यह फैसला किसानों के ट्रैक्टर रैली में हिस्सा लेने की तैयारियों के बीच हरियाणा के अधिकांश गांवों में किया गया और कहा गया कि इस ट्रैक्टर रैली में उनके वाहन को किसी भी तरह के नुकसान की समुचित भरपाई की जाएगी। सोमवार को कैथल के गांव पाई में आहूत महापंचायत के दौरान वहां सभी ग्रामीणों ने एक सुर में यह फैसला लिया कि ट्रैक्टर रैली में हिस्सा लेने वाले आंदोलनरत किसानों की यथासंभव मदद की जाएगी, जिन्होंने केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरोधस्वरूप अपनी आवाज बुलंद कर रखी है। ग्राम समिति के सदस्य राम मेहर ढुल का कहना है, ‘यदि उस दिन किसी भी किसान भाई के ट्रैक्टर को यदि कोई नुकसान पहुंचता है तो हम उन्हें यथोचित मुआवजा अदा करेंगे। अपनी 30 हजार लोगों की आबादी के साथ यह गांव प्रदेश में सबसे बड़े गांवों में से एक है।’ ढुल के मुताबिक, 22 जनवरी को यहां से दिल्ली के लिए कम से कम 250 ट्रैक्टर कूच करेंगे और फिर 26 जनवरी को वहां ट्रैक्टर रैली का हिस्सा बनेंगे। उनके शब्दों में, ‘प्रत्येक 20 ट्रैक्टरों के लिए एक-एक ट्रॉली का बंदोबस्त किया जाएगा ताकि उनमें राशन, कपड़े आदि सामान भरकर रखा जा सके। हमारे गांव की पहल पर टिकरी सीमा पर पहले ही एक लंगर वहां बीती दो दिसंबर से लगातार चल रहा है जहां आंदोलनकारी किसानों को खाना दिया जाता है। खानपान और किसानों को सीमा पर लेकर जाने पर हमारा गांव अब तक 25 लाख रुपए पहले ही खर्च कर चुका है। इस बार भी हम पीछे नहीं हटेंगे और जब तक केंद्र सरकार कृषि कानूनों को वापिस नहीं लेती, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।’ जिला हिसार में गांव सिसाई के रहने वाले प्रदीप साहिब का भी यही कहना है कि गांववासियों ने ट्रैक्टर रैली के दौरान किसी भी वाहन को होने वाले नुकसान की भरपाई करके देने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि जहां भी बात चले तो किसान आंदोलन का विषय जरूर आता है। विचार बदल भी सकते हैं : उच्चतम न्यायालय पहले के व्यक्त किए गए विचार का यह मतलब नहीं है कि किसी व्यक्ति को उस मुद्दे से जुड़ी समिति में नियुक्त नहीं किया जा सकता है, क्योंकि विचार बदल भी सकते हैं। यह टिप्पणी मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने की। उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी का इसलिए महत्व है कि नए कृषि कानूनों पर किसानों और केंद्र के बीच जारी गतिरोध का समाधान करने के लिए हाल में गठित समिति के कुछ सदस्य पहले इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कर चुके थे। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और समिति के सदस्य भूपेंद्र सिंह मान ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह चार सदस्यीय समिति से खुद को अलग कर रहे हैं। बहरहाल एक अन्य मामले की सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश एसए. बोबडे की पीठ ने कहा, ‘एक समिति गठित की गई है और अगर व्यक्ति ने मुद्दे पर पहले अपने विचार व्यक्त किए हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि वह व्यक्ति समिति में नहीं रह सकता है।’ पीठ ने कहा, ‘समिति गठित करने के बारे में समझ की अजीब कमी है।’ पीठ में न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति विनीत शरण भी थे, जो आपराधिक मामलों की सुनवाई में खामियों से जुड़ी याचिका पर गौर कर रहे थे। पीठ ने कहा कि समिति का सदस्य बनने से पहले किसी व्यक्ति का किसी मुद्दे पर कुछ विचार हो सकता है लेकिन विचार बदल सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने 12 जनवरी को एक अंतरिम आदेश में नए कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी और शिकायतों पर सुनवाई करने और गतिरोध समाप्त करने के लिए अनुशंसा करने की खातिर चार सदस्यीय एक समिति का गठन किया था। तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश सहित देश के अलग-अलग हिस्से के किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर एक महीने से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। कृषि कानूनों की वापसी उचित नहीं : घनवट केंद्र के तीन कृषि कानूनों को लेकर सार्वजनिक रूप से ‘सरकार समर्थक’ राय व्यक्त करने के लिए प्रदर्शनकारी किसानों के हमले का सामना कर रहे सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्यों ने मंगलवार को कहा कि वे विभिन्न हितधारकों से चर्चा के दौरान अपनी विचारधारा व रुख को अलग रखेंगे। मामले को सुलझाने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा गठित समिति के सदस्यों ने मंगलवार को अपनी पहली बैठक की। बैठक के बाद समिति के अहम सदस्य व महाराष्ट्र में सक्रिय शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट ने कहा कि कृषि क्षेत्र में सुधार की बहुत जरूरत है और अगर इन कानूनों को वापस लिया जाता है तो कोई भी राजनीतिक पार्टी अगले 50 साल में इसकी कोशिश नहीं करेगी। घनवट के अलावा कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और प्रमोद कुमार जोशी समिति के अन्य दो सदस्य हैं जो पहली बैठक में शामिल हुए। समिति की पहली बैठक के बाद घनवट ने कहा कि समिति, कानून का विरोध करने वालों और समर्थन करने वालों सहित सभी किसानों की सुनेगी और उस के अनुरूप रिपोर्ट तैयार शीर्ष अदालत में जमा करेगी। उन्होंने कहा कि पिछले 70 साल से लागू कानून किसानों के हित में नहीं थे और करीब 4.5 लाख किसानों ने आत्महत्या की। घनवट ने बताया, ‘आज की बैठक में हमने 21 जनवरी सुबह 11 बजे किसानों और सभी हितधारकों के साथ बैठक करने का फैसला किया। हम यह बैठक आमने-सामने और डिजिटल दोनों माध्यम से किसानों की सुविधा अनुसार करेंगे।’ उन्होंने बताया कि किसानों, केंद्र और राज्य सरकारों के अलावा समिति किसान संगठनों और अन्य हितधारकों जैसे कृषि उत्पाद निर्यातक, व्यापारी, मिल मालिक, डेयरी और पॉल्ट्री उद्योग से भी इन कृषि कानूनों पर उनकी राय लेगी। सुझावों को आमंत्रित करने के लिए जल्द वेबसाइट लांच की जाएगी।