चीन ने अपनी पुरानी ‘सलामी स्लाइसिंग’ के माडल पर काम तेज कर दिया है। नापाक इरादों को भांपते हुए भारतीय सेना ने भी अपनी मुस्तैदी और तैनाती पर नए सिरे से काम शुरू दिया है। दरअसल, चीन ने सीमा पर ‘बफर जोन’ पर निगाहें गड़ाई है। ‘बफर जोन’ उस जगह को कहा जाता है, जिसे तनाव के चलते आने वाले टकराव को रोकने के लिए खाली कर दिया जाता है।
सेना में बफर जोन वह क्षेत्र होता है जहां दोनों देशों की सेनाओं में से किसी का भी नियंत्रण नहीं होता। ना ही बफर जोन में कोई भी सेना पेट्रोलिंग (गश्त) कर सकती है, ना ही किसी भी तरह का निर्माण कार्य कर सकती है। लेकिन एलएसी पर बफर जोन घोषित क्षेत्रों का इस्तेमाल चीन भारतीय सेना पर नजर रखने में कर रहा है। चीनी सेना ने ऊंची चोटियों पर कैमरे लगाए हैं। हर वार्ता में भारत की ओर से यह मुद्दा उठाया जा रहा है कि यह वार्ता की शर्तों का उल्लंघन है, लेकिन चीनी पक्ष अनर्गल तर्क दे रहा है।
खाली क्षेत्रों में पैठ
चीन की सेना सीमाई इलाकों में लगातार निर्माण कर रही है। सैन्य अभ्यास भी लगातार किया जा रहा है। भारत भी इस क्षेत्र में आने वाली हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार है। अगर दोनों सेनाओं के बीच हुए तनाव पर नजर डालें तो साल 2013 और 14 के बाद से हर दो या तीन साल पर झड़प की स्थिति पैदा हो रही है। बीते दिनों पुलिस महानिदेशकों के सम्मेलन में यह मुद्दा भी उठा था।
लेह-लद्दाख के पुलिस अधीक्षक पीडी नित्या द्वारा पुलिस महानिदेशकों के अखिल भारतीय सम्मेलन में पेश किया दस्तावेज मीडिया में चर्चा में रहा, जिसमें कहा गया कि पूर्वी लद्दाख में 65 गश्ती बिंदुओं में से 26 पर भारतीय सुरक्षा बलों की मौजूदगी नहीं। काराकोरम दर्रे से लेकर चुमार तक 65 गश्ती बिंदुओं में से 26 पर चीन ने मौजूदगी कायम कर रखी है।
बेनतीजा क्यों वार्ताएं
चुशुल में ब्लैक टाप, हेलमेट टाप, डेमचोक, काकजंग, हाट स्प्रिंग्स में गोगरा हिल्स और चिप चाप नदी के पास देपसांग एरिया में चीन की स्थिति मजबूत है। पुलिस अधीक्षक के दस्तावेज में कहा गया है कि सितंबर 2021 तक जिला प्रशासन और सुरक्षा बलों के वरिष्ठ अधिकारी दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में काराकोरम दर्रे तक आसानी से गश्त कर पा रहे थे।
यह दौलत बेग ओल्डी से 35 किमी दूर तक है। दिसंबर 2021 में भारतीय सेना ने डीबीओ पर चेक पोस्ट पर रोक लगाई थी, जिससे काराकोरम पास तक कोई न जा सके। भारत-चीन के बीच हो रही बातचीत का बुरा पक्ष यह है कि भारत सहमति के बिंदुओं को मानने के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन चीन ऐसा नहीं करता।
खुशफहमी नहीं, सतर्कता जरूरी
विशेषज्ञों की राय है कि हाल के दिनों में चीन की ओर से एलएसी की स्थिति को लेकर जो बयान सामने आए हैं, उससे भारत को किसी खुशफहमी में रहने की जगह, सतर्क रहने की जरूरत है। चीन के पिछले राजदूत सुन विदोंग ने अगस्त 2022 में घोषणा की थी कि एलएसी पर हालात स्थिर हैं, लेकिन नौ दिसंबर को चीन सेना ने पूर्वी सीमा से सटे यांगत्से में ऊंचाई वाली चोटी पर कब्जा करने का प्रयास किया।
