दूसरे धर्म के युवक से प्रेम, पिता ने बेटी को रोका तो हाई कोर्ट ने कहा- जहां चाहे जाने का अधिकार
कोर्ट ने यह बात एक एमबीए छात्रा की हेबियस कॉर्पस याचिका का निपटारा करते हुए कही। छात्र ने 23 वर्षीय महिला को कोर्ट में पेश करने के लिए याचिका लगाई थी। छात्र का कहना था कि वह उस महिला से शादी करना चाहता है लेकिन उसके माता-पिता ने अवैध रूप से उसे बंदी बना रखा है।

मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने एक महिला पेश हुई। जिसके बाद कोर्ट ने ठाणे पुलिस को आदेश दिया कि इस महिला को सुरक्षा प्रदान करे और उसे उसके मन चाहे स्थान तक छोड़ने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि महिला वयस्क है और अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा सकती है। उसके माता-पिता को उसकी आजादी पर रोक लगाने का कोई हक नहीं है।
कोर्ट ने यह बात एक एमबीए छात्रा की हेबियस कॉर्पस याचिका का निपटारा करते हुए कही। छात्र ने 23 वर्षीय महिला को कोर्ट में पेश करने के लिए याचिका लगाई थी। छात्र का कहना था कि वह उस महिला से शादी करना चाहता है लेकिन उसके माता-पिता ने अवैध रूप से उसे बंदी बना रखा है। क्योंकि दोनों का धर्म अलग-अलग है। एमबीए के छात्र ने कोर्ट को बताया कि वह अपना जीवन युवती के साथ गुजारना चाहता था जबकि उसके माता-पिता ने उसकी आजादी पर रोक लगा दी है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस मनीष पिटले की खंडपीठ ने कहा कि युवती व्यस्क है। न कोर्ट और न ही उसके माता-पिता उसकी आजादी पर पहरा लगा सकते हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यद्यपि याचिकाकर्ता और युवती एक साथ रहना चाहते हैं और शादी करना चाहते थे, लेकिन उसके माता-पिता उसे जबरन ले गए थे और इसलिए कोर्ट में उसकी उपस्थिति की मांग की गई है।
अधिवक्ता ए एन काज़ी, ने दावा किया कि उनके मुवक्किल और महिला लगभग पाँच साल से रिश्ते में है और एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद शादी करने की योजना बना रहे थे। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि महिला के माता-पिता उनके रिश्ते के खिलाफ थे और महिला को कैद कर के रखा था।
काज़ी ने कहा कि 16 दिसंबर, 2020 को जब उनके क्लाइंट ने मुंबई पुलिस की मदद से महिला से मिलने की कोशिश की, तो उसके माता-पिता ने उसे जबरन बंदी बना लिया और उससे मिलने नहीं दिया। जिसके बाद उन्होने अदालत का दरबाजा खटखटाया।