Coronavirus Vaccine HIGHLIGHTS: वैक्सीन में दौड़ में कौन सा देश पहुंचा कहां? जानें
भारत में कोरोनावायरस के केस 23 लाख के पार हो चुके हैं, हालांकि देश में किसी भी वैक्सीन को मंजूरी मिलने में दो-तीन महीने का समय लग सकता है।

Coronavirus (Covid-19) Vaccine HIGHLIGHTS: दवा कंपनी अरविंदो फार्मा ने उम्मीद जताई है कि वह कोविड-19 की अपनी प्रस्तावित वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण का परीक्षण 2020 के अंत तक करेगी, जबकि तीसरा चरण अगले साल मार्च-अप्रैल के दौरान किया जा सकता है। अरविंदो फार्मा के प्रबंध निदेशक नारायणन गोविंदराजन ने विश्लेषकों के साथ हाल में आयोजित एक वार्ता के दौरान कहा कि कंपनी ने चालू वित्त वर्ष के दौरान 15-20 करोड़ अमेरिकी डॉलर के पूंजीगत व्यय का प्रावधान किया है।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 की वैक्सीन का विकास अमेरिका स्थित प्रोफैक्टस बायोसाइंसेज द्वारा किया जा रहा है, जिसे अरविंदो फार्मा की सहायक कंपनी ऑरो वैक्सीन एलएलसी ने अधिग्रहित किया था। गोविंदराजन के अनुसार भारत में कंपनी की वायरल वैक्सीन विनिर्माण क्षमता को दो चरणों तैयार किया जाएगा। पहला चरण अक्टूबर तक और व्यावसायिक संयंत्र अगले साल मार्च तक तैयार हो जाएगा।
उन्होंने कहा, ‘‘वे (ऑरो वैक्सीन) पहले ही एक कोविड-19 वैक्सीन का विकास कर रहे हैं और साथ ही हम भारत में विनिर्माण क्षमता तैयार कर रहे हैं, जिसके दो चरण होंगे।’’ उन्होंने कहा कि क्षमता का पहला चरण अक्टूबर तक तैयार हो जाएगा, जहां हम उत्पाद तैयार करेंगे और साल के अंत तक पहले तथा दूसरे चरण के परीक्षण शुरू करेंगे। बता दें कि दुनियाभर में कोरोनावायरस के बढ़ते केसों के बीच अब एक वैक्सीन के लिए रेस तेज हो चुकी है।
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इस बीच, इस बीच एक खुशखबरी आई है। भारत बायोटेक और आईसीएमआर की कोरोना वैक्सीन- कोवैक्सिन के शुरुआती नतीजे सुरक्षित आए हैं। एक रिपोर्ट में ऐसा दावा किया गया है। बता दें कि कोवैक्सिन के उत्पादन में लिए हैदराबाद की भारत बायोटेक और आईसीएमआर के अलावा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी भी योगदान दे रहा है। बताया गया है कि मरीजों को पहली डोज दी गई थी, उसके प्रभाव अच्छे रहे हैं, जल्द ही उन्हें इस दवा का दूसरा डोज भी दिया जाएगा। एक जांचकर्ता के मुताबिक, अगर सब बेहतर रहा तो 2021 की शुरुआत में ही यह वैक्सीन लॉन्च हो सकती है।
Highlights
रूस के एक हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि स्पूतनिक-V वैक्सीन 18 से 60 साल के लोगों पर सबसे ज्यादा कारगर है। एक्सपर्ट ने यह भी कहा कि रजिस्ट्रेशन के बाद क्लिनिकल स्टडीज से सामने आएगा कि बुजुर्गों पर इसका क्या असर होगा।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ कोरोना की संभावित वैक्सीन पर काम कर रही कंपनी एस्ट्रा जेनेका ने भी दावा किया है कि इसका इंसानी ट्रायल इसी साल नवंबर तक पूरा हो जाएगा। इसके बाद 2021 के शुरुआती महीनों में ही वैक्सीन का उत्पादन कार्य शुरू हो सकता है। कंपनी के मुताबिक, लैटिन अमेरिकी देशों के लिए 2021 में 40 करोड़ टीकों का निर्माण किया जाएगा। बता दें कि मेक्सिको और अर्जेंटीना में पूरे लैटिन अमेरिका के लिए इस वैक्सीन का उत्पादन होगा।
