Chandrayaan 2: ‘समस्याएं, अप्रत्याशित घटनाएं देती हैं अनुसंधान को धार’, चंद्रयान-2 पर बोले वैज्ञानिक
Chandrayaan 2 Vikram Lander, ISRO Chandrayaan 2 Moon Mission Latest News Updates in Hindi: वैज्ञानिकों के पास अब विक्रम से संपर्क करने के लिए 6 दिन से भी कम वक्त बचा है।

Chandrayaan 2: नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने शुक्रवार को कहा कि समस्याएं, हादसे और अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का काम करती हैं और भारत को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के दौरान आई खामी के बाद आगे की ओर देखना चाहिए।
साल 2012 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 75 वर्षीय हरोशे ”नोबेल प्राइज सीरीज इंडिया 2019” के लिए भारत में हैं और यह देश में इस तरह की तीसरी श्रृंखला है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने कहा कि ‘चंद्रयान-2’ मिशन एक बड़ी वैज्ञानिक परियोजना है और इस तरह की परियोजनाओं में आम तौर पर सरकार का काफी योगदान होता है।
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नोबेल पुरस्कार विजेता ने आगे कहा, ‘‘यह एक तरह से प्रतिष्ठा से जुड़ी परियोजना है जिसमें आम तौर पर काफी धन खर्च होता है और जब आपको असफलता मिलती है या कोई दुर्घटना होती है तो मीडिया का ध्यान केंद्रित होने के कारण काफी निराशा होती है।
भारत के दूसरे चंद्र मिशन के बारे में पूछे जाने पर नोबेल पुरस्कार हरोशे ने कहा, ‘‘जब मैंने अपनी रिसर्च की तो मुझे इसके परिणाम मिलने तक किसी की भी इसमें रुचि नहीं थी...और मुझे लगता है कि इस तरह की समस्याएं, इस तरह के हादसे तथा इस तरह की अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का ही काम करती हैं।’’
इसरो के चंद्रयान 2 मिशन पर पूरी दुनिया की नजरें हैं। शायद तभी दुनिया की दिग्गज अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी विक्रम लैंडर को ढूंढने के लिए इसरो की तरफ मदद के हाथ बढ़ाए थे। उधर, इसरो अपने डीप स्पेस नेटवर्क के साथ लैंडर तक सिग्नल भेजने और संवाद स्थापित करने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है।
इसरो के एक अधिकारी के मुताबिक, नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी विक्रम को रेडियो सिग्नल भेज रही है। इसरो के एक वैज्ञानिक के मुताबिक, चंद्रमा के विक्रम के साथ संचार लिंक स्थापित करने की कोशिश 20-21 सितंबर तक की जाएगी। ऐसा तब तक किया जाएगा जब तक सूरज की रोशनी उस क्षेत्र में होगी, जहां विक्रम उतरा है।
इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि लैंडर के फिर सक्रिय होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन कुछ सीमाएं हैं। उन्होंने भूस्थिर कक्षा में संपर्क से बाहर हुए एक अंतरिक्ष यान से फिर संपर्क बहाल कर लेने के इसरो के अनुभव को याद करते हुए कहा कि ‘विक्रम’ के मामले में स्थिति भिन्न है। वह पहले ही चंद्रमा की सतह पर पड़ा है और उसकी दिशा फिर से नहीं बदली जा सकती।
इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि एक महत्वपूर्ण पहलू एंटीना की स्थिति का है। इसकी दिशा या तो जमीनी स्टेशन की तरफ होनी चाहिए या फिर आर्बिटर की तरफ। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे अभियान बहुत कठिन होते हैं। साथ ही संभावनाएं भी हैं और हमें हाथ थामकर इंतजार करना चाहिए।’’ अधिकारी ने कहा कि हालांकि, लैंडर का ऊर्जा उत्पन्न करना कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि इसमें चारों तरफ सौर पैनल लगे हैं। इसके भीतर बैटरियां भी लगी हैं जो बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुई हैं।
