भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ट्विटर को फालो नहीं करते। उनका मानना है कि न्यायपालिका के लिए ट्विटर जैसी चीजें बेवजह की हैं। वहां पर जिस तरह के विचार सामने आते हैं, जूडिशरी को उनसे बचना चाहिए। हमारा जो काम है उसमें बेवजह से शोर में पड़ना हमारे लिए अच्छा नहीं है।
सीजेआई का मानना है कि जूडिशरी का काम न्याय करना है। अगर जज ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को फालो करेंगे तो इससे उनके विचार प्रभावित हो सकते हैं। जजों के लिए ये चीज ठीक नहीं है। ट्विटर पर जिस तरह के विचार आते हैं उन्हें अतिवादी कहा जा सकता है।
23 साल में कभी किसी ने नहीं दिया कोई दबाव
सीजेआई चंद्रचूड़ बीते दिन इंडिया टुडे कांक्लेव में थे। उन्होंने कई मसलों पर खुलकर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट या फिर दूसरी अदालतों पर कोई दबाव नहीं है। 23 साल के उनके करियर में कभी किसी ने किसी फैसले को लेकर उन पर दबाव नहीं डाला। वो हमेशा से खुलकर अपना काम करते रहे हैं। चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम सिस्टम का बचाव करते हुए कहा कि वो कानून मंत्री किरेन रिजिजू के साथ बेवजह की बहस में नहीं पड़ना चाहते हैं। लेकिन उनका ये मानना है कि मौजूदा समय में जजों की नियुक्ति के लिए ये सिस्टम सबसे बेहतरीन है।
डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के जजों का सारा शेड्यूल कांक्लेव में बताया। उनका कहना था कि जज साल में दो सौ दिन काम करते हैं। जब छुट्टी पर होते हैं तो भी उनके दिमाग में केसेज होते हैं। अवकाश में भी वो अपने काम के बारे में ही सोच रहे होते हैं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चंद्रचूड़ का कहना था कि जज सप्ताह में सातों दिन काम करते हैं। सोमवार से शुक्रवार तक सुप्रीम कोर्ट के जज रोजाना 50 से 60 केस सुनते हैं। अक्सर फैसले रिजर्व हो जाते हैं तो शनिवार को जज फैसले लिखवाने में व्यस्त रहते हैं। रविवार को वो सोमवार के काम की तैयारी करते हैं।
गौरतलब है कि कॉलेजियम सिस्टम को लेकर फिलहाल सरकार के साथ सुप्रीम कोर्ट की तनातनी चल रही है। सरकार का मानना है कि संविधान ने जजों की नियुक्ति का अधिकार उसे दिया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट मानता है कि कॉलेजियम सिस्टम ही जजों की नियुक्ति के लिए सबसे बेहतर है।