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प्रतिस्पर्धा आयोग की कवायद : कैसे काबू में आएं डिजिटल बाहुबली

भारत स्मार्टफोन का एक प्रमुख निर्यातक बनने का मंसूबा रखता है।

Indian competition commission
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।

वर्ष 2010 से 2022 के बीच अमेरिका में डिजिटल जगत की पांच शीर्ष कंपनियों (एमेजान, मेटा, एप्पल, अल्फाबेट और माइक्रोसाफ्ट) के साझा राजस्व में 29 फीसद का जबरदस्त उछाल आया। इन कंपनियों की कुल कमाई 181 अरब अमेरिकी डालर से बढ़कर 3.9 खरब डालर तक पहुंच गई। आर्थिक शक्ति में ऐसी तेज बढ़ोतरी के चलते इन कंपनियों की गहरी पड़ताल शुरू हो गई।

इस बात पर पुनर्विचार किया जाने लगा कि बाजार में प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए नियामक व्यवस्थाएं पर्याप्त हैं या नहीं। भारत में 5जी सेवाओं की शुरुआत को ध्यान में रखते हुए डिजिटल जगत के बाहुबलियों को लेकर नियामक के बारे में चर्चा तेज हो गई है। भारत के 15 शहरों में स्मार्टफोन के 25,000 रजिस्टर्ड विक्रेताओं और 18 लाख उत्पादों के साथ बाजार मूल्यांकन का काम जारी है। गूगल और एप्पल जैसे वैश्विक बाहुबलियों को लेकर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआइ) अपनी तैयारियों में जुटा हुआ है।

विनियमन की चुनौतियां

अगर कोई सर्च इंजन किसी आपरेटिंग सिस्टम (ओएस) का अधिग्रहण कर लेता है तो संबंधित ओएस के लिए अपने मालिकाना हक वाले सर्च इंजन की हिमायत में पक्षपात करने और दूसरे सर्च इंजनों के लिए नुकसान का माहौल पैदा करने की परिपाटी दिखती है। साल 2005 में गूगल ने पांच करोड़ अमेरिकी डालर में एंड्रायड का अधिग्रहण किया था।

इसी तरह अगर कोई सर्च इंजन (गूगल) कंटेंट उपलब्ध कराने वाले प्लेटफार्म (यूट्यूब) का अधिग्रहण करता है तो वो प्रयोगकर्ताओं को अपने स्वामित्व वाले प्रदाता की ओर निर्देशित करने का प्रोत्साहन हासिल कर लेता है। इससे अन्य सामग्री प्रदाताओं पर मार पड़ती है। इस मुद्दे पर चर्चा चलती रही और वर्ष 2020 आते-आते एकाधिकारवाद के खिलाफ अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की उपसमिति ने एकाधिकार-विरोधी कानूनों में बड़े बदलावों की सिफारिश कर दी।

यूरोप में नियामक एजंसियां अपने रुख में सख्ती ला रही हैं। भारत में भी ऐसी ही तस्वीर दिखाई दे रही है। एप्पल स्टोर और गूगल प्ले स्टोर जैसी मिलती-जुलती सेवाओं के लिए वह प्रतिस्पर्धा के अलग-अलग पैमानों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

सार्वजनिक हितों की हिफाजत

विशाल कंपनियों की शक्ति पर नियंत्रण पाने की कवायद दुनिया भर में लोकप्रिय हो गई है। जून 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संघीय एकाधिकार विरोधी इकाई- संघीय व्यापार आयोग में अब तक के सबसे युवा अध्यक्ष के तौर पर लीना खान को नियुक्त किया। उन्होंने वर्ष 2018 में एकाधिकार-विरोधी कानूनों पर लेख लिखकर काफी चर्चा बटोरी थी।

इस पत्र में उन्होंने डिजिटल बाजारों में प्रतिस्पर्धा के संरक्षण के लिए ढांचागत वियोग को नए सिरे से पेश किए जाने की वकालत की थी। वर्ष 2021 में यूरोपीय संघ के प्रतिस्पर्धा आयोग ने थर्ड-पार्टी मूल्य तुलनात्मक विक्रय सेवाओं के खिलाफ भेदभाव करने के लिए गूगल पर 2.8 अरब अमेरिकी डालर का जुर्माना लगाया था।

उधर, भारत में अक्तूबर 2022 में सीसीआइ ने अपने फैसले में गूगल को प्रतिस्पर्धा-विरोधी हरकतों में शामिल करार दिया। फैसले के मुताबिक, गूगल ने एंड्रायड मोबाइल इकोसिस्टम से जुड़े अनेक बाजारों में अपने दबदबे वाली हैसियत का दुरुपयोग किया था। लिहाजा, सीसीआइ ने गूगल पर 13.4 अरब रुपए का जुर्माना लगाया। यह रकम पिछले तीन साल में भारत में गूगल के औसत राजस्व का 10 फीसद है।

