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10 लाख लुप्तप्राय प्रजातियों पर दस्तावेज रहे अनदेखे

अंग्रेजी को अंतरराष्ट्रीय विज्ञान की भाषा माना जाता है, लेकिन नए शोध से पता चला है कि अन्य भाषाओं में वैज्ञानिक ज्ञान पर किए जा रहे अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्यों की जानकारी ही नहीं मिल पा रही है।

10 लाख लुप्तप्राय प्रजातियों पर दस्तावेज रहे अनदेखे
10 लाख लुप्तप्राय प्रजातियों पर शोध किए गए।

अंग्रेजी को अंतरराष्ट्रीय विज्ञान की भाषा माना जाता है, लेकिन नए शोध से पता चला है कि अन्य भाषाओं में वैज्ञानिक ज्ञान पर किए जा रहे अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्यों की जानकारी ही नहीं मिल पा रही है। यह चूक विलुप्ति की कगार पर खड़ी दस लाख प्रजातियों की दुर्दशा को सुधारने में मदद करने के अवसर गंवा रही है।

यूनिवर्सिटी आफ क्वींसलैंड की तत्सूया अमानो के मुताबिक, वैश्विक संरक्षण विज्ञान पर हावी है अंग्रेजी भाषा। इस कारण कई शोध पत्र लगभग अनदेखे रह जाते हैं। अमानों का कहना है, हमने जैव विविधता संरक्षण पर लगभग 4,20,000 सहकर्मी-समीक्षित पत्रों की समीक्षा की, जो अंग्रेजी के अलावा अन्य 16 भाषाओं में प्रकाशित हुए। कई गैर-अंग्रेजी-भाषा के शोध-पत्रों में संरक्षण उपायों की प्रभावशीलता पर साक्ष्य दिए गए हैं। वे व्यापक वैज्ञानिक समुदाय के लिए प्रकाशित नहीं हो पाते हैं।

कई मूल्यवान वैज्ञानिक खोज मूल रूप से अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में प्रकाशित हुई थीं। नोबेल पुरस्कार विजेता मलेरिया-रोधी दवा की संरचना पहली बार 1977 में सरलीकृत चीनी भाषा में प्रकाशित की गई थी, जैसा कि कोविड-19 पर सबसे शुरुआती शोध-पत्र प्रकाशित हुए थे।
साक्ष्य आधारित संरक्षण पृथ्वी के जैव विविधता संकट से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण है। हमारे शोध से पता चलता है कि विज्ञान में भाषा की बाधाओं को पार करने, संरक्षण में वैज्ञानिक योगदान को बढ़ाने और इस ग्रह पर जीवन को बचाने में मदद करने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

यह शोध द कन्वरसेशन में छपा है, जिसमें बताया गया है कि संरक्षण महत्त्वपूर्ण है। अधिकतर वैज्ञानिक अंग्रेजी को पहली या दूसरी भाषा के रूप में बोलते हैं। कई अकादमिक पुरस्कार कार्यक्रमों का झुकाव अंतरराष्ट्रीय अंग्रेजी-भाषा पत्रिकाओं में प्रकाशित होने की ओर है। लेकिन जैव विविधता संरक्षण में महत्त्वपूर्ण साक्ष्य नियमित रूप से उन क्षेत्र संरक्षणवादियों और वैज्ञानिकों द्वारा दिए जाते हैं, जो अंग्रेजी में कम धाराप्रवाह हैं। वे अक्सर अपनी पहली भाषा में काम प्रकाशित करना पसंद करते हैं – जोकि कई लोगों के लिए अंग्रेजी भाषा नहीं है।

गैर-अंग्रेजी भाषा के कई अध्ययनों में ऐसी प्रजातियां शामिल थीं, जिनपर अंग्रेजी में बहुत कम या न के बराबर पत्र प्रकाशित हुआ है। गैर-अंग्रेजी अध्ययनों को शामिल करने से वैज्ञानिक ज्ञान का विस्तार 12-25 फीसद अधिक भौगोलिक क्षेत्रों और पांच से 32 फीसद अधिक प्रजातियों में होगा।
जैव विविधता संरक्षण पर एक तिहाई से अधिक वैज्ञानिक दस्तावेज अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में प्रकाशित होते हैं। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के ज्ञान का शायद ही कभी उपयोग किया जाता है। स्पष्ट रूप से, जैव विविधता संकट सहित किसी भी वैश्विक चुनौती से निपटना, सर्वोत्तम उपलब्ध ज्ञान के इस्तेमाल पर टिका है, चाहे वह किसी भी भाषा में उपलब्ध हो।

गैर-अंग्रेजी-भाषा के विज्ञान का सर्वोत्तम उपयोग करना अंग्रेजी-भाषा के विज्ञान में अंतर को भरने का एक तेज और किफायती तरीका हो सकता है। हमारा शोध गैर-अंग्रेजी-भाषा के अध्ययनों को समन्वित करने और इस ज्ञान को अंग्रेजी में उपलब्ध कराने के लिए और अधिक प्रयास करने की सिफारिश करता है, ताकि इसे वैश्विक जनता तक पहुंचाया जा सके।और अनुसंधान परियोजनाओं में विभिन्न भाषाओं के देशी जानकारों को शामिल करना चाहिए।

शोध में कहा गया है कि पृथ्वी पर विलुप्त होने के संकट को रोकने का सबसे अच्छे तरीके के रूप में, हमें दुनिया भर के लोगों के कौशल, अनुभव और ज्ञान का उपयोग करना चाहिए।जब शोधकर्ताओं ने ऐसा करने से मना किया तो फेसबुक ने अपने मंच तक उनकी पहुंच बंद कर दी।हालांकि, संघीय व्यापार आयोग ने सार्वजनिक रूप से इस दावे को खारिज कर दिया और सार्वजनिक हित में अनुसंधान के लिए अपने समर्थन पर जोर दिया जिसका उद्देश्य ‘विशेष रूप से निगरानी आधारित विज्ञापन के आसपास अपारदर्शी व्यावसायिक चलन पर प्रकाश डालना’ है। सोशल मीडिया मंच को निश्चित तौर पर उनके विज्ञापन के तरीके के लिए सार्वभौमिक पारदर्शिता प्रदान करनी चाहिए।

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First published on: 12-10-2021 at 00:03 IST
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