कोरोना के कहर से कम फीस वाले कई स्कूलों के बंद होने का खतरा: फीस आ नहीं रही, वेतन-किराया तक पर आफत
आर्थिक संकट के चलते छात्रों के परिजन फीस नहीं दे सके हैं। ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली बहुत सारे कम फीस वाले स्कूलों को खुद को बचाए रखने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ रहा है।

कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के चलते उपजे आर्थिक संकट का निजी स्कूलों पर खासा असर पड़ा है। ये स्कूल महीनों तक शिक्षकों को वेतन देने असमर्थ रहे, स्कूल की इमारत का किराया देने का दबाव भी बढ़ रहा है। आर्थिक संकट के चलते छात्रों के परिजन फीस नहीं दे सके हैं। ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बहुत सारे कम फीस वाले स्कूलों को खुद को बचाए रखने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ रहा है।
माधुरी अग्रवाल दक्षिण पश्चिम दिल्ली के द्वारका के पोचनपुर में प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए एक प्राथमिक विद्यालय चलाती हैं। स्कूल में नर्सरी के छात्रों की प्रतिमाह फीस 600 रुपए और हर बढ़ती क्लास में 50 रुपए जोड़ दिए जाते हैं। माधुरी कहती हैं कि उनके विनर्ज पब्लिक स्कूल में 300 छात्र पढ़ते हैं। हमारा स्कूल नो-प्रॉफिट, नो-लॉस मॉडल पर चलता है।
उन्होंने कहा कि फीस के रूप में जो भी धन इकट्ठा होता है उसे स्कूल में लगाया जाता है। हमारे स्कूल में पढ़ रहे छात्रों के लगभग 99 फीसदी माता-पिता मजदूर हैं, चिनाई या बढ़ई का काम करते हैं। बहुत सी माताएं नौकरानी का भी काम करती हैं। ऐसे में पूरे लॉकडाउन के दौरान किसी भी छात्र के परिजन फीस का भुगतान करने में सक्षम नहीं रहे। अप्रैल हम ना तो अपने शिक्षकों और ना ही किराए का भुगतान कर पाए हैं।
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इसी तरह सुशील धनखड़ दक्षिण दिल्ली के संगम विहार में नर्सरी से कक्षा 12 तक हरि विद्या भवन स्कूल चलाते हैं। वो कहते हैं कि चार फीसदी छात्रों के परिजनों ने अप्रैल में फीस जमा की थी और उसके बाद के महीनों में कोई फीस जमा नहीं की गई।
धनखड़ ने बताया, ‘मैंने अप्रैल माह में स्कूल के कर्मचारियों को वेतन दिया। मई में अपनी निजी सेविंग से उनके वेतन का पचास फीसदी भुगतान किया। अब मैं जून माह का कर्मचारियों का वेतन देने की स्थिति में नहीं हूं। मैंने सभी से स्कूल दोबारा खुलने और फीस मिलते ही उनके बकाए का भुगतान करने का वादा किया है।’ धनखड़ कहते हैं कि हम प्राथमिक छात्रों के लिए प्रति माह एक हजार रुपए और उच्च माध्यमिक छात्रों के लिए 2200 का शुल्क लेते हैं।