संभावना जताई जा रही है कि बजट में राजनीतिक जरूरत की झलक दिखेगी। कई राहत उपायों की घोषणा किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है। करों में कटौती कर महंगाई के मोर्चे पर राहत, कर ढांचे में बदलाव कर नौकरीपेशा वर्ग को आयकर में छूट, रसोई गैस की कीमतों में कटौती, कर्ज पर ब्याज दरों में राहत, किसानों के लिए राहत और सम्मान निधि में बढ़ोतरी, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन को लेकर मध्य वर्ग की जरूरतों को ध्यान में रखकर लुभावन घोषणाओं की उम्मीद जताई जा रही है।
यह बजट पूर्व अनुमान और उम्मीदों का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष अर्थव्यवस्था के व्यवहारिक पक्ष का है, वैश्विक संकट और कारकों का है जिनसे भारत की अर्थव्यवस्था जरूर प्रभावित होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन के साथ-साथ यूरोजोन सहित दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के इस साल मंदी की चपेट में आने की आशंका है। ऊर्जा संकट और भू-राजनीतिक तनाव के पहलू हैं ही। भारतीय अर्थव्यवस्था के भी ये बड़े कारक बन रहे हैं।
इन सबके बीच अमूमन बजट में गरीबों को राहत और उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान करने पर ज्यादा जोर होता है। मध्यवर्ग के हितों की चर्चा कर ढांचे में बदलाव और उपभोक्ता बाजार पर असर तक सीमित रहती है। अधिकांश व्यय योजनाएं गरीबों के प्रति लक्षित हैं। खाद्य छूट या मुफ्त भोजन कार्यक्रम, पीएम किसानों को नकद हस्तांतरण योजना, उर्वरक सबसिडी, मनरेगा, कृषि ऋण माफी से लेकर स्वास्थ्य बीमा योजना (पीएम आयुष्मान भारत) तक।
राजकोषीय व्यय योजनाएं औद्योगिक क्षेत्र की ओर उन्मुख हैं। सरकार निवेश और अधिक उत्पादन के लिए एकमुश्त सबसिडी दे रही है। वर्ष 2019 में कारपोरेट कर दर को कम कर दिया गया था – उद्योग जगत के लिए प्रभावी कर की दर अब 22 फीसद के करीब है। इसके साथ ही, उद्योग द्वारा चुकाए नहीं जा सकने वाले कर्ज के निपटान को हल करने के लिए समाधान तंत्र है- कर्ज माफी।
दूसरी तरफ वेतनभोगी वर्ग सरकार के लिए एक सुनिश्चित राजस्व धारा बनाता है। वेतनभोगी वर्ग को प्रत्यक्ष या परोक्ष करों में वृद्धि के माध्यम से सरकारी राजस्व बढ़ाने के प्रयासों का खामियाजा भुगतना पड़ा है। सबसिडी वापसी और कर नियमों में बदलाव इस वर्ग को अधिक कर का भुगतान करने के लिए मजबूर करते हैं।
मध्य वर्ग- नौकरीपेशा वर्ग की जमा पर ब्याज आय (जो एक सीमा तक कर मुक्त थी) को पिछले साल वापस ले लिया गया (धारा 80 एल)। मियादी जमा योजनाओं की एक साल की अवधि को बदलकर तीन साल कर दिया गया है। प्रतिभूतियों में लाभ पर अब कर लगाया जा रहा है। लाभांश अब कर मुक्त नहीं। धारा 80 सी के तहत निवेश की जाने वाली सीमा को लंबे समय तक अपरिवर्तित रखा गया है। राष्ट्रीय बचत पत्र पर ब्याज जो कर मुक्त था, अब कर योग्य है।
भविष्य निधि पर एक निश्चित स्तर से ऊपर ब्याज पर कर लगाया जा रहा है। जब आय प्रति वर्ष 50 लाख रुपए को पार करती है, तो सीमा से अधिक वृद्धि के बजाय पूरी आय पर अधिभार होता है। पिछले एक दशक में मुद्रास्फीति औसतन छह फीसद प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में 2.5 लाख रुपए की मूल छूट सीमा असंगत लगती है। कर योग्य आय में बदलाव नहीं होने और संचयी मुद्रास्फीति 50 फीसद से अधिक होने के कारण छूट की सीमा बढ़ाकर 3.75 लाख रुपए करने की मांग की जा रही है।
पूर्व वित्त सचिव एससी गर्ग के मुताबिक, अर्थव्यवस्था में बचत कम हो रही है और लोगों को प्रेरित करने के लिए कर प्रोत्साहन व्यवस्थित होगा। सरकार खुदरा निवेशकों के लिए अपने उधारी कार्यक्रम का कुछ हिस्सा कर मुक्त बांड के रूप में अलग रख सकती है जो सात फीसद की कूपन दर के साथ जारी किए जाते हैं। बचत को प्रोत्साहित करने के लिए धारा 80 सी की 1.5 लाख रुपए की सीमा को दोगुना करने की जरूरत बताई जा रही है।
