वकील जिन मामलों में खुद पैरवी कर रहे हों, उन्हीं को लेकर वे अखबारों में कॉलम लिख कर न्यायाधीशों की निंदा करें, यह बात कतई ठीक नहीं है। बॉम्बे हाइकोर्ट ने ऐसा करने वाले वकीलों की तीखी भर्त्सना करते हुए जजों पर ऐताबार करने की सलाह दी है।
अदालत ने यह टिप्पणी दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर हैनी बाबू की अंतरिम मेडिकल बेल याचिका की सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने एक वकील द्वारा अखबार में लिखे लेख का जिक्र किया और ऐसे लेखन पर आपत्ति जताई। इस लेख में फादर स्टैन स्वामी की बेल याचिका पर कोर्ट के रवैये की आलोचना की गई थी। उल्लेखनीय है कि फादर स्टैन स्वामी और हैनी बाबू, दोनों ही भीमा कोरेगांव मामले में अभियुक्त हैं।
खंडपीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस एसएस शिंदे ने जब उपर्युक्त बातें एडवोकेट युग मोहित चौधरी से कहीं तो अदालत में कुछ देर के लिए माहौल थोड़ा ड्रामाई हो गया। दरअसल, संबंधित लेख चौधरी के एक जूनियर ने लिखा था। जस्टिस शिंदे ने पूछाः क्या सोचते हैं आप…कि अखबार में आर्टिकिल लिख कर आप मामले में सफल हो जाएंगे?…अगर आपको सिस्टम पर भरोसा नहीं तो अदालत तक आते ही क्यों हैं?
न्यायमूर्ति की बात सुनकर एडवोकेट चौधरी अपने जूनियर के बचाव में पूरी ताकत से कूद पड़े। वे बोलेः फादर स्टैन स्वामी का केस न तो मैं लड़ रहा हूं और न ही मेरा जूनियर। हम तो लिखते रहेंगे और कोर्ट से रिलीफ की गुजारिश भी करते रहेंगे। इस पर न्यायमूर्ति ने कहा, मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरोध में नहीं हूं। लेकिन स्टैन स्वामी की ज़मानत याचिका एक विचाराधीन मामला है। यह कहना तो उचित नहीं कि मैं स्टैन स्वामी का केस नहीं लड़ रहा। आखिर ये सारे मामले भीमा कोरेगांव एलगार परिषद से ही तो संबद्ध हैं। जस्टिस ने चौधरी को याद दिलाया कि वे और उनके जूनियर इनमें से तीन मामलों की पैरवी कर रहे हैं।
चौधरी ने कहा कि अगर मैं या मेरे चैम्बर का कोई वकील उस मामले पर लिखता है जिसकी वह पैरवी कर रहा है तो निंदा की जा सकती है। इतना कहकर उन्होंने यह भी कहा कि निंदा तो अदालतों की भी उनके निर्णयों के लिए की जा सकती है।
इस पर न्यायमूर्ति शिंदे ने कहाः मैं एक बार फिर कह रहा हूं कि समय के अभाव के कारण मैं अखबार में छपने वाली रिपोर्ट्स नहीं पढ़ता। लेकिन इस मामले पर चर्चा हुई तो मुझे पता चला। भाई सवाल यह है कि जब हम पर भरोसा ही नहीं तो आप अदालत आते ही क्यों हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनेक मामले हमारे पास आए हैं, जिनमें हमने इस अधिकार के पक्ष में फैसले दिए हैं।…हम पर भरोसा कीजिए। सिस्टम पर भरोसा कीजिए। हम यहां न्याय देने के लिए बैठे हैं। बगैर किसी से भयभीत हुए।
यह सुनते ही एडवोकेट चौधरी तपाक से बोलेः अदालत पर भरोसा है तभी तो हम यहां आते हैं। लेकिन कभी-कभी, अदालत हमारा भरोसा तोड़ देती है। जवाब में जस्टिस शिंदे ने चौधरी को याद दिलाया कि इसी अदालत ने डॉ वरवर राव को उचित राहत प्रदान की थी। डॉ राव इस वक्त मेडिकल बेल पर हैं। यह राहत जस्टिस शिंदे की ही बेंच ने दी थी।