पांच सौ और 1 हजार के पुराने नोट बदलने के लिए एक विधवा महिला की अर्जी को लेकर सीनियर ए़डवोकेट प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाते रहे लेकिन अदालत ने उनकी बात को सुनने से भी इनकार कर दिया। डबल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले का हवाला देकर कहा कि वो लाचार हैं। कुछ भी नहीं कर सकते।
डबल बेंच ने हालांकि ये कहा कि अगर आप चाहें तो केंद्र के पास अर्जी लेकर जा सकते हैं। अगर जाएंगे तो उनको 12 हफ्ते में फैसला करना होगा। दरअसल महिला के पति की मौत हो गई थी। उसे पुराने नोटों का पता तब चला जब नोट तब्दील करने की तारीख निकल चुकी थी। प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से दरखास्त की कि महिला बेहद दयनीय हालत में है। उसकी दरखास्त पर अदालत सुनवाई करके सरकार को आदेश जारी करे।
जज बोले- हम आर्टिकल 142 के तहत आदेश जारी नहीं कर सकते
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रमनाथ की बेंच ने कहा कि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच फैसला दे चुकी है। वो इससे इतर कोई आदेश जारी नहीं कर सकते। उनका कहना था कि हम मान रहे हैं कि लोगों को भारी कठिनाई पेश आ रही हैं। हम मानते हैं कि उनकी दिक्कतें वास्तविक हैं। लेकिन संवैधानिक बेंच के फैसले के बाद हम आर्टिकल 142 के तहत कोई ऐसा आदेश जारी नहीं कर सकते, जिसमें व्यक्तिगत आवेदन पर सरकार को पुराने नोट तब्दील करने का आदेश दिया जाए।
अपने-अपने हाईकोर्ट में नोटबंदी के फैसले को दे सकते हैं चुनौती
याचिकाकर्ता की दलील पर बेंच ने अपने आदेश में एक अहम पहलू जोड़ते हुए कहा कि वो पीड़ित चाहें तो केंद्र के 2016 के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगा सकते हैं। उनका कहना था कि किसी को व्यक्तिगत स्तर पर केंद्र के फैसले पर आपत्ति है तो वो अपने इलाके में मौजूद हाईकोर्ट में रिट लगाने के लिए स्वतंत्र है।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला संवैधानिक बेंच के उस आदेश के तीन माह बाद आया है, जिसमें पांच जजों की बेंच ने केंद्र के नोटबंदी के उस फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया था जिसमें एक झटके में 86 फीसदी करेंसी को बाजार से हटा लिया गया। पांच जजों की बेंच में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थीं।
नागरत्ना के अलावा बाकी जजों ने केंद्र के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया। जबकि नागरत्ना का मानना था कि केंद्र का फैसला ठीक नहीं था। लीगल ग्राउंड पर संवैधानिक बेंच इसे खारिज करे। लेकिन मेजोरिटी ने केंद्र के फैसले में कोई भी दखल देने से इनकार कर दिया। जस्टिस गवई ने आज उसी फैसले का हवाला दिया।