अमेरिकी सरकार भी कोरोना संक्रमण के बढ़ते केसों के मद्देनजर संभावित वैक्सीन को जुटाने पर ध्यान दे रही है। इसके लिए अमेरिका ने अब तक पांच कंपनियों के साथ वैक्सीन के लिए करार कर लिया है। इनमें मॉडर्ना और एस्ट्रा जेनेका समेत अन्य कंपनियां शामिल हैं। इस तरह से अमेरिका अब तक 70 करोड़ वैक्सीन डोज के लिए समझौता कर चुका है। इनमें 30 करोड़ डोज के लिए उसने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्रा जेनेका से करार किया, वहीं नोवावैक्स की संभावित वैक्सीन के 10 करोड़ डोज, सनोफी और ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन के लिए भी उसने 10 करोड़ डोज की सप्लाई का करार किया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि भारत ने प्रतिदिन दस लाख नमूनों की जांच के लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य की कड़ी में कोविड-19 के लिए एक दिन में रिकॉर्ड 8,48,728 नमूनों की जांच की है। मंत्रालय ने कहा कि सतत आधार पर जांच सुविधाएं बढ़ाते रहने की वजह से अब तक देश में कुल 2,76,94,416 नमूनों की जांच की जा चुकी है। इस बीच देश में कोविड-19 से स्वस्थ हुए लोगों की संख्या 17.5 लाख के आंकड़े को पार कर गयी है। मंत्रालय ने कहा कि आक्रामक तरीके से जांच करने, सघन तरीके से मामलों पर नजर रखने और प्रभावी तरीके से उपचार करने से आज की तारीख में संक्रमितों के स्वस्थ होने की दर बढ़कर 71.17 प्रतिशत हो गयी है, वहीं रोगियों के मानकीकृत उपचार प्रोटोकॉल के माध्यम से प्रभावी क्लीनिकल प्रबंधन के परिणामस्वरूप कोविड-19 के रोगियों में मृत्युदर में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है।
विदेश में बन रही किसी भी वैक्सीन को भारत में दूसरे और तीसरे फेज के ट्रायल से गुजरना होगा। इसमें दो से तीन महीने का समय लग सकता है। हालांकि, अगर भारत की ड्रग रेगुलेटरी संस्था आपात मंजूरी दे दे तो विदेश में अप्रूव हुई कोई भी वैक्सीन जल्दी लॉन्च हो सकती है। इससे रूस की स्पूतनिक-वी को भारत में ट्रायल की जरूरत भी नहीं होगी। हाल ही में रेमडेसिविर ड्रग को भी ऐसा ही इमरजेंसी अप्रूवल दिया गया था, ताकि ज्यादा से ज्यादा संक्रमितों की जान बचाई जा सके। हालांकि, रूसी वैक्सीन पर सवाल उठने के बाद भारत किसी भी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहेगा।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को कहा कि भारत कोरोना वायरस का टीका तैयार करने वाले देशों में शामिल होगा और ऐसे में सरकार को इस टीके की उपलब्धता, किफायती दाम और उचित वितरण सुनिश्चित करने के लिए अब काम करना चाहिए। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘ भारत कोविड-19 का टीका तैयार करने वाले देशों में से एक होगा। ऐसे में यह सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट रूप से परिभाषित, समावेशी रणनीति की जरूरत है कि टीके की उपलब्धता और उचित वितरण हो तथा यह किफायती भी हो।’’ कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार को ऐसा अभी करना चाहिए। गौरतलब है कि दुनिया के कई देशों और भारत में भी कुछ स्थानों पर कोरोना वायरस के टीके का परीक्षण चल रहा है।
अमेरिका के वैज्ञानिकों ने ऐसा इनहेलर बनाया है, जो कोरोना को रोकने में कारगर सिद्ध होगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये इनहेलर पीपीई किट से भी ज्यादा सुरक्षित होगा। यह दावा कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में किया है। इस इनहेलर को ऐरोनैब्स नाम दिया गया है, जिसे इस्तेमाल करने के लिए नाक में स्प्रे करना होगा। इस इनहेलर में खास तरह की नैनोबॉडीज हैं, जो एंटीबॉडी से तैयार की गईं। ये एंटीबॉडीज लामा और ऊंट जैसे जानवरों में पाई जाती है, जो शरीर को तगड़ी इम्युनिटी देती हैं। इनहेलर में मौजूद नैनोबॉडीज को लैब में तैयार किया है। ये जेनेटिकली मॉडिफाइड हैं, जो खासतौर पर कोरोना को ब्लॉक करने के लिए विकसित की गई हैं।