सरकार के सामने वित्तीय अनुशासन बनाए रखने यानी राजकोषीय घाटे को काबू में रखने की बड़ी चुनौती है। दावोस में हाल में विश्व आर्थिक मंच की बैठकों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने दो टूक कहा, राजनेताओं को अपनी राजकोषीय नीति ऐसी बनानी होगी जिससे समाज के सबसे कमजोर तबके और मध्यवर्ग को मदद मिले। भारत का बजटीय राजकोषीय घाटा 6.4 फीसद है।
पिछले दशक में यह औसतन चार से 4.5 फीसद हुआ करता था। चार साल में केंद्र सरकार का कर्ज दोगुना बढ़ा है। भारत की आर्थिक विकास दर बेहतर रहने की भले ही संभावना जताई जा रही हो, लेकिन देश में बेरोजगारी दर लगातार ऊंचे स्तर पर बरकरार है। सेंटर फार मानिटरिंग द इंडियन इकोनामी के दिसंबर 2022 के आंकड़ों के मुताबिक शहरों में बेरोजगारी दर बढ़ कर 10 फीसद से अधिक हो गई है।
वैश्विक स्तर पर मंदी की चुनौती है। वैश्विक आर्थिक विकास के लिहाज से 2009 के बाद 2023 इस सदी का तीसरा सबसे खराब वर्ष होने की आशंका है। विश्लेषकों का अनुमान है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन के साथ-साथ यूरोजोन सहित दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं इस साल मंदी की चपेट में आ सकती हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंक उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की मांग को कम करने की कोशिशों के मद्देनजर ब्याज दरों में लगातार वृद्धि कर रहे हैं, ताकि बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाई जा सके।
वैश्विक विकास दर कितनी प्रभावित होगी, यह मुख्य रूप से यूक्रेन युद्ध की स्थिति पर निर्भर करेगी। कम होती मांग, ऊर्जा की कीमतों में गिरावट, आपूर्ति में कमी और शिपिंग की लागत में कमी से मदद मिलेगी। हालांकि, मुद्रास्फीति की दर केंद्रीय बैंकों के लक्ष्य के स्तर से ज्यादा रहेगी जिससे ब्याज दरों में और बढ़ोतरी हो सकती है। सैन्य और राजनीतिक तनाव अर्थव्यवस्था के लिए बड़े खतरे बने रहेंगे।
ऐसे में निवेशक इस वर्ष भी फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा सकते हैं। पश्चिमी देश मंदी के दौर में पहुंच गए हैं, इसलिए भारतीय निर्यात पर इसका असर पड़ सकता है। भले ही भारतीय अर्थव्यवस्था ने दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बढ़िया प्रदर्शन किया हो, सरकार को भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार ढांचागत सुधारों पर जो देना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत को अपनी क्षमताओं में बढ़ोतरी करनी होगी और आर्थिक गतिविधियों का दायरा बढ़ाना होगा।
बजट से उम्मीद
वेतनभोगी वर्ग को आठ साल बाद कर स्लैब में बदलाव से आयकर राहत की उम्मीद। महंगाई के मोर्चे पर रसोई गैस के दाम बढ़ने से सबसे ज्यादा असर घर के बजट पर पड़ा है। खानेपीने की चीजें तो महंगी हुई ही हैं। वरिष्ठ नागरिकों को उम्मीद है कि सरकार उन्हें ट्रेन के टिकट में मिलने वाली छूट फिर से दे सकती है। महंगाई को काबू में रखने के लिए रिजर्व बैंक ने इस साल रेपो रेट में कई बार बढ़ोतरी की है।
इसका सीधा असर बैंकों के ब्याज दरों पर पड़ा और कर्ज लेना महंगा हो गया। पीएम-किसान योजना किसानों को दी जाने वाली नकद सहायता को बढ़ाए जाने की उम्मीद। लोगों को उम्मीद है कि स्वास्थ्य बजट को बढ़ाया जाएगा। देश के सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था में सुधार होगा।रोजगार के बेहतर मौकों, रोजगार को बढ़ावा देने के लिए सरकार की नीति की उम्मीद। किराए कम होने की उम्मीद।