‘विक्रम’ अगर ऐतिहासिक लैंंडिंग में सफल हो जाता तो भारत चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंंडिंग करा चुके अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की कतार में शामिल हो जाता।ऑर्बिटर के चंद्रमा के चारों और अपनी तय कक्षा में स्थापित होने का जिक्र करते हुए इसरो ने कहा, ‘‘यह अपने आठ अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से ध्रुवीय क्षेत्र में खनिजों और जल अणुओं के विकास और मानचित्रण के जरिये चंद्रमा को लेकर हमारी समझ को और समृद्ध करेगा।’’ उसने कहा, ‘‘ऑर्बिटर का कैमरा अब तक किसी भी चंद्र मिशन में इस्तेमाल हुआ सबसे ज्यादा विभेदन (रेजलूशन) वाला कैमरा (0.3एम) है और इससे उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें मिलेंगी जो वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिये बेहद उपयोगी होंगी।’’ इसरो ने कहा कि सटीक प्रक्षेपण और मिशन प्रबंधन की वजह से इसका जीवनकाल भी पूर्व नियोजित एक वर्ष के बजाए लगभग सात वर्ष सुनिश्चित है। इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ठीक है और चंद्रमा की कक्षा में सुरक्षित है।
लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर जमीनी स्टेशन से संपर्क खो दिया था।इसरो 2022 तक तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बना रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा पिछले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में की थी। इसके अलावा इसरो अगले साल तक भारत का पहला सूर्य मिशन आदित्य एल-1 भी शुरू करेगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक अधिकारी ने कहा कि गगनयान मिशन 2022 में शुरू होगा।बेंगलुरु स्थित इसरो मुख्यालय में पृथ्वी अवलोकन अनुप्रयोग एवं आपदा प्रबंधन कार्यक्रम कार्यालय के निदेशक पी जी दिवाकर ने कहा कि चंद्रयान और गगनयान दोनों के अलग-अलग लक्ष्य एवं आयाम हैं। दिवाकर अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिक सचिव भी रहे हैं।
बता दें कि इसरो ने महज 35 घंटे में ही विक्रम लैंडर को खोज निकाला। लेकिन ज्ञात हो कि इससे पहले यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) का भी एक यान जिसका जमीन से संपर्क टूट गया था, लेकिन उसके बारे में 12 साल बाद वैज्ञानिकों को जानकारी मिली थी।
इसरो के एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक चंद्रमा की सतह पर विक्रम की 'हार्ड लैंडिंग' ने दोबारा संपर्क कायम करने को मुश्किल बना दिया है, क्योंकि यह सहजता से और अपने चार पैरों के सहारे नहीं उतरा होगा। उन्होंने कहा कि चंद्रमा की सतह से टकराने के चलते लगे झटकों के चलते लैंडर को नुकसान पहुंचा होगा।उन्होंने कहा कि चंद्रमा की सतह से टकराने के चलते लगे झटकों के चलते लैंडर को नुकसान पहुंचा होगा।
इसरो के चंद्रयान 2 मिशन पर पूरी दुनिया की नजरें हैं। शायद तभी दुनिया की दिग्गज अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी विक्रम लैंडर को ढूंढने के लिए इसरो की तरफ मदद के हाथ बढ़ाए थे। उधर, इसरो अपने डीप स्पेस नेटवर्क के साथ लैंडर तक सिग्नल भेजने और संवाद स्थापित करने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है। इसरो के एक अधिकारी के मुताबिक, नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी विक्रम को रेडियो सिग्नल भेज रही है। इसरो के एक वैज्ञानिक के मुताबिक, चंद्रमा के विक्रम के साथ संचार लिंक स्थापित करने की कोशिश 20-21 सितंबर तक की जाएगी। ऐसा तब तक किया जाएगा जब तक सूरज की रोशनी उस क्षेत्र में होगी, जहां विक्रम उतरा है।
‘विक्रम’ में तीन उपकरण-रेडियो एनाटमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फेयर एंड एटमस्फेयर (रम्भा), चंद्राज सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरीमेंट (चेस्ट) और इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी (इल्सा) लगे हैं।‘चंद्रयान-2’ मिशन पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है। भारत अब तक का ऐसा एकमात्र देश है जिसने चांद के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर पहुंचने का प्रयास किया है। मिशन के ‘सॉफ्ट लैंंिडग’ चरण में यदि सफलता मिलती तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाता।