हैदराबाद की जेनरिक फार्मा कंपनी MSN ग्रुप ने कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज के लिए सबसे सस्ती दवा 'फेविलो' लॉन्च की है। इसमें फेविपिराविर ड्रग का डोज है। 200 एमजी फेविपिराविर की एक टेबलेट 33 रुपए की होगी। कंपनी के मुताबिक, जल्द ही फेविपिराविर की 400 एमजी टेबलेट भी लॉन्च की जाएगी। कोरोना के मरीजों के लिए पहले भी MSN ग्रुप एंटीवायरल ड्रग ऑसेल्टामिविर को ऑस्लो नाम से लॉन्च कर चुका है। यह 75 एमजी की टेबलेट है।
रूस ने कोरोनावायरस के बढ़ते केसों के बीच वैक्सीन लॉन्च कर दुनियाभर में हलचल मचा दी है। कई देश रूस से इस वैक्सीन को खरीदने के लिए तैयार हैं। इस बीच रूस के एक हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि स्पूतनिक-V वैक्सीन 18 से 60 साल के लोगों पर सबसे ज्यादा कारगर है। एक्सपर्ट ने यह भी कहा कि रजिस्ट्रेशन के बाद क्लिनिकल स्टडीज से सामने आएगा कि बुजुर्गों पर इसका क्या असर होगा।
वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस महामारी से बचने के लिए मास्क को महत्वपू्ण बताया है। अब एक स्टडी में वैज्ञानिकों ने कोरोना से बचाने वाले मास्क की रैंकिंग की है। इसमें सामने आया है कि एन95 मास्क इस वक्त सबसे ज्यादा सुरक्षित है। वहीं, इसके बाद तीन लेयर वाला सर्जिकल मास्क आता है। रिसर्चर्स के मुताबिक, बंडाना या गले के आसपाल बांधा जाने वाला रुमाल नुमा कपड़ा संक्रमण के खतरे से सबसे कम बचाव कर पाता है।
रूस ने सबसे पहले कोरोना वैक्सीन का ऐलान कर दुनियाभर में हलचल मचा दी है। अब कई देश रूस पर भरोसा कर वैक्सीन खरीदने की कोशिश कर रही हैं। इनमें सबसे नया नाम वियतनाम का है। यह दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश रूस से वैक्सीन के लिए बातचीत कर रहा है। इस दौरान वियतनाम देश में वैक्सीन विकसित करना जारी रखेगा। वियतनाम टीवी के मुताबिक, देश में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे हैं।
भारत में कोरोनावायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाने में जुटी कंपनी जायडस कैडिला ने हाल ही में देश में अपना रेम्डेसिविर ड्रग इंजेक्शन लॉन्च किया है। भारत में इसकी कीमत बाकी कंपनियों के इंजेक्शन से कम रखी गई है। इसका दाम हेटेरो कंपनी की दवा की कीमत से 50 फीसदी कम है। वहीं सिप्ला की रेम्डेसेविर की कीमत भी 4 हजार रुपए है, जबकि जुबिलैंट लाइफ साइंसेज ने एक इंजेक्शन की कीमत 4700 रुपए रखी है।
भारत बायोटेक की 'कोवैक्सिन' देश में इस वक्त अन्य वैक्सीनों के मुकाबले ट्रायल के एडवांस स्टेज में है। बताया गया है कि इस वैक्सीन के पहले और दूसरे फेज के ट्रायल के बाद तीसरे फेज में भी इसके नतीजे काफी ठीक आ रहे हैं। हालांकि, भारत बायोटेक इंटरनेशनल की प्रमुख कृष्णा एला वैक्सीन बनाने में कोई जल्दी न करने की बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे ऊपर वैक्सीन विकसित करने का भारी दबाव है, पर हमारे लिए सुरक्षा और क्वालिटी का निर्धारण जरूरी है। हम गलत वैक्सीन से लोगों को मारना नहीं चाहते।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि भारत कोरोना वैक्सीन का निर्माण करने वाले देशों में से एक होगा। हालांकि, उन्होंने सरकार को सलाह देते हुए कहा कि यह तय करना जरूरी होगा कि इस वैक्सीन लिए साफ, समावेशी और न्यायसंगत नीति तैयार हो, ताकि इसका सभी को बराबर, सस्ता और उचित वितरण सुनिश्चित हो।
भारत में कोरोनावायरस से मुकाबले के लिए योजना बनाने में जुटे एक्सपर्ट पैनल की बैठक में कई बड़े फैसले हुए। नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में स्वास्थ्य मंत्रालय क सचिव भी शामिल रहे। बताया गया है कि बैठक में अधिकारियों के बीच अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन उत्पादकों से जुड़ने के साथ घरेलू क्षमता बढ़ाने पर भी चर्चा हुई। इसके अलावा वैक्सीन डोज को तेजी से लोगों तक पहुंचाने के साथ पड़ोसियों को भी इसकी सप्लाई करने पर बात हुई।
