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CJI चंद्रचूड़ ने LG से पूछा, मंत्रियों से पूछे बगैर MCD में क्यों मनोनीत कर दिए 10 मेंबर, केजरीवाल सरकार ने लगाई थी गुहार

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच के सामने दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वकील ने गुहार लगाई कि उप राज्यपाल का फैसला सरासर गलत है।

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Delhi Govt vs Centre: मामले की सुनवाई CJI DY Chandrachud की अगुवाई वाली 5 जजों की बेंच कर रही है। फोटो- PTI

दिल्ली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में 10 मेबर्स को मनोनीत करने के मामले में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना से जवाब तलब किया है। सीजेआई की बेंच ने उनको नोटिस जारी करके मामले की सुनवाई 10 अप्रैल तय की है। सुप्रीम कोर्ट दिल्ली की अरविंद केजरीवाल की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें सरकार ने 10 सदस्यों को MCD में मनोनीत करने पर आपत्ति जताई।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच के सामने दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वकील ने गुहार लगाई कि उप राज्यपाल का फैसला सरासर गलत है। उन्होंने मंत्रियों के समूह से मशविरा किए बगैर कॉरपोरेशन में 10 सदस्यों को उस समय मनोनीत कर दिया जब चेयरमैन का चुनाव लंबित था। उनका फैसला सीधे तौर पर बहुमत को प्रभावित करने का था।

सिंघवी बोले- LG 10 सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं पर मनमर्जी से नहीं

केजरीवाल सरकार की तरफ से पेश एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी कहना है कि Delhi Municipal Corporation Act, 1957 (“DMC Act”) के सेक्शन 3(3)(b)(i) के तहत उप राज्यपाल को निर्वाचित सदस्यों के अलावा 10 लोगों को कॉरपोरेशन में मनोनीत करने का अधिकार है। लेकिन मंत्रियों से मशिविरे के बाद। इसमें प्रावधान है कि मनोनीत सदस्यों की उम्र 25 साल से कम न हीं होनी चाहिए। उनके पास म्यूनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन में विशेष जानकारी होनी चाहिए।

उप राज्यपाल ने अपनी मनमानी करने में संविधान की भी अवहेलना की

अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि संविधान के आर्टिकल 239AA के तहत प्रशासन (LG) को सदस्य मनोनीत करने का अधिकार तो है लेकिन वो सरकार के मंत्रियों से बात किए बगैर ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन उप राज्यपाल ने अपनी मनमानी करने में संविधान की भी अवहेलना कर डाली। दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में संवैधानिक बेंच के उस फैसले का भी हवाला दिया जिसमें LG और सरकार के अधिकार तय किए गए थे।

सरकार ने 2021 में संशोधित किए गए बिजनेस रूल्ज का हवाला देकर कहा कि सदस्यों को मनोनीत करने का प्रस्ताव सरकार की तरफ से आना चाहिए था। इस प्रस्ताव को चीफ सेक्रेट्री या फिर चीफ मिनिस्टर के जरिये एलजी तक पहुंचना था। एलजी को इस पर सात दिनों के भीतर अपनी टिप्पणी करने का अधिकार है।

अगर उनकी राय मंत्रियों के प्रस्ताव से अलग होती है तो फिर 15 दिनों के भीतर बातचीत के जरिये मामला सुलझाया जाना होता है। अभिषेक मनु सिंघवी की दलील है कि उप राज्यपाल ने नियमों को दरकिनार कर सीधे ही 10 सदस्यों को मनोनीत कर डाला। ये सरासर गलत है।

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First published on: 30-03-2023 at 13:06 IST