इसरो के एक अधिकारी ने बताया था कि ‘चंद्रयान-2’ का लैंडर ‘विक्रम’ चांद की सतह पर साबुत अवस्था में है और यह टूटा नहीं है। हालांकि, ‘हार्ड लैंडिंग’ की वजह से यह झुक गया था। ‘विक्रम’ का शनिवार को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के अंतिम क्षणों में उस समय इसरो के नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया था जब यह चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था। अधिकारी के मुताबिक, यहां इसरो के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में एक टीम इस काम में जुटी है
नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने कहा है, ‘‘यह एक तरह से प्रतिष्ठा से जुड़ी परियोजना है जिसमें आम तौर पर काफी धन खर्च होता है और जब आपको असफलता मिलती है या कोई दुर्घटना होती है तो मीडिया का ध्यान केंद्रित होने के कारण काफी निराशा होती है।’’ हरोशे ने कहा, ‘‘जब मैंने अपनी रिसर्च की तो मुझे इसके परिणाम मिलने तक किसी की भी इसमें रुचि नहीं थी...और मुझे लगता है कि इस तरह की समस्याएं, इस तरह के हादसे तथा इस तरह की अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का ही काम करती हैं।’’
नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने कहा है कि समस्याएं, हादसे और अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का काम करती हैं तथा भारत को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के दौरान आई खामी के बाद आगे की ओर देखना चाहिए। 2012 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 75 वर्षीय हरोशे ने कहा कि ‘चंद्रयान-2’ मिशन एक बड़ी वैज्ञानिक परियोजना है और इस तरह की परियोजनाओं में आम तौर पर सरकार का काफी योगदान होता है।
इस बीच, यह सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या इस झटके से भारत का चंद्र मिशन खतरे में पड़ गया है? अगर भारत इस मिशन में कामयाब होता तो अमेरिका, रूस, चीन के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा मुल्क बन जाता। एक्सपर्ट मानते हैं कि इस मिशन को पूरी तरह नाकामयाब मानना इसरो के वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को कमतर करके देखने सरीखा होगा। दरअसल, चांद की सतह से 100 किमी ऊपर ऑर्बिटर अभी भी चक्कर लगा रहा है । ऑर्बिटर बेहद अहम सूचनाएं भेज रहा है। यह 7 साल चंद्रमा के चक्कर लगाएगा। ऐसे में इससे मिलने वाली सूचनाएं इसरो के भविष्य के मिशन के लिए बेहद उपयोगी साबित होंगी। न केवल इसरो, बल्कि दुनिया की दूसरी अग्रणी स्पेस एजेंसियों के लिए भी इससे मिली जानकारियां बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाली हैं।
इसरो के पूर्व प्रमुख ए एस किरण कुमार ने कहा है कि लैंडर ‘विक्रम’ और इसके भीतर मौजूद रोवर ‘प्रज्ञान’ से संपर्क टूट जाने के बावजूद ‘चंद्रयान-2’ का आर्बिटर ‘‘बेहतर परिणाम’’ हासिल करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि इस बार का आॅर्बिटर महत्वपूर्ण उपकरणों से लैस है जो एक दशक पहले भेजे गए ‘चंद्रयान-1’ की तुलना में अधिक शानदार परिणाम देने पर केंद्रित हैं। कुमार ने कहा कि पूर्व में नासा जेपीएल से ‘चंद्रयान-1’ द्वारा ले जाए गए दो उपकरणों की तुलना में इस बार के उपकरण तीन माइक्रोन से लेकर पांच माइक्रोन तक की स्पेक्ट्रम रेंज तथा रडारों, दोनों के मामलों में ‘‘शानदार प्रदर्शन’’ करने की क्षमता से लैस हैं।