दुनियाभर में इस वक्त 160 से ज्यादा वैक्सीन ट्रायल स्टेज में हैं। हालांकि, इन सब में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रा जेनेका की वैक्सीन सबसे आगे है। सेरम इंस्टीट्यूट ने भारत में इस वैक्सीन को पर्याप्त मात्रा में मुहैया कराने के लिए दो यूनिट खोली हैं। सेरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख अदार पूनावाला के मुताबिक, महामारी की स्थिति को देखेत हुए कोरोना की करोड़ों डोज की जरूरत पड़ेगी, इसलिए हमने दो फैसिलिटी चालू की हैं, ताकि बाकी उत्पादों के निर्माण पर असर न पड़े।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि रूस द्वारा मंजूरी की हुई वैक्सीन- स्पूतनिक-V एडवांस स्टेज की टेस्टिंग से नहीं गुजरी है। इसीलिए डब्ल्यूएचओ ने इसे अपनी उन 9 वैक्सीन की लिस्ट में नहीं रखा, जिन्हें एडवांस स्टेज में बताया गया। WHO के निदेशक टेडरोस अदनहोम ग्रेब्रहेसुस के वरिष्ठ सलाहकार डॉक्टर ब्रूस अयलवर्ड के मुताबिक, रूसी वैक्सीन के बारे में अभी इतनी जानकारी नहीं मिली है कि इसके बारे में कोई फैसला लिया जा सके। हालांकि, हम लगातार जानकारी जुटाने के लिए रूस के साथ बातचीत कर रहे हैं।
अमेरिकी फार्मा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने अपनी संभावित कोरोना वैक्सीन की तकनीक और उत्पादन के अधिकार भारतीय कंपनी को ट्रांसफर कर दिए हैं। भारत की बायोलॉजिकल-ई भारत में वैक्सीन के ट्रायल पूरे हो जाने के बाद इसे 2021 के मध्य में लॉन्च कर सकती है। इस मौके पर J&J के चीफ साइंटिफिक ऑफिसर पॉल स्टेफेल्स ने कहा कि दोनों ही कंपनियां ज्यादा से ज्यादा डोज बनाने पर ध्यान दे रही हैं। कोरोना से लड़ाई में हमें भारत के लिए हर साल 40 से 50 करोड़ डोज बनाने की उम्मीद है।
जर्मनी में टीबी वैक्सीन के निर्माण में जुटी कंपनी वीपीएम इस वक्त तीसरे फेज के क्लिनिकल ट्रायल कर रही है। फिलहाल यह ट्रायल स्वास्थ्यकर्मियों के एक ग्रुप के साथ बुजुर्ग आबादी पर भी किए जा रहे हैं। दोनों ही ट्रायल को जर्मनी के स्वास्थ्य विभाग से अनुमति मिल चुकी है। बताया गया है कि 1200 के करीब स्वास्थ्यकर्मी और 2200 बुजुर्ग नागरिकों को ट्रायल में शामिल किया गया है।
दुनियाभर में कोरोना के बढ़ते केसों के बीच वैक्सीन बनाने की होड़ लगी है। हालांकि, जर्मनी में कोरोना वायरस के खात्में के लिए टीबी की एक वैक्सीन के साथ तीसरे फेज का ट्रायल चल रहा है। दरअसल, इस वैक्सीन ने कोरोना के खिलाफ बेहतरीन नतीजे दिखाए हैं। टीबी की इस वैक्सीन का नाम वीपीएम1002 है और अच्छी बात यह है कि भारत को इसकी डोज भी जल्दी मिल सकती हैं, क्योंकि सेरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने इसको विकसित करने में जुटे बर्लिन के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के साथ करार किया है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन से 18 से 55 साल के लोगों में बेहतरीन इम्यून रिस्पॉन्स विकसित हो रहा है। यह कहना है जेनर इंस्टीट्यूट की निदेशक डॉक्टर एड्रियन हिल का। डॉक्टर हिल इस वैक्सीन को बनाने वाली टीम में शामिल हैं। बता दें कि यूनिवर्सिटी ने स्वीडन की फर्म एस्ट्रा जेनेका के साथ वैक्सीन लॉन्च करने के लिए पार्टनरशिप की है। बताया जा रहा है कि फेज-3 का ट्रायल पूरा होने के बाद वैक्सीन को लैटिन अमेरिकी देशों में लॉन्च किया जाएगा।
