बॉम्बे हाईकोर्ट इस हफ्ते एक बार फिर से दाऊदी बोहरा संप्रदाय के मौजूदा नेता और उनके पद को चुनौती देने वाले शख्स के बीच विवाद की सुनवाई करेगा। आठ साल से अधिक समय से चल रही इस मामले की सुनवाई के अगले महीने समाप्त होने की उम्मीद है।
क्या है विवाद?
दाउदी बोहरा शिया मुसलमानों के बीच एक धार्मिक संप्रदाय हैं, परंपरागत रूप से व्यापारियों और उद्यमियों का एक समुदाय। भारत में इसके 5 लाख से अधिक सदस्य हैं और दुनिया भर में 10 लाख से अधिक सदस्य हैं। समुदाय के शीर्ष धार्मिक नेता को दाई-अल-मुतलक के रूप में जाना जाता है। 2014 में 52 वें दाई-अल-मुतलक, सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन का निधन हो गया और उनके बेटे मुफद्दल सैफुद्दीन उनके उत्तराधिकारी बने। इसे दिवंगत सैयदना के सौतेले भाई खुजायमा कुतुबुद्दीन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति गौतम एस पटेल नवंबर 2022 से इस मुकदमे की सुनवाई कर रहे हैं।
कैसे चुना जाता है दाऊदी बोहरा संप्रदाय का नेता?
विश्वास और दाऊदी बोहरा सिद्धांत के अनुसार, एक उत्तराधिकारी को ईश्वरीय प्रेरणा के माध्यम से नियुक्त किया जाता है। एक ‘नास’ (उत्तराधिकार का सम्मान) समुदाय के किसी भी योग्य सदस्य को प्रदान किया जा सकता है और जरूरी नहीं कि वह वर्तमान दाई के परिवार का सदस्य हो। हालांकि, अक्सर ऐसा ही होता है।
क्या हैं सैयदना कुतुबुद्दीन के दावे?
कुतुबुद्दीन ने अप्रैल 2014 में एक मुकदमा दायर किया था जिसमें हाईकोर्ट से दिवंगत सैयदना के बेटे को दाई-अल-मुतलक के रूप में कार्य करने से रोकने के लिए कहा गया था। उन्होंने मुंबई में सैयदना के घर सैफी मंजिल में भी प्रवेश की मांग की। उन्होंने यह आरोप लगाया कि सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन ने छल से नेतृत्व पर कब्जा किया था।
कुतुबुद्दीन ने दावा किया कि 1965 में बुरहानुद्दीन के नए दाई-अल-मुतलक बनने के बाद जब उन्होंने उनके पिता सैयदना ताहेर सैफुद्दीन से पदभार ग्रहण किया था। उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने सौतेले भाई को माज़ून (सेकेंड कमांड) नियुक्त किया था और निजी तौर पर एक सीक्रेट नास में उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपाइंट किया था। 10 दिसंबर, 1965 को मज़ून की घोषणा से पहले।
कुतुबुद्दीन ने दावा किया कि बुरहानुद्दीन ने उन्हें इस बात को गुप्त रखने के लिए कहा था
सैयदना कुतुबुद्दीन ने कहा कि सार्वजनिक नियुक्ति में उच्च आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति ने यह समझा कि माज़ून की उपाधि के साथ-साथ उन्हें मंसूस (उत्तराधिकारी) की उपाधि भी दी गई थी, हालांकि बाद वाले को उतने साफ शब्दों में नहीं बताया गया था। कुतुबुद्दीन ने दावा किया कि बुरहानुद्दीन ने उन्हें निजी नास को गुप्त रखने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि उन्होंने 52वें दाई द्वारा दी गई गोपनीयता की शपथ का पालन उनकी मृत्यु तक किया था।
सीनियर वकील आनंद देसाई ने तर्क दिया कि दाई एकांत में इमाम की दिव्य प्रेरणा के आधार पर एक उत्तराधिकारी की नियुक्ति करता है। ‘नास’ या उत्तराधिकारी की नियुक्ति को बदला या रद्द नहीं किया जा सकता है। कुतुबुद्दीन की मौत 2016 में अमेरिका में हुई थी। तब से उनके बेटे सैयदना ताहेर फखरुद्दीन वादी हैं और अब हाई कोर्ट द्वारा नेता के रूप में घोषणा की मांग कर रहे हैं। फखरुद्दीन ने दावा किया है कि उनके पिता ने उन्हें नास प्रदान किया और इस प्रकार उन्हें दाई घोषित किया जाना चाहिए।
सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन का दावा
प्रतिवादी सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं इकबाल चागला, जनक द्वारकादास और फ्रेडुन देवीत्रे के माध्यम से अपना पक्ष सामने रखा। गवाहों ने यह दिखाने के लिए दस्तावेज पेश किए कि 52वें दाई ने 1969 में अपने बेटे (प्रतिवादी) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का इरादा बनाया था और समुदाय के करीबी और वरिष्ठ सदस्यों को इसके बारे में सूचित किया था और 2005 में इस बात को गुप्त रूप से दोहराया गया था और जून 2011 में सार्वजनिक रूप से पुन: पुष्टि की गई।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने पीठ को बताया कि 4 जून, 2011 को 52वें दाई ने सैयदना सैफुद्दीन को लंदन के बुपा क्रॉमवेल अस्पताल में गवाहों की मौजूदगी में नास दिया था, जहां उन्हें दौरा पड़ने के बाद भर्ती कराया गया था। वहीं, प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकीलों ने 2011 और 2014 के बीच दाई के पद पर अपने दावे के बारे में सैयदना कुतुबुद्दीन द्वारा रखी गई चुप्पी पर सवाल उठाया और कहा कि उन्होंने केवल दाई के निधन के बाद एक मौके के तौर पर इस पर दावा किया।