इसरो टेलीमेट्री, ट्रैंिकग एंड कमांड नेटवर्क में एक टीम लैंडर से पुन: संपर्क स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रही है। अधिकारी ने कहा कि सही दिशा में होने की स्थिति में यह सौर पैनलों के चलते अब भी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है और बैटरियों को पुन: चार्ज कर सकता है। इसरो के एक अन्य शीर्ष अधिकारी ने कहा कि चंद्र सतह पर ‘विक्रम’ की ‘हार्ड लैंडिंग’ ने इससे पुन: संपर्क को कठिन बना दिया है क्योंकि हो सकता है कि यह ऐसी दिशा में न हो जिससे उसे सिग्नल मिल सकें। उन्होंने चंद्र सतह पर लगे झटके से लैंडर को नुकसान पहुंचने की भी आशंका जतायी।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों की तमाम कोशिशों के बावजूद लैंडर से अब तक संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है। हालांकि, ‘चंद्रयान-2’ के आॅर्बिटर ने ‘हार्ड लैंडिंग’ के कारण टेढ़े हुए लैंडर का पता लगा लिया था और इसकी ‘थर्मल इमेज’ भेजी थी। भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक लैंडर से संपर्क साधने की हर रोज कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रत्येक गुजरते दिन के साथ संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। इसरो के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘उत्तरोत्तर, आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है। बैटरी में उपलब्ध ऊर्जा खत्म हो रही होगी और इसके ऊर्जा हासिल करने तथा परिचालन के लिए कुछ नहीं बचेगा।’’उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक गुजरते मिनट के साथ स्थिति केवल जटिल होती जा रही है...‘विक्रम’ से सपंर्क स्थापित होने की संभावना कम होती जा रही है।’’
‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ से पुन: संपर्क करने और इसके भीतर बंद रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं हर गुजरते दिन के साथ क्षीण होती जा रही हैं। बीते सात सितंबर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। यदि यह ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर बाहर निकलता और चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता। लैंडर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। सात सितंबर की घटना के बाद से एक हफ्ते से ज्यादा वक्त निकल चुका है और अब इसरो के पास एक हफ्ते से काफी कम वक्त बचा है।
इसरो के एक अधिकारी ने बताया था कि विक्रम को चंद्रमा की सतह के जिस स्थान पर उतरना था, उससे करीब 500 मीटर दूर (चंद्रमा की) सतह से वह टकराया। सूत्रों ने बताया कि इसरो की एक टीम यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या वे लैंडर के एंटिना इस तरह से फिर से व्यवस्थित कर सकते हैं कि संपर्क बहाल हो जाए। इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चंद्रमा की सतह पर लैंडर के उतरने के दौरान आखिरी क्षणों में वेग घटने पर एंटिना की स्थिति में तब्दीली आ गई होगी।
लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर जमीनी स्टेशन से संपर्क खो दिया था। इसरो 2022 तक तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बना रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा पिछले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में की थी। इसके अलावा इसरो अगले साल तक भारत का पहला सूर्य मिशन आदित्य एल-1 भी शुरू करेगा।
लैंडर को शुक्रवार देर रात लगभग एक बजकर 38 मिनट पर चांद की सतह पर उतारने की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन चांद पर नीचे की तरफ आते समय 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर जमीनी स्टेशन से इसका संपर्क टूट गया। इसरो के अधिकारियों के मुताबिक चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पूरी तरह सुरक्षित और सही है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक अधिकारी ने कहा कि गगनयान मिशन 2022 में शुरू होगा।