दक्षिण अफ्रीका कोरोना वायरस के टीकों के संबध में अगले महीने प्रमुख दवा कंपनियों द्वारा शुरू किए जा रहे दो और परीक्षणों में शामिल होगा। दक्षिण अफ्रीकी चिकित्सा अनुसंधान परिषद की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी डॉ ग्लेंडा ग्रे ने मंगलवार को लोक स्वास्थ्य से जुड़ी वेबसाइट ‘स्पॉटलाइट’ के साथ एक साक्षात्कार में यह जानकारी दी।उन्होंने कहा कि जॉनसन एंड जॉनसन और नोवावैक्स के एक एक टीके का देश में परीक्षण शुरू किया जाएगा। अफ्रीकी महाद्वीप में पहला कोविड-19 टीका परीक्षण जून में दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुआ था। इसका नेतृत्व विट्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शबीर माधी कर रहे हैं। इस टीके में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय सहयोग कर रहा है।माधी दक्षिण अफ्रीका में नोवावैक्स परीक्षण के प्रमुख शोधकर्ता भी हैं। उन्होंने ‘स्पॉटलाइट’ से कहा कि दक्षिण अफ्रीका में होने वाले नोवावैक्स का परीक्षण टू बी चरण का होगा जिसमें प्रभाव का अकलन किया जाएगा। इसके लिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।
सिंगापुर में 21 से 55 वर्ष की आयु वर्ग के स्वयंसेवकों के समूह को देश में ही विकसित किए जा रहे संभावित कोविड-19 टीके की पहली खुराक दी गई है। ''लुनार-कोव19'' नाम के टीके को ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल और अमेरिका की दवा कंपनी आर्कट्यूरस थेराप्यूटिक्स ने विकसित किया है। दवा कंपनी ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि परीक्षण के पहले चरण में 21 से 55 वर्ष के स्वयंसेवकों को पहली खुराक दी गई।
दवा कंपनी जायडस कैडिला ने गुरुवार को कहा कि उसने कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए उपयोगी दवा रेमडेसिवियर को रेमडेक ब्रांड नाम से भारतीय बाजारों में पेश किया है। कंपनी ने शेयर बाजार को बताया कि रेमडेक की 100 मिलीग्राम की शीशी की कीमत 2,800 रुपये है, जो भारत में उपलब्ध रेमडेसिवियर का सबसे सस्ता ब्रांड है। जायडस कैडिला ने बताया कि यह दवा उसके वितरण नेटवर्क के जरिए पूरे देश में उपलब्ध होगी। यह दवा सरकारी और निजी अस्पतालों में मिलेगी।
रूस द्वारा बनाए टीके को लेकर ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिकों का कहना है कि रूस के शॉर्टकट से सेहत को खतरा हो सकता है। वैज्ञानिकों ने इसके लिए तर्क देते हुए कहा है कि वैक्सीन के मनुष्यों पर ट्रायल में कई वर्ष लगते हैं, जबकि रूस ने ये दो महीने से भी कम में किया है। WHO के प्रवक्ता तारिक जसारविक ने कहा कि वैक्सीन को अनुमति देने से पहले असर और सुरक्षा को जांचा जाता है उसके बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है।
रूस की ओर से कोरोना के खिलाफ वैक्सीन के ऐलान के बाद से जहां कई देशों में उत्साह का माहौल है, वहीं पश्चिमी देशों ने इसे लेकर चिंता भी जाहिर की है। इनमें सबसे ताजा नाम जर्मनी का है। जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री जेंस स्पान ने शक जताया है कि रूस की वैक्सीन अभी सही ढंग से टेस्ट नहीं की गई है। इसलिए इससे करोड़ों लोगों का वैक्सीनेशनल खतरनाक हो सकता है। वैक्सीन बनाने की पूरी जद्दोजहद ही इसे सुरक्षित रखने पर है।
सिंगापुर में ''लुनार-कोव19'' नाम के टीके को ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल और अमेरिका की दवा कंपनी आर्कट्यूरस थेराप्यूटिक्स ने विकसित किया है। कंपनी के अध्यक्ष जोसेफ पायने ने कहा कि क्लीनिकल परीक्षण के शुरुआती नतीजों के आधार पर इस टीके को केवल एक बार लगाने की आवश्यकता होगी और इसकी खुराक भी कम ही रखने की जरूरत होगी। सिंगापुर स्वास्थ्य जांच दवा इकाई की देखरेख में चल रहे इस टीके का परीक्षण इस साल अक्तूबर के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है।
