोर्ट पहुंचा था। इसमें सुनवाई में हो रही देरी को लेकर सवाल उठते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर ने जनसत्ता.कॉम के संपादक विजय कुमार झा का दिए इंटरव्यू में इस देरी का ही हवाला देकर आशंका जताई कि न्यायपालिका थोड़ा बहुत सरकार के प्रभाव में लगती है। देखिए वह इंटरव्यू:
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर याचिकाओं को तीन हिस्सों में विभाजित किया है। पहले इलेक्टोरेल बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाएं शामिल हैं। जबकि दूसरे में उस याचिका को रखा गया है जिसमें राजनीतिक दलों को 2005 के RTI एक्ट के दायरे में लाने की अपील की गई है। तीसरे सेट में Foreign Contribution Regulation Act, 2010 में संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं को रखा गया है।
जानते हैं, क्या है इलेक्टोरेल बॉन्ड स्कीम
Representation of Peoples Act 1951(RPA) की धारा 29(C) में बललाव कर 2017 में ये प्रावधान किया गया था कि कोई डोनर जो राजनीतिक दल को चंदा देना चाहता है वो बैंकों से इलेक्टोरेल बॉन्ड खरीद सकेगा। पेमेंट का मोड इलेक्ट्रानिक होगा। उसे अपना जरूरी डेटा (KYC के तहत) भी बताना होगा। हालांकि राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को डोनर के बारे में कोई जानकारी देने की जरूरत नहीं होती।
डोनर 1 हजार से 1 करोड़ रुपये तक की किसी भी कीमत के बॉन्ड खरीद सकता है। ये खरीद की तारीख से 15 दिनों तक वैध होंगे। बॉन्ड के ऊपर खरीदने वाले का नाम नहीं होता है। राजनीतिक दल इन्हें कैश करा सकते हैं। ये उस राजनीतिक दल की आमदनी में शुमार होगा। Income Tax Act, 196 के सेक्शन 13A के तहत राजनीतिक दल को टैक्स में रिबेट भी मिलेगी।
पहली बार 2017 में ही एडीआर की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की गई। बाद में माकपा, एनजीओ कॉमन कॉज और कुछ अन्य की ओर से भी याचिकाएं डाली गईं। इनकी दलील थी कि इस व्यवस्था पर कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है और इससे राजनीतिक दलों (खास कर सत्ताधारी) द्वारा आम जनता के बजाय कारोबारियों के हितों को तरजीह मिलने की आशंका बढ़ेगी। 2019 में ये केस फिर से जिंदा हो गया। उस समय तक ज्यादातर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा चुके थे। 12 अप्रैल 2019 में मामले की सुनवाई की गई। तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि 30 मई तक डोनर्स का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के पास जमा कराया जाए।
चुनाव आयोग भी स्कीम को इस लिहाज से ठीक नहीं मानता कि इसमें चंदा देने वाला कौन है, उसका पता ही नहीं चलता है। हालांकि केंद्र का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों की फंडिंंग से जुड़े मामलों में और पारदर्शिता आएगी।