स्मार्टफोन विनिर्माताओं की राह

स्मार्टफोन के निर्माता, गूगल से राजस्व साझा करने की कवायद के अलावा दूसरे स्रोतों से मुनाफों का रास्ता तलाशेंगे। भारत स्मार्टफोन का एक प्रमुख निर्यातक बनने का मंसूबा रखता है। ऐसे में हाइब्रिड एंड्रायड मोबाइल इकोसिस्टम में निवेश करना बुद्धिमानी भरा विचार लगता है। इसके जरिए गूगल द्वारा आसानी से मुहैया कराई जाने वाली सेवाओं (जिनमें अब बाधाएं आ गई हैं) से परे तरक्की कर पाना मुमकिन हो सकेगा।

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कीमतों के प्रति संवेदनशील भारतीय खुदरा उपभोक्ताओं को इन बदलावों से क्या लाभ होने वाला है। अगर नियामक बदलावों का शुद्ध प्रभाव, एंड्रायड स्मार्टफोन्स की फुटकर कीमतों में बढ़ोतरी के तौर पर सामने आता है तो यह सीसीआइ के लिए नाकामयाब कवायद साबित होगी। भारत में 5जी सेवाओं की शुरुआत हो रही है।

लिहाजा, अल्पकाल में यह प्रक्रिया करोड़ों उपयोगकर्ताओं को स्मार्टफोन का प्रयोग शुरू करने से वंचित कर देगी। खुदरा उपभोक्ता सक्रिय औद्योगिक नीति माडल के तहत बचाव की तलाश कर सकते हैं, जिसकी फिलहाल सरकार हिमायत कर रही है।सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी से गूगल एंड्रायड सेवाओं के सस्ते और खुले विकल्प हासिल हो सकते हैं।

गूगल प्लेस्टोर का मामला

गूगल प्लेस्टोर के खिलाफ इससे जुड़े एक मामले में 9.4 अरब रुपए का जुर्माना आयद किया गया। कंपनी को प्ले स्टोर बाजार में अपने रसूख के दुरुपयोग का दोषी पाया गया। कंपनी ने एक तो उपयोक्ता द्वारा ऐप डाउनलोड कर लिए जाने के बावजूद स्टोर के भीतर से ऐप की खरीद और उसके बाद ऐप के भीतर तमाम तरह की खरीदारियों के लिए गूगल बिल पे सिस्टम (जीबीपीएस) को भुगतान से जुड़ी इकलौती व्यवस्था के तौर पर थोप दिया था।

दूसरे, थर्ड-पार्टी ऐप्स के उलट यूट्यूब (गूगल के स्वामित्व वाला कंटेंट प्रोवाइडर) को विशेष सुविधाएं दी गर्इं। जीबीपीएस के इस्तेमाल के एवज में यूट्यूब से सेवा शुल्क नहीं लिया गया। तीसरे, भुगतान के लिए खुद के यूपीआइ ऐप को अन्य यूपीआइ के मुकाबले वरीयता दी गई। चौथे, डाउनलोड के बाद फालो-आन इन-ऐप खरीदारियों के लिए प्लेटफार्म पर मौजूद ऐप्स द्वारा प्रयोगकर्ताओं को भुगतान के वैकल्पिक तौर-तरीके सुझाने से रोका गया।

क्या कहते हैं जानकार

भारत में प्रतिस्पर्धा अधिनयम 2002 ने एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम 1969 (एमआरटीपी) को खत्म कर बाजार-अनुकूल स्वायत्त एकाधिकार-विरोधी इकाई (भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या सीसीआइ) का निर्माण कर दिया। नया अधिनियम प्रतिस्पर्धी बाजारों को प्रोत्साहित करता है और बाजार प्रभुत्व के मामले में तटस्थ है।

  • लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) राजेश पंत, राष्ट्रीय समन्वयक, साइबर सुरक्षा

राजस्व को अधिकतम स्तर पर ले जाने के लिए मौजूदा उपभोक्ताओं पर मूल्य वृद्धि का बोझ डालने की बजाए बाजारों में विस्तार की नीति फायदे का सौदा बन जाती है। बाजारों में होने वाला तेज रफ्तार नवाचार आसानी से बाजार प्रतिस्पर्धा में नहीं बदल पाता। आक्रामक और विशाल प्रौद्योगिकी कंपनियां नए उभरते प्रतिस्पर्धियों का अधिग्रहण कर अक्सर प्रतिस्पर्धा को ही खत्म कर देती हैं।

  • प्रशांत माली, साइबर कानून विशेषज्ञ

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First published on: 28-03-2023 at 07:45 IST