अफ्रीकी महाद्वीप में पहला कोविड-19 टीका परीक्षण जून में दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुआ था। इसका नेतृत्व विट्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शबीर माधी कर रहे हैं। इस टीके में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय सहयोग कर रहा है। माधी दक्षिण अफ्रीका में नोवावैक्स परीक्षण के प्रमुख शोधकर्ता भी हैं। उन्होंने ‘स्पॉटलाइट’ से कहा कि दक्षिण अफ्रीका में होने वाले नोवावैक्स का परीक्षण टू बी चरण का होगा जिसमें प्रभाव का अकलन किया जाएगा। इसके लिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।
जैव प्रौद्योगिकी उद्योग की मशहूर शख्सियत किरण मजूमदार शॉ ने कोरोना वायरस का दुनिया का पहला सुरक्षित टीका विकसित करने के रूस के दावे पर क्लीनिकल परीक्षणों में आंकड़ों के अभाव का हवाला देते हुए सवाल खड़ा किया। बायोकॉन लिमिटेड की कार्यकारी अध्यक्ष ने यहां कहा कि दुनिया ने मास्को के गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट के पहले और दूसरे दौर के क्लीनिकल परीक्षणों पर कोई आंकड़ा नहीं देखा है।
सिंगापुर में विकसित कोविड-19 वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू कर दिया गया है। सिंगापुर में 21 से 55 वर्ष की आयु वर्ग के स्वयंसेवकों के समूह को देश में ही विकसित किए जा रहे संभावित कोविड-19 टीके की पहली खुराक दी गई है।
दवा बनाने वाली घरेलू कंपनी जायडस कैडिला ने कोरोना वायरस के गंभीर संक्रमित मरीजों के इलाज में उपयोगी दवा रेमडेसिविर का जेनेरिक संस्करण भारतीय बाजार में उतारा है। कंपनी ने बृहस्पतिवार को इसकी जानकारी दी। कंपनी ने शेयर बाजारों को भेजी जानकारी में कहा है कि उसने रेमडेक ब्रांड नाम से इसे पेश किया है और इसकी 100 मिलीग्राम की शीशी की कीमत 2,800 रुपये है। कंपनी का दावा है कि यह भारत में उपलब्ध सबसे सस्ता रेमडेसिविर ब्रांड है। जायडस कैडिला ने बताया कि यह दवा उसके वितरण नेटवर्क के जरिये पूरे देश में उपलब्ध होगी। यह दवा सरकारी और निजी अस्पतालों में मिलेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन अभी छह वैक्सीन पर नजर रखे हुए है जिनका विकास हो रहा है। इनमें रूस की तरफ से विकसित करने का दावा किया गया टीका शामिल नहीं है। रूस ने अपने टीके को स्पूतनिक नाम दिया है। दुनिया में जिन छह वैक्सीन पर काम चल रहा है उनका विकास तीसरे चरण में है जिसमें इंसानों पर बड़ी संख्या में परीक्षण किया जाता है।
दक्षिण अफ्रीका कोरोना वायरस के टीकों के संबध में अगले महीने प्रमुख दवा कंपनियों द्वारा शुरू किए जा रहे दो और परीक्षणों में शामिल होगा। दक्षिण अफ्रीकी चिकित्सा अनुसंधान परिषद की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी डॉ ग्लेंडा ग्रे ने मंगलवार को लोक स्वास्थ्य से जुड़ी वेबसाइट ‘स्पॉटलाइट’ के साथ एक साक्षात्कार में यह जानकारी दी।
बायोलॉजिकल ई लिमिटेड ने कोविड-19 के टीके के उत्पादन के लिये जानसेन फार्मास्युटिका एनवी के साथ गठजोड़ किया है। जानसेन फार्मास्युटिका एनवी दवा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की इकाई है। जॉनसन एंड जॉनसन का संभावित कोविड-19 टीका क्लीनिक परीक्षण के पहले-दूसरे चरण में है। बायोलॉजिकल ई लिमिटेड की प्रबंध निदेशक (एमडी) महिमा दातला ने एक बयान में कहा, ‘‘हम जॉनसन एंड जॉनसन जैसे संगठन के साथ गठजोड़ करके वास्तव में बहुत प्रसन्न हैं।
फिलहाल दुनिया में सबसे आगे रूस की स्पूतनिक-V वैक्सीन है, जिसे रूस के ड्रग रेगुलेटरी से मंजूरी मिल चुकी है। रूस इस वैक्सीन के पहले बैच को दो हफ्ते के अंदर निकाल देगा। इस वैक्सीन को सबसे पहले रूस के स्वास्थ्यकर्मियों को ही दिया जाएगा। इस बीच रूसी सरकार ने कोरोना वैक्सीन को लेकर जताई जा रही चिंताओं को भी बेबुनियाद करार दिया है।
अमेरिका के टॉप वायरोलॉजिस्ट और कोरोना से लड़ाई में ट्रंप प्रशासन के सलाहकार डॉक्टर एंथनी फाउची का कहना है कि उन्हें रूस के दावों पर खासा शक है। नेशनल ज्योग्राफिक चैनल को दिए इंटरव्यू में डॉक्टर फाउची ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि रूस ने वैक्सीन को अंतिम तौर पर सुरक्षित और प्रभावी साबित किया हो, लेकिन रूसियों ने ऐसा किया होगा इस पर गहरा शक है।
अमेरिका ने कोरोनावायरस संक्रमण को हराने के लिए जनवरी 2021 तक 30 करोड़ वैक्सीन की डोज जुटाने का लक्ष्य रखा है। अमेरिकी सरकार ने इसे ऑपरेशन वार्प स्पीड नाम दिया है। अब तक ट्रंप प्रशासन 80 करोड़ डोज के लिए अलग-अलग कंपनियों से समझौता भी कर चुका है। इनमें कई कंपनियां पहले और दूसरे फेज के ट्रायल पूरे कर वैक्सीन को फाइनल करने में जुटी हैं।
कोविड-19 का टीका उपलब्ध कराने के लिये गठित एक्सपर्ट पैनल की बैठक में टीकाकरण के लिए आबादी के प्राथमिकता वाले समूहों को निर्धारित करने वाले सिद्धांतों के साथ-साथ घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित टीकों की खरीद तंत्र पर भी विचार-विमर्श किया गया। बैठक के अध्यक्ष नीति आयोग के सदस्य डॉ वी. के. पॉल ने, जबकि सह -अध्यक्षता सचिव (केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय) ने की।
भारत में कोरोनावायरस के खिलाफ योजना बनाने में जुटे एक्सपर्ट पैनल की बुधवार को बैठक हुई। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, सभी राज्यों को यह सलाह भी दी गई है कि वे टीके की खरीद के लिये अलग-अलग राह नहीं चुनें। समूह के सदस्यों ने देश के लिये कोविड-19 के टीके के चयन को दिशा निर्देशित करने वाले मापदंडों पर चर्चा की। उन्होंने टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) की स्थायी तकनीकी उप-समिति से जानकारी भी मांगी।
फिलीपींस में कोरोना के बढ़ते केसों के बीच रूसी वैक्सीन को लेकर उत्साह बढ़ा है। एक दिन पहले ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ऐलान किया था कि उनकी बेटी ने कोरोना की वैक्सीन- स्पूतनिक-V का डोज लिया है। अब फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने भी रूसी वैक्सीन पर भरोसा जताया है। दुतर्ते ने कहा है कि वे खुद इस वैक्सीन को अपने पर टेस्ट कराना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यह वैक्सीन मानवता के भले के लिए बनाई गई है।
अमेरिका के बाद लैटिन अमेरिकी देशों में कोरोना का सबसे बुरा प्रभाव देखा गया है। इसी के चलते अर्जेंटीना और मेक्सिको एस्ट्रा जेनेका के साथ मिलकर कोरोना वैक्सीन का उत्पादन शुरू करेंगे। यह दोनों देश पूरे लैटिन अमेरिका को वैक्सीन मुहेया कराएंगे। शुरुआत में इन देशों में 15 करोड़ वैक्सीन के डोज का उत्पादन होगा बाद में इन्हें 25 करोड़ तक बढ़ा दिया जाएगा। हालांकि, ब्राजील इस प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं है।
रूस की ओर से कोरोना के खिलाफ वैक्सीन के ऐलान के बाद से जहां कई देशों में उत्साह का माहौल है, वहीं पश्चिमी देशों ने इसे लेकर चिंता भी जाहिर की है। इनमें सबसे ताजा नाम जर्मनी का है। जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री जेंस स्पान ने शक जताया है कि रूस की वैक्सीन अभी सही ढंग से टेस्ट नहीं की गई है। इसलिए इससे करोड़ों लोगों का वैक्सीनेशनल खतरनाक हो सकता है। वैक्सीन बनाने की पूरी जद्दोजहद ही इसे सुरक्षित रखने पर है।
भारत के पुणे में स्थित सेरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स से कोरोना वैक्सीन के लिए फंडिंग मिलना शुरू हो गई है। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने कम और मध्यम इनकम वाले देशों में 10 करोड़ डोज पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसी के मद्देनजर यह एनजीओ दवा बनाने वाली कंपनियों को मदद पहुंचा रहा है। माना जा रहा है कि फाउंडेशन की तरफ से मुहैया कराई जाने वाली 50 फीसदी डोज भारत को ही मिलेंगी।
दुनियाभर में कोरोना के बढ़ते केसों के बीच जल्द से जल्द वैक्सीन लॉन्च करने की दौड़ तेज हो गई है। फिलहाल रूस ने एक वैक्सीन लॉन्च कर इस रेस में बढ़त बनाने का दावा किया है। हालांकि, वैज्ञानिकों के सवाल और अलग-अलग देशों में अलग मानकों की वजह से अभी रूस की वैक्सीन को पूरी दुनिया तक पहुंचने में लंबा समय लग सकता है। भारत में भी दूसरे देश की वैक्सीन के अप्रूवल में टाइम लग सकता है, क्योंकि पहले उन वैक्सीन का भारत में मरीजों पर ट्रायल किया जाएगा। इन्हें सुरक्षित पाए जाने के बाद ही भारत में वैक्सीन की सप्लाई शुरू हो सकती है।
भारत में कोरोनावायरस से संक्रमण के केस लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पिछले 24 घंटे में देश में एक बार फिर कोरोना के अब तक के सबसे ज्यादा 66 हजार 999 मामले सामने आए। इसी के साथ भारत में अब कोरोना संक्रमितों की संख्या 23 लाख 96 हजार 638 हो गई है। इतना ही नहीं देश में कुल मौतों का आंकड़ा 47 हजार 33 पर पहुंच गया है। इस लिहाज से भारत अभी दुनिया में कोरोना से मौतों के मामले में चौथे स्थान पर पहुंच गया है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रा जेनेका की संभावित कोरोना वैक्सीन का उत्पादन अब अर्जेंटीना, मेक्सिको में भी होगा। लैटिन अमेरिकी देशों ने शुरुआती दौर में 15 करोड़ डोज का ऑर्डर दिया है। हालांकि, ब्राजील ने रूस की वैक्सीन पर भरोसा जताया है। मेक्सिको के विदेश मंत्री मार्सेलो एबरार्ड ने कहा कि आने वाले दिनों में वैक्सीन की आउटपुट 25 करोड़ डोज तक पहुंचाई जाएगी।
रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराशको ने कहा है कि स्पूतनिक-V वैक्सीन पर असुरक्षित होने के जो आरोप लग रहे हैं, वे सब बेबुनियाद हैं और उन्हें प्रतियोगी कंपनियों की तरफ से लगाया जा रहा है। दरअसल, रूस की तरफ से इस वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने पर दुनियाभर के एक्सपर्ट्स सवाल उठा चुके हैं। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि वैक्सीन के 10 फीसदी ट्रायल ही सफल हुए और उन्हें डर है कि रूस अपने राष्ट्रीय गौरव को सुरक्षा के आगे रख रहा है।
रूस की ओर से कोरोना की वैक्सीन के ऐलान के बाद से ही करीब 20 से ज्यादा देशों ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। कुछ देशों ने रूस से इस वैक्सीन की पूरी जानकारी देने के लिए कहा है। इनमें एक नाम फिलीपींस का भी है। फिलीपींस के वैज्ञानिक जल्द ही रूस की रिसर्च फैसिलिटी के प्रतिनिधि के साथ बैठक कर उसके रिसर्च डेटा को हासिल करेंगे और क्लिनिकल ट्रायल पर बात करेंगे। बता दें कि फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतर्ते पहले ही रूसी वैक्सीन की तारीफ कर चुके हैं।
रूस की कोरोना वैक्सीन स्पूतनिक-V के निर्माण के लिए ब्राजील का एक राज्य तैयार हो गया है। ब्राजीली राज्य पराना ने इस वैक्सीन को बाजार में लाने के लिए रूस के साथ समझौता किया है। अभी तक यह साफ नहीं है कि इस डील को ब्राजील सरकार की मंजूरी मिली है या नहीं, पर रूसी वैक्सीन पर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की ओर से शक जताए जाने के बाद ज्यादातर देशों में इसे मंजूरी मिलने की संभावना कम है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक समूह ने सभी राज्यों को यह सलाह भी दी कि वे टीके की खरीद के लिये अलग-अलग राह नहीं चुनें। मंत्रालय ने कहा, ‘‘विशेषज्ञ समूह ने अंतिम गंतव्य स्थान पर विशेष रूप से जोर देने के साथ टीकाकरण प्रक्रिया की निगरानी सहित टीके के प्रबंधन एवं वितरण तंत्र के लिये डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार करने को लेकर प्रणाली बनाने और क्रियान्वित करने पर चर्चा की।’’