बेंगलुरु स्थित इसरो मुख्यालय में पृथ्वी अवलोकन अनुप्रयोग एवं आपदा प्रबंधन कार्यक्रम कार्यालय के निदेशक पी जी दिवाकर ने कहा कि चंद्रयान और गगनयान दोनों के अलग-अलग लक्ष्य एवं आयाम हैं। दिवाकर अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिक सचिव भी रहे हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम से शुक्रवार देर रात संपर्क टूट गया लेकिन पिछले साल भी इस मिशन की लॉन्चिंग सैन्य उपग्रह जीसैट-6ए से संपर्क टूटने की वजह से टाली गई थी। जीसैट-6 ए को मार्च 2018 में प्रक्षेपित किया गया था और इसका मकसद धरती पर बने केंद्रों की मदद से दुर्गम स्थलों पर सैन्य संचार स्थापित करने में सहायता करना था। हालांकि, कुछ दिनों के बाद इसरो ने कहा कि उसका जीसैट-6ए से संपर्क टूट गया है। इसरो ने तब कहा था कि उपग्रह में लगे दूसरे इंजन को चालू करने के बाद संपर्क टूट गया और दोबारा इसे साधने की कोशिश की जा रही। उस समय चंद्रयान-2 को अक्टूबर-2018 में प्रक्षेपित करने की योजना थी। अधिकारियों ने तब कहा था कि वे कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहते और करोड़ों डॉलर की चंद्रयान-2 परियोजना की सफलता को पुख्ता करना चाहते हैं। चंद्रयान को पिछले साल अक्टूबर में लांच करने की योजना को स्थगित कर इस साल की शुरूआत में करने की एक वजह जीसैट-6ए से संपर्क टूटना भी था। बाद में इसे जुलाई तक के लिए टाल दिया गया। चंद्रयान-2 में कोई खामी नहीं आए इसलिए इसरो ने विशेषज्ञों का समूह गठित किया।
परिक्रमा के दौरान चांद अपनी धुरी पर सिर्फ 1.54 डिग्री तक तिरछा होता है जबकि पृथ्वी 23.44 डिग्री तक। इस कारण चांद पर पृथ्वी की तरह मौसम नहीं बदलते और चांद के ध्रुवों पर ऐसे कई इलाके हैं जहां कभी सूरज की रोशनी या किरणें पहुंच ही नहीं पातीं।
अभियान से जुड़े इसरो के सीनियर अधिकारी बोले, ‘‘आर्बिटर कैमरा की तस्वीरों से यह प्रर्दिशत होता है कि लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर साबुत अवस्था में है, वह टूट कर नहीं बिखरा है। यह झुकी हुई अवस्था में है। यह अपने चार पैरों पर खड़ा नहीं है, जैसा कि यह सामान्यत: रहता है।’’ अधिकारी ने बताया, ‘‘यह उलटा नहीं है। यह एक ओर झुका हुआ है।’’
टेरेन मैपिंग कैमरा का इस्तेमाल चंद्रयान-1 में भी किया गया था। यह चांद की सतह का हाई रिजोल्यूशन तस्वीर ले सकता है। यह चांद की कक्षा से 100 किमी की दूरी से चांद की सतह पर 5 मीटर से लेकर 20 किमी तक के क्षेत्रफल की तस्वीर लेने में सक्षम है।
गौहर रजा ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "स्कैनिंग एक बार में रुकेगी नहीं। हम उसे बार-बार स्कैन करेंगे। उसकी रफ्तार (उतरने के दौरान) पता करने की कोशिश करेंगे। ये डेटा पूरी मानव जाति इस्तेमाल करेगी। यह ऐसा खजाना है, जो हमें आगे कदम बढ़ाने में जरूरत पड़ेगी। आम जनता को यह समझना चाहिए कि साइंस में कोई चीज असफल नहीं होगी। हम जब किसी चीज (लक्ष्य) में सफल नहीं हो पाते हैं, तब हमारी उसमें देर हो जाती है। हो सकता है कि दो या तीन साल बाद हो। सिर्फ यही है कि तारीख में देरी हो जाए। वैज्ञानिकों के पास हताश होकर बैठने का विकल्प नहीं होती, क्योंकि देश को, मानवता को और विज्ञान को इसकी जरूरत है। यह पूरा होगा ही।"
चीन के लोगों ने भी भारत के दूसरे चंद्र मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों की इंटरनेट पर काफी सराहना की है और उनसे उम्मीद न छोड़ने तथा ब्रह्मांड में खोज जारी रखने को कहा है। चीनी मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से यह बात सामने आ चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में बहुत से लोगों ने ट्विटर जैसी माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ‘साइना वीबो’ पर भारतीय वैज्ञानिकों से उम्मीद न छोड़ने को कहा। ग्लोबल टाइम्स एक इंटरनेट उपभोक्ता के हवाले से कहा, ‘‘अंतरिक्ष खोज में सभी मनुष्य शामिल हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि किस देश को सफलता मिली, इसे हमारी प्रशंसा मिलनी चाहिए और जो अस्थायी रूप से विफल हुए हैं, उनका भी हौसला बढ़ाया जाना चाहिए।’’ इंटरनेट पर एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष खोज के लिए महान प्रयास और त्याग किया है।