हालांकि, भारतीय सेना ने वहां से चीनी सैनिकों को खदेड़ कर उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। झड़प के बाद एक बार फिर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने दोहराया कि भारत-चीन सीमा पर स्थिति सामान्य तौर पर स्थिर है। बावजूद इसके चीन पड़ोसी देश के खिलाफ सलामी-स्लाइसिंग यानी छोटे-छोटे सैन्य अभियान चलाकर धीरे-धीरे किसी बड़े इलाके पर कब्जा करने के मकसद से काम कर रहा है और उसकी यह मंशा सीमा पर स्थिरता को प्रभावित कर रही है। ऐसे में भारतीय रणनीतिक प्रतिष्ठानों को व्यापक स्तर पर ना सिर्फ सतर्क रहने की जरूरत बताई जा रही है, बल्कि चीन की इस तरह की टिप्पणी को लेकर चौकन्ना रहने के सुझाव भी दिए जा रहे हैं।
चीन की हताशा
भारत में राजनीतिक विपक्ष भी केंद्र सरकार से भारत की जी20 अध्यक्षता को चीन पर लगाम लगाने से जुड़ी कवायदों के लिए इस्तेमाल करने को कह रहा है। ये बात चीन को भी समझ में आ गई है। पिछले कुछ वर्षों से उसकी खोखली धमकियों का दुनिया पर असर घटता जा रहा है। ऐसे में चीन दुनिया को अपनी श्रेष्ठता का एहसास कराने के लिए बेचैन है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग घरेलू मोर्चे पर अपनी धाक बढ़ाने के लिए विदेश नीति को एक जरिए के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। हाल के दिनों में शून्य- कोविड नीति की वजह से उनके प्रशासन की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है।
ऐसे में जनता का ध्यान भटकाने और जनमत में विभाजन लाने के उद्देश्य से उग्र राष्ट्रवाद और जंगी उन्माद फैलाना एक चालाकी भरा पैंतरा लग सकता है। ताइवान जलसंधि में नए सिरे से पनपा तनाव भी इसी मकसद को पूरा करता है।
भारत का संकल्प
भारत अरुणाचल प्रदेश में पूरी संजीदगी से बुनियादी ढांचा तैयार कर रहा है। इनमें सड़क निर्माण से लेकर ग्रीनफील्ड एअरपोर्ट की स्थापना जैसे काम शामिल हैं।13,700 फीट की ऊंचाई पर बन रही सेला सुरंग के जुलाई 2023 तक तैयार हो जाने की उम्मीद है। सीमा सड़क संगठन इस पर तेजी से काम कर रहा है। तवांग झड़प के कुछ ही दिनों बाद रक्षा मंत्रालय ने 120 प्रलय मिसाइलों की खरीद को मंजूरी दे दी। चीन और पाकिस्तान के साथ लगी सीमाओं पर इनकी तैनाती की जाएगी। इनको बीच में रोक पाना बेहद मुश्किल है।
क्या कहते हैं जानकार
भारत और चीन के बीच विकास प्रतिस्पर्धा चीनी सत्ता और जनता दोनों के दिमाग पर छाया रहने वाले सबसे अहम मुद्दा है। चीन के बारे में यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां एक ही पार्टी के तहत एक निरंकुश तानाशाही है, जो अपनी नीतियों को लेकर कट्टर है।
- शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव
भारत सीमावर्ती इलाकों में अपने सैन्य मौजूदगी बढ़ा रहा है। लद्दाख का हर इलाका अब भारतीय सेना की रडार प्रणाली की जद में है। सीमाओं पर सड़कें ऐसी बना ली गई हैं, जिससे किसी भी युद्धजन्य स्थिति में विरोधियों पर भारी पड़ा जा सके। साथ में, वार्ता इसलिए जारी है, क्योंकि भारत चीन के साथ सीमाई विवाद का शांतिपूर्ण हल चाहता है।
- लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एचएस पनाग