Collegium System in India : कॉलेजियम सिस्टम पर लगातार बहस जारी है। अब देश के कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Law Minister Kiren Rijiju) ने इसपर बड़ा बयान दिया है। लाइव लॉ ने ट्वीट कर जानकारी दी कि किरेन रिजिजू ने कहा है कि कॉलेजियम सिस्टम की वजह से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और हाई कोर्ट (High Court) के जजों का कीमती समय बर्बाद हो रहा है।
लाइव लॉ के अनुसार, कानून मंत्री ने आगे कहा कि साल 1993 में सेकेंड जज केस (Second Judges Case) में सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों को रद्द कर दिया और कॉलेजियम सिस्टम बनाया। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संविधान (India Constitution) में यह बहुत स्पष्ट है कि जजों को परामर्श के अलावा जजों की अपॉइंटमेंट प्रक्रिया (Appointment Process of Judges) में शामिल नहीं होना चाहिए। यह काम कार्यपालिका द्वारा किया जाना है।
उन्होंने आगे कहा कि लेकिन अब ज्यूडिशियरी जजों की अपॉइंटमेंट प्रक्रिया में पूरी तरह से शामिल हो चुकी है। कॉलेजियम सिस्टम ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों (High Court Judges) का बेशकीमती समय ले लिया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जब तक कॉलेजियम सिस्टम है, हम उसका पालन करेंगे।
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि लेकिन कई बार सवाल खड़े होते हैं कि सिस्टम के अंदर एमओपी (Memorandum of Procedure) है, अगर सुप्रीम कोर्ट उसी को बदलने की कोशिश करता है, तो यह सरकार (Government of India) के लिए एक समस्या होगी। उन्होंने कहा कि हम मानदंडों का पालन कर रहे हैं। हम सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध कर रहे हैं कि अदालत के कुछ फैसले देकर प्रक्रिया को कमजोर न किया जाए।
कॉलेजियम सिस्टम क्या होता है?
कॉलेजियम सिस्टम जजों के अपॉइंटमेंट और ट्रांसफर करने का प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए विकसित हुई है, न कि संसद के अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा हेड किया जाता है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के चार अन्य सीनियर जज भी होते हैं।
इसी तरह किसी भी हाई कोर्ट में कॉलेजियम निरवर्तमान चीफ जस्टिस हेड करते हैं। इस कॉलेजियम में हाई कोर्ट के दो अन्य सीनियर जज भी होते हैं। उच्च न्यायपालिका में जज कॉलेजियम सिस्टम के द्वारा ही अपॉइंट किए जाते हैं। यहां सरकार का रोल कॉलेजियम द्वारा नाम तय करने के बाद ही आता है।