Supreme Court : भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को ‘एक व्यक्ति एक कार’ के तहत दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया है। इस याचिका के तहत सड़कों पर वाहनों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की गई थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा (PS Narasimha) की पीठ ने कहा कि याचिका में उठाई गई मांगें कार्यपालिका के दायरे में आती हैं। कोर्ट ने कहा कि ये नीतिगत मुद्दे हैं जिन पर अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं।
कोर्ट ने क्या कहा ?
कोर्ट ने इस याचिका को लेकर कहा कि इस मामले में भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका में जो मुद्दे उठाए गए हैं, वे नीतिगत मुद्दे हैं। इसलिए हम याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। याचिकाकर्ता अपनी शिकायतों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं। सुनामी ऑन रोड्स नाम के एक एनजीओ ने यह याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि 2022 में देश में लगभग 1.5 करोड़ कारें बेची गईं।
सुनामी ऑन रोड्स द्वारा के संस्थापक, संजय कुलश्रेष्ठ ने कहा कि सड़कों पर वाहनों की बढ़ती मात्रा एक बड़ा पर्यावरणीय संकट पैदा कर रही थी, और सुझाव दिया कि लोगों द्वारा खरीदने जाने वाली कारों की संख्या को सीमित करना और पर्यावरण टैक्स लगाने से वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी।
कोर्ट ने कहा कि वह याचिकाकर्ता की नियत पर संदेह नहीं कर रहा है लेकिन यह मुद्दा सरकार के कार्यक्षेत्र के भीतर नीतिगत मामला है और न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
जनहित याचिका में क्या है ?
जनहित याचिका में मांग की गई थी कि कोर्ट सरकार को आदेश दे कि वह निजी कार बेचने पर प्रभावी आयकर नियमन लागू करना सुनिश्चित करे। कर नियमन का दुरुपयोग रोकने के लिए निजी कार खरीदने पर पैन कार्ड के अलावा अंतिम दाखिल रिटर्न की प्रति भी लगाना अनिवार्य करे। इसके अलावा दूसरी कार खरीदने पर प्रोफेशनल्स और कंपनी को मिलने वाले कर लाभ वापस ले लिए जाएं।