कहते हैं कि आचार्य द्रोणाचार्य ने महाभारत काल में पांडवों और कौरवों को शस्त्र विद्या देहरादून के इसी क्षेत्र में दी, जहां पर आजकल भारतीय सैन्य अकादमी है। लिहाजा भारतीय सैन्य अकादमी के मुख्य प्रवेश द्वार का नाम द्रोण द्वार रखा है। 90 साल पहले देहरादून के चकराता रोड में भारतीय सैन्य अकादमी की स्थापना 10 दिसंबर 1932 को की गई थी।
अकादमी का उद्घाटन तत्कालीन भारतीय कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल सर फिलिप चेटवुड ने किया था और आगे चलकर अकादमी के मुख्य भवन और प्रमुख सभा भवन तथा परेड ग्राउंड का नाम चेटवुड के नाम पर किया गया। भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून का ध्येय वाक्य वीरता और विवेक है। भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून दरअसल भारतीय थल सेना का कुशल नेतृत्व करने वाले अन्य अधिकारियों को प्रशिक्षण देने की उत्कृष्ट और सर्वोच्च पाठशाला है। उन्हें सेना का नेतृत्व करने के गुर सिखाए जाते हैं।
भारतीय सैन्य अकादमी अब तक 62 हजार से ज्यादा सैन्य अफसरों को भारतीय सेना में भेज चुकी है। इसके अलावा मित्र देशों की सेना में भी भारतीय सैन्य अकादमी 3,000 से ज्यादा कुशल सैन्य अफसरों को भेजने में सफल रही है। इससे मित्र देशों के संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने में भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
भारतीय सैन्य अकादमी ने अपने 90 सालों के इतिहास में भारतीय सेना को फील्ड मार्शल मानिकशा राड्रिक्स करिअप्पा वेद प्रकाश मालिक जनरल बिपिन चंद्र जोशी बिपिन रावत जैसे प्रसिद्ध थल सेना अध्यक्ष दिए हैं। मानिकशा भारतीय थल सेना के पहले फील्ड मार्शल है जिनके नेतृत्व में 1971 में भारत-पकिस्तान की लड़ाई लड़ी गई और भारतीय सेना ने विश्व के भूगोल को ही बदल दिया और पाकिस्तान का बंटवारा होकर नया राष्ट्र बांग्लादेश बना। इस तरह भारतीय सेना अकादमी देहरादून ने भारतीय सेना को कुशल नेतृत्व के गुण दिए हैं ।
90 सालों से अपनी परंपरा को भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून पूरी निष्ठा और आस्था के साथ संभाल रहा ैहै। जहां भारतीय युवाओं को कुशल सैन्य अफसर के रूप में पारंपरिक और आधुनिक सैन्य सुविधाओं से युक्त प्रशिक्षण दिया जाता है और 90 सालों में भारतीय सैन्य अकादमी ने अनेक परिवर्तन के दौर से गुजर कर अपने को आधुनिक लड़ाई के तौर-तरीकों में ढालने का काम किया है।
भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून की जनसंपर्क अधिकारी कर्नल हिमानी बताती हैं कि अकादमी का दीक्षांत समारोह हर साल दो बार होता है जो जून और दिसंबर महीने के दूसरे शनिवार को किया जाता है। इस पासिंग आउट परेड का जेंटलमैन कैडेट्स और उनके परिजनों को बेसब्री से इंतजार रहता है। उन्होंने बताया कि इस साल दिसंबर के महीने में हुई पासिंग आउट परेड में 314 कैडेट्स भारतीय सेना में अफसर बन कर शामिल हुए हैं।
और इस बार पासिंग आउट परेड के मुख्य अतिथि भारतीय थल सेना के मध्य कमान के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डिमरी रहे। उन्होंने पासिंग आउट परेड की सलामी ली। लेफ्टिनेंट जनरल वीके मिश्रा इस समय भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून के सेनानायक हैं। इनके नेतृत्व में भारतीय सैन्य अकादमी में कई क्रांतिकारी परिवर्तन किए गए हैं।