अन्य क्षेत्रों की भांति शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को भी इस बजट के बहुत सारी उम्मीदें। अधिकतर लोगों का मानना है कि बजट में देश में अनुसंधान को बढ़ाने पर जोर देना चाहिए साथ ही डिजिटल बुनियादी ढांचे और साक्षरता के सुदृढ़ीकरण व विस्तार पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
भारतीय प्रबंध संस्थान (आइआइएम) इंदौर के निदेशक हिमांशु राय के मुताबिक प्रणाली की सरलता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए भारत के उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना को उत्प्रेरित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसमें ‘एआइसीटीई ट्रेनिंग एंड लर्निंग’(एटीएएल) एफडीपी जैसे पाठ्यक्रमों और सेवाओं के प्रोत्साहन और विस्तार के माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षण और विकास पहलों को पुनर्जीवित करना संभव है।
राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (एनआरएफ) की कार्यान्वयन योजना में तेजी लाने के लिए धन उपलब्ध कराना और एक खाका तैयार करना चाहिए। उद्योग साझेदारी के लिए प्रोत्साहन और सरल नियमों का प्रावधान, प्रायोजित प्रयोगशालाओं और उत्कृष्टता केंद्रों का निर्माण, कार्य एकीकृत शिक्षण कार्यक्रम/पाठ्यक्रम, और उद्योग-अकादमिक अंतर को पाटने के लिए कारपोरेट के साथ सहयोग को मजबूत करने के अन्य तरीके खोजने होंगे।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही भारत में स्थापित विदेशी विश्वविद्यालय निवेश आकर्षित कर सकते हैं। सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में 100 फीसद एफडीआइ की अनुमति दी है, लेकिन वैश्विक निवेशकों के लिए इसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
राय के मुताबिक डिजिटल बुनियादी ढांचे और साक्षरता का विकास, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, ‘डिजिटल इंडिया’ के सपने को साकार करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान और ‘फ्यूचर स्किल्स प्राइम’ जैसे कार्यक्रमों में धन और प्रोत्साहन के निवेश किए जाने चाहिए।
ब्राडबैंड विस्तार और गुणवत्ता सुधार परियोजनाओं में तेजी लाने और उत्प्रेरित करने के लिए कार्यान्वयन और लेखापरीक्षा कार्यबलों का निर्माण किया जाना चाहिए। दूरसंचार और इंटरनेट क्षेत्रों में निजी भागीदारों और निवेशकों को शामिल किया जा सकता है। विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए दीक्षा, निष्ठा, स्वयं आदि जैसे विभिन्न प्रौद्योगिकी और कौशल मंचों के विकास के लिए निवेश करना एक स्वागत योग्य कदम होगा।
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआइओएस) के पूर्व निदेशक और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के शिक्षा विद्यालय के निदेशक सीबी शर्मा का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने सबसे अधिक जोर बुनियादी शिक्षा पर दिया है। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि इस बजट ने बुनियादी शिक्षा देने के लिए विद्यालयों व आंगनबाड़ियों को बेहतर करने के लिए अधिक धन दिया जाएगा।
शर्मा ने कहा कि शिक्षा नीति में शिक्षकों के प्रशिक्षण की बात भी कही गई है। शिक्षक प्रशिक्षण के सरकारी संस्थानों को धन देना होगा तभी वे अपने कार्य को सही ढंग से कर पाएंगे। अनुसंधान पर जोर देने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान शुरू करने की बात भी कही गई थी। देश में अनुसंधान को बढ़ाने के लिए इस प्रतिष्ठान को शुरू करने के साथ शोध के लिए भी पैसा देना होगा।
पिछले कुछ सालों में अनुसंधान पर खर्च तो बढ़ा है लेकिन उसका प्रभाव नहीं दिख रहा है। इसके अलावा शर्मा ने कहा कि देश में जिस डिजिटल विश्वविद्यालय को शुरू करने की बात की जा रही, उसे नया संस्थान खोलने के स्थान पर इग्नू जैसे संस्थान को डिजिटल विश्वविद्यालय में बदलना चाहिए। उनका कहना था कि नए संस्थान के परिणाम आने में कई साल लग जाते हैं जबकि इग्नू ने इस क्षेत्र में अपनी क्षमता साबित की है।
जैन (डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी), बंगलुरु के कुलपति राज सिंह के मुताबिक उच्च शिक्षा संस्थानों में अधिक उदार वित्त पोषण के माध्यम से अनुसंधान को बढ़ावा देने की जरूरत है, जो वर्तमान में ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के लिए उपलब्ध है, जबकि निजी क्षेत्र के संस्थानों में कुल नामांकन का दो-तिहाई हिस्सा है।
साथ ही, भारत में अधिकांश शोध निधि (लगभग 60 फीसद) सरकारी एजंसियों से आती है। अधिकांश विकसित देशों की तरह निजी उद्योगों से वित्त पोषण बढ़ाने की आवश्यकता है। बजट में उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान को वित्तपोषित करने वाले उद्योगों को आकर्षक कर कटौती आदि के रूप में प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए।