साफ हवा-पानी तक को तरस रहे डॉक्टर, डायपर में पेशाब करने को मजबूर! जानें कितनी मुश्किलें झेल हमें बचा रहे COVID-19 से
Corona virus in India: उन्होंने बताया कि एक बार आईसीयू में जाने के बाद हम पानी नहीं पी सकते और इसके अतिरिक्त हम कोई काम नहीं कर सकते। हमें 6-7 घंटे लगातार आईसीयू में रहना पड़ता है।

कोरोना संकट काल में लॉकडाउन के बीच लोग जहां घरों में सुरक्षित हैं। वहीं, डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी अस्पतालों में ड्यूटी पर मोर्चा संभाले हैं। वे दिन-रात एक कर मरीजों की देखभाल और सेवा में जुटे हैं। वह भी तब, जब उन्हें भी कोरोना संक्रमण का उतना खतरा है, जितना कि किसी और को। भारत में इस महामारी से निपटने के दौरान डॉक्टरों पर प्रेशर का आलम ये है कि उन्हें साफ हवा और पानी तक मयस्सर नहीं हो पा रहा है। चूंकि, उनका काम और कॉस्ट्यूम ऐसा है, जिसे बार-बार उतारना और पहनना मुश्किलदेह है। ऐसे में उन्हें एडल्ट डायपर में पेशाब करनी पड़ती है।
डॉक्टरों के आगे कोरोना वॉर्ड्स में कैसी-कैसी दिक्कतें आती हैं और वे उस दौरान कैसा महसूस करते हैं। यही सारी चीजें नई दिल्ली स्थित एम्स में ऐनास्थेसिओलॉजी विभाग में कार्यरत डॉ.सायन नाथ ने हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘Inuth.com’ को बताईं। उनके मुताबिक, “हम लोग पानी तक नहीं पी पाते हैं। एक बार आईसीयू में जाने के बाद छह से सात घंटों तक हम कुछ और नहीं कर पाते हैं।”
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बकौल डॉ.नाथ, “शुरुआत में कोरोना के मामलों की संख्या कम थी, लिहाजा हम सभी आईसीयू को इनके लिए नहीं यूज करते थे। हमने इसलिए ट्रॉमा सेंटर के भूतल पर नया आईसीयू बनाया। हालांकि, हमारे सामने ढेर सारी चुनौतियां थीं, क्योंकि उस आईसीयू को वैश्विक मानकों के अनुकूल होना था।”
तैयारियों का जिक्र करते हुए उन्होंने आगे बताया- कोरोना मरीजों के लिए कुछ नई चीजें थीं। मसलन आईसीयू की गुणवत्ता, एयर एक्सचेंज़ेज, डॉनिंग, डफिंग एरिया, वेंटिलेटर, मॉनीटर और प्रोटोकॉल। हमने ये सारी चीजें कीं। वैसे, प्रोटोकॉल्स हमेशा बदल रहे हैं, क्योंकि कोरोना पर हर दिन नई चीजें सामने आ रही हैं। और, हम उन सभी को अपने प्रोटोकॉल्स में शामिल कर रहे हैं। ऑनलाइन क्लासों के जरिए हमारे यहां बहुत ही अच्छा टीचिंग और एजुकेश्नल प्रोग्राम होता है, जिसमें विभिन्न विभागों की फैकल्टी सदस्य (आईसीयू में तैनात) एक साथ बैठती हैं और वे कोरोना से जुड़े सभी पेपर्स और वैज्ञानिक प्रमाणों पर चर्चा करते हैं।
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ट्रेनिंग के बारे में पूछे जाने पर वह बोले- स्वास्थ्य कर्मचारी (डॉक्टरों और नर्सों के अलावा) मसलन ग्रुप डी कर्मी और सैनिटेशन कर्मचारी मरीज की देखभाल के लिए बराबर के जिम्मेदार होते हैं, पर वे उतने भी अधिक जागरूक और चीजों को लेकर अपडेट नहीं होते।
हमारे अस्पताल की इन्फेक्शन कंट्रोल कमिटी ने उन्हें ट्रेन करने में और पीपीई किट के मामले में कमाल की भूमिका निभाई है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उपकरणों की डॉनिंग और डफिंग बेहद अहम और मुश्किल होती है। हम जब ड्यूटी से लौटकर आते हैं, तो हमें खुद को हर चीज से अपडेट रखना पड़ता है। और, हर दिन के अंत में हम अपने समूहों में टीम के सदस्यों के साथ उन वैज्ञानिक प्रमाणों पर चर्चा करते हैं।
दिक्कतों के बारे में डॉक्टर ने बताया- सबसे अहम चीज है कि जब आप एक बार पीपीई किट पहन लेते हैं, तब काम करना बेहद मुश्किलदेह हो जाता है। अंदर बहुत ही घुटन महसूस होती है। मास्क भी बेहद कसा होता है। शिफ्ट के बाद हम बुरी तरह थक चुके होते हैं।
हम टॉयलेट नहीं जा पाते। पानी तक नहीं पी पाते। एक बार आईसीयू में प्रवेश के बाद कुछ नहीं कर पाते। इसी बीच डॉक्टर सायन ने कोरोना से जंग लड़ रहे डॉक्टर्स को लेकर एक ब्लॉग भी लिखा है जिसमें उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि आईसीयू में कोरोना संक्रमितों का इलाज कर रहे डॉक्टर्स को एडल्ट डायपर तक पहनना पड़ता है।
वीडियो में देखें, उन्होंने अन्य चुनौतियों के बारे में क्या कहा:
‘कोरोना की जंग में हम भूल चुके साफ हवा और पानी पीना, बाथरूम जाने से बचने को पहन रहे डायपर्स’
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