रूस के वैज्ञानिकों ने गाय के ‘क्लोन’ को तैयार करने के लिए इसके भ्रूण के जीन में मन मुताबिक बदलाव किया। फिर इस भ्रूण को गाय के गर्भ में डाल दिया गया। पैदा होने के बाद नए बछड़े की जांच करके यह जाना गया कि उसमें बदलाव हुए हैं या नहीं। जीन में मन मुताबिक बदलाव करने की तकनीक को ‘जीन एडिटिंग’ तकनीक कहते हैं। जीन एडिटिंग की मदद से डीएनए में बदलाव किया जाता है। आसान भाषा में समझें, तो भ्रूण के जीन का खराब, गड़बड़ या गैरजरूरी हिस्सा हटा दिया जाता है ताकि अगली पीढ़ी में इसका गलत असर न दिखे। इस तकनीक की मदद से आनुवांशिक रोगों में सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।
इस तरह का प्रयोग आमतौर पर चूहों में अधिक किया जाता है। दूसरे बड़े जानवरों में ‘क्लोनिंग’ करने पर खर्च अधिक आने के साथ उनके प्रजनन में भी मुश्किलें आती हैं। शोध में जुटे वैज्ञानिकों के मुताबिक, एलर्जी का खतरा घटाने के लिए जीन से उस प्रोटीन को हटा दिया गया है जो इंसानों में ‘लैक्टोज इंटॉलरेंस’ यानी दूध से होने वाली एलर्जी की वजह बनता है। उस जीन के कारण इंसान में दूध पच नहीं पाता।
रूस में जिस गाय के साथ यह प्रयोग किया गया है, उसका जन्म अप्रैल, 2020 में हुआ था। उसका वजन करीब 63 किलो है। इस प्रयोग में शामिल ‘अर्नेस्ट साइंस सेंटर फॉर एनिमल हस्बैंड्री’ की शोधकर्ता गेलिना सिंगिना के मुताबिक, ‘क्लोन’ से तैयार गाय ने रोजाना दूध देना शुरू कर दिया है। इसे अभी पूरी तरह से तैयार होना बाकी है। हालांकि, इसमें बदलाव तेजी से दिख रहे हैं। वे कहती हैं कि अभी एक गाय की क्लोनिंग की गई है, परीक्षण की अभी शुरुआत ही हुई है। भविष्य में ऐसी दर्जनों गाय तैयार की जा सकती हैं। हमारा लक्ष्य गायों की ऐसी नस्ल को तैयार करना है, जिसके दूध से एलर्जी न हो सके।
इससे पहले न्यूजीलैंड में ‘क्लोन’ से गाय तैयार की गई है। वहां के वैज्ञानिकों ने गायों के जीन ने ऐसा बदलाव किया था कि इनके शरीर का रंग हल्का पड़ जाए। रंग हल्का होने के कारण सूरज की किरणें परावर्तित हो जाती हैं और गायों को गर्मी से बचाती हैं। रूस और न्यूजीलैंड- दोनों जगह हो रहे प्रयोगों को वैज्ञानिक ‘जीन एडिटिंग’ तकनीक कहते हैं। न्यूजीलैंड में चल रहे शोध से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक, आमतौर पर गायों शरीर पर काले चकत्ते दिखते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग तकनीक से इसका रंग धूसर कर दिया है। यह प्रयोग करने वाले न्यूजीलैंड के रुआकुरा रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों का दावा है कि जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ने पर तापमान बढ़ेगा। ऐसे में गायों के शरीर पर धूसर रंग गर्माहट को कम अवशोषित करेगा और उन्हें नुकसान कम पहुंचेगा।
न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में बछड़े के दो भ्रूण तैयार किए। जीन एडिटिंग के जरिए भ्रूण के जीन का वो हिस्सा हटा दिया, जो काले रंग के चकत्ते के लिए जिम्मेदार है। फिर इस भ्रूण को गाय में स्थानांतरित कर दिया। गाय ने दो बछड़ों को जन्म दिया। बछड़ों के शरीर पर धूसर रंग के चकत्ते थे। वैज्ञानिकों का दावा है कि काला रंग सूर्य की रोशनी से निकली गर्माहट को अधिक अवशोषित करता है। जब सूर्य की किरणें जानवरों पर पड़ती हैं तो काले चकत्ते वाला हिस्सा इन्हें अधिक अवशोषित करता है और ये ‘हीट स्ट्रेस’ का कारण बनती हैं। ‘हीट स्ट्रेस’ का बुरा असर जानवरों में दूध की मात्रा और बछड़ों को पैदा करने की क्षमता पर पड़ता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, गर्मियों में डेयरी फार्म के जानवर 25 से 65 डिग्री फारेनहाइट तापमान तक गर्मी सहन कर लेते हैं। जब तापमान 80 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच जाता है, तो हीट स्ट्रेस बढ़ जाता है। नतीजा, ये चारा खाना कम कर देते हैं। इस कारण दूध का उत्पादन घट जाता है। हीट स्ट्रेस के कारण जानवरों की प्रजनन क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है।
रूस के वैज्ञानिकों ने ऐसी ‘क्लोन’ गाय तैयार की है, जिसके जींस में से वे प्रोटीन हटा दिए गए हैं जो इसे पचाने में दिक्कत करते थे। इससे दूध से होने वाली ‘एलर्जी’ रोकी जा सकेगी। यह खोज महत्त्वूर्ण मानी जा रही है। दुनियाभर में 70 फीसद लोगों को दूध से किसी न किसी तरह की ‘एलर्जी’ है। इसी को नियंत्रित करने के लिए रूस में वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं। दूसरी ओर, न्यूजीलैंड के वैज्ञानिक गायों को गर्मी से बचाने के लिए जीन में बदलाव पर काम कर रहे हैं।