विक्रम लैंडर से संपर्क करने की कोशिश सिर्फ इसरो के वैज्ञानिक ही नहीं कर रहे। देश के शीर्ष रिसर्च संस्थानों में शुमार भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर भी इस काम में जुटा हुआ है। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, बार्क और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने मिलकर एक खास ऐंटिना बनाया है। इस ऐंटिना का साइज किसी टेनिस कोर्ट से 5 गुना बड़ा है और इसे बनाने की लागत करीब 65 करोड़ रुपये आई है।
ऑर्बिटर के काम करने की नियोजित अवधि एक साल से अधिक की है इसलिए वह डेटा भेजता रहेगा जबिक रोवर केवल एक चंद्रमा दिवस के लिए प्रयोग करने वाला था। एक चंद्रमा दिवस पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है। विदेशी मीडिया ने चंद्रयान-2 मिशन को हॉलीवुड फिल्म 'एवेंजर्स एंडगेम' से कम खर्चीला बताया था। मीडिया ने इस प्रोजेक्ट की लागत एवेंजर्स एंडगेम के बजट के आधे से भी कम बताया था। अगर यह मिशन कामयाब होता तो भारत अंतरिक्ष अभियान में अमेरिका, रूस और चीन के समूह में आ जाता।
इसरो द्वारा चंद्रयान-2 के विक्रम मॉड्यूल की स्थिति की जानकारी देना ‘‘नि:संदेह साबित करता है’’ कि आॅर्बिटर सही से काम कर रहा है। अंतरिक्ष विशेषज्ञ अजय लेले ने यह जानकारी दी है। रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के वरिष्ठ शोधार्थी लेले ने यह भी कहा कि यह महज वक्त की बात थी कि आॅर्बिटर विक्रम को कब तक खोज पाता है लेकिन अब सवाल यह है कि लैंडर किस स्थिति में है। लेले ने कहा, ‘‘लैंडर मॉड्यूल की स्थिति बिना किसी संदेह के साबित करती है कि आॅर्बिटर बिल्कुल सही तरीके से काम कर रहा है। आॅर्बिटर मिशन का मुख्य हिस्सा था क्योंकि इसे एक साल से ज्यादा वक्त तक काम करना है।’’ उन्होंने कहा कि आॅर्बिटर के सही ढंग से काम करने से मिशन के 90 से 95 फीसदी लक्ष्य हासिल कर लिए जाएंगे।
खगोलविद स्कॉट टायली ने भी विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित होने की संभावना जताई है। बताते चलें कि टायली ही वो श्ख्स थे, जिन्होंने 2018 में अमेरिका के मौसम उपग्रह को ढूंढ निकाला था। सैटेलाइट नासा द्वारा 2000 में लॉन्च की गई थी। पांच साल बाद इससे संपर्क टूट गया था।
इसरो के एक अधिकारी के मुताबिक, "चंद्रमा के विक्रम के साथ संचार लिंक कायम करने की कोशिश जारी है। यह कोशिश 20-21 सितंबर तक किए जाएंगे, जब सूरज की रोशनी उस क्षेत्र में होगी, जहां विक्रम है। बता दें कि बेंगलुरु के नजदीक बयालालू में अपने भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) के जरिए इसरो विक्रम के साथ संपर्क की कोशिश कर रहा है।
कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी कैलटेक और नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के अधिकारियों ने इसरो का दौरा किया है। अधिकारियों ने इसरो के चेयरमैन के. सिवन से मुलाकात की। हालांकि, इसरो की ओर से यह नहीं बताया गया कि बैठक का मकसद क्या था? इससे पहले खबर आई थी कि विक्रम लैंडर से संपर्क करने के लिए नासा ने भी मदद के हाथ बढ़ाए हैं। इसरो के एक अधिकारी के मुताबिक, नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी विक्रम को रेडियो सिग्नल भेज रही है। वहीं, इसरो भी अपने लैंडर तक सिग्नल भेजने और और संपर्क कायम करने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है।
मीडिया में आई रिपोर्ट्स की मानें तो इसरो अब विक्रम लैंडर के असफल होने के कारणों की जांच करेगा। खबर के मुताबिक, एजेंसी यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि ऐसा क्या गलत हुआ जिसकी वजह से चंद्रयान-2 मिशन का लैंडर वहां उतर नहीं सका। स्पेस एजेंसी के एक रिटायर्ड अधिकारी के हवाले से यह खबर सामने आई है। अधिकारी के मुताबिक, इसरो को अभी तक जो भी डेटा मिला है, उसकी जांच की जाएगी। इसरो यह पता करेगा कि लॉन्च से पहले किसी सिमुलेशन को क्या अनदेखा किया गया था?
इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा था,‘‘आर्बिटर कैमरा की तस्वीरों से यह प्रदर्शित होता है कि लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर साबुत अवस्था में है, वह टूट कर नहीं बिखरा है। यह झुकी हुई अवस्था में है। यह अपने चार पैरों पर खड़ा नहीं है, जैसा कि यह सामान्यत: रहता है।’’अधिकारी ने कहा, ‘‘यह उलटा नहीं है। यह एक ओर झुका हुआ है।’’बता दें कि चंद्रयान-2 में आर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) हैं। लैंडर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस है जो पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चंद्रयान-2 के ‘लैंडर’ विक्रम से शीघ्र संपर्क साध कर उसमें मौजूद ‘रोवर’ प्रज्ञान को उपयोग में लाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। ‘लैंडर’ विक्रम के चंद्रमा की सतह पर शनिवार तड़के ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के दौरान आखिरी क्षणों में उसका इसरो के जमीनी स्टेशनों से संपर्क टूट गया था। उस वक्त विक्रम पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह (चंद्रमा) से महज 2.1 किमी ऊपर था। ‘लैंडर’ विक्रम के अंदर ‘रोवर’ प्रज्ञान भी है। इसरो ने रविवार को कहा था कि विक्रम ने ‘हार्ड लैंडिंग’ की है।
उधर, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख ए एस किरण कुमार ने कहा है कि लैंडर ‘विक्रम’ और इसके भीतर मौजूद रोवर ‘प्रज्ञान’ से संपर्क टूट जाने के बावजूद ‘चंद्रयान-2’ का आर्बिटर ‘‘बेहतर परिणाम’’ प्राप्त करने में सक्षम है। कुमार ने कहा, ‘‘अंतिम ‘लैंडिंग’ गतिविधि को छोड़कर अन्य सभी योजनाबद्ध गतिविधियां अक्षुण्ण हैं।’’उन्होंने कहा कि इस बार का ऑर्बिटर महत्वपूर्ण उपकरणों से लैस है जो एक दशक पहले भेजे गए ‘चंद्रयान-1’ की तुलना में अधिक शानदार परिणाम देने पर केंद्रित हैं। कुमार ने कहा कि पूर्व में नासा जेपीएल से ‘चंद्रयान-1’ द्वारा ले जाए गए दो उपकरणों की तुलना में इस बार के उपकरण तीन माइक्रोन से लेकर पांच माइक्रोन तक की स्पेक्ट्रम रेंज तथा रडारों, दोनों के मामलों में ‘‘शानदार प्रदर्शन’’ करने की क्षमता से लैस हैं।
इसरो के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘उत्तरोत्तर, आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है। बैटरी में उपलब्ध ऊर्जा खत्म हो रही होगी और इसके ऊर्जा हासिल करने तथा परिचालन के लिए कुछ नहीं बचेगा।’’उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक गुजरते मिनट के साथ स्थिति केवल जटिल होती जा रही है...‘विक्रम’ से सपंर्क स्थापित होने की संभावना कम होती जा रही है।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या संपर्क स्थापित होने की थोड़ी-बहुत संभावना है, अधिकारी ने कहा कि यह काफी दूर की बात है। इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क में एक टीम लैंडर से पुन: संपर्क स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रही है।