राजा के राज पर मुसीबतों की आंच
न अगस्त, 2009 को हिमाचल के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया था। उस समय प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी।

न अगस्त, 2009 को हिमाचल के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया था। उस समय प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी। आरोप था कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते (2004-07) भ्रष्टाचार रोकथाम कानून 1989 के प्रावधानों का उल्लंघन किया। वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी पर मामला दर्ज होने के बाद दिसंबर, 2010 में दोनों को जमानत मिल गई हालांकि अप्रैल, 2011 में उस समय की प्रदेश सरकार ने यह कह कर कि गवाहियों में छेड़छाड़ के आरोप हैं, इसे रद्द कर देने का आग्रह किया।
इसके बाद दो उद्योगपतियों ने यह आरोप लगाकर कि गवाहियां फर्जी और गलत हैं, खुद को इस मामले से बाहर करवाने की कोशिश की। इसी बीच वीरभद्र सिंह ने यह मामला पुलिस के पास से सीबीआइ में ले जाने की कोशिश की और साथ ही कोर्ट में इस संबंध में चल रहे मामले पर रोक की गुहार भी लगाई। जनवरी, 2012 में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने मामला तब्दील करने और ‘स्टे’ से इनकार करते हुए ट्रायल कोर्ट में इसे जारी रखने के आदेश दिए। वीरभद्र सिंह को 26 जून, 2012 को केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसी साल हिमाचल की अदालत में उनके और पत्नी प्रतिभा सिंह के खिलाफ मामले से उन्हें बरी कर दिया गया। इसके बाद हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बन गए।
वीरभद्र सिंह के खिलाफ मामलों में दिलचस्प मोड़ तब आया जब 25 सितंबर, 2015 में सीबीआइ ने उनके खिलाफ 2009-2012 के बीच केंद्रीय मंत्री रहते 6.1 करोड़ के धनशोधन का मामला दर्ज कर लिया। ये मामले उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, बेटे विक्रमादित्य सिंह और बेटी अपराजिता सिंह के खिलाफ भी दर्ज किए गए। इस पर राजनीतिक बयानबाजी चल ही रही थी कि अगले ही दिन (26 सितंबर) को उनके मुख्यमंत्री रहते उनके आवास पर सीबीआइ ने आय से अधिक संपति के मामले में छापे मारे। जब सीबीआइ उनके शिमला स्थित निजी आवास ‘होली लाज’ पर छापा मार रही थी उस समय वे अपनी बेटी के विवाह में व्यस्त थे। इसके बाद 26 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल हाई कोर्ट के उनकी गिरफ्तारी पर रोक के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को रद्द करते हुए उन्हें भी नोटिस जारी किया कि वे इस मामले में अपना जवाब दायर करें। 15 नवंबर को प्रवर्तन निदेशालय ने भी वीरभद्र सिंह के खिलाफ धनशोधन का मामला दर्ज कर लिया। इस साल होली के पहले प्रवर्तन निदेशालय ने उनकी आठ करोड़ की संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया।
(प्रस्तुति : राकेश रॉकी)
साजिशों के पीछे केंद्र के मंत्री
मेरे खिलाफ रची गई साजिश के पीछे मोदी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री हैं। भाजपा की ओर से लगाए आरोपों से मैं पहले भी बरी हो चुका हूं। मुझे विश्वास है कि इस मामले में भी बरी हो जाऊंगा। भाजपा के अंदर (पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार) धूमल की हालत कमजोर पड़ गई है। वे अपना वर्चस्व कायम रखने की चुनौती झेल रहे हैं लिहाजा घटिया राजनीति का प्रदर्शन कर रहे हैं। लड़ाई राजनीतिक मोर्चे पर लड़ी जानी चाहिए न कि व्यक्तिगत आरोपों के सहारे। भाजपा मेरी ही नहीं देश में सभी कांग्रेस सरकारों को गिराने की साजिश रच रही है और इसके लिए वह जांच एजंसियों का बेजा इस्तेमाल कर रही है।
– वीरभद्र सिंह, मुख्यमंत्री
नैतिकता है तो दें इस्तीफा
वीरभद्र सिंह के खिलाफ स्कूटर पर सेब ढोने से लेकर दस्तावेज छिपाने और आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले न्यायालय में चल रहे हैं और वे आरोप हम पर लगा रहे हैं। केंद्र पर सीबीआइ के बेजा इस्तेमाल का उनका आरोप बेहूदा है। मुख्यमंत्री पर महज आय से अधिक संपत्ति का ही मामला नहीं है बल्कि इसमें भ्रष्टाचार भी शामिल है। इन मामलों में मुख्यमंत्री खुद को बचाने में लगे हैं। वे नैतिकता की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। अब जबकि उनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं और मामले अदालत में पहुंच गए हैं तो नैतिकता का तकाजा है कि वे खुद के दावे को सही साबित करने के लिए इस्तीफा दें।
– प्रेम कुमार धूमल, नेता प्रतिपक्ष
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