Impact Of Yatras: भारत के राजनीतिक इतिहास में यात्राओं का खासा महत्व रहा है। राजनेताओं ने समय समय पर खुद को लाइम लाइट में लाने के लिए यात्राओं का सहारा लिया। युवा तुर्क चंद्रशेखर ने इसकी शुरुआत की थी। अब राहुल गांधी की यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर है। राहुल को भारत जोड़ो यात्रा से कितना फायदा मिलता है ये तो समय ही बता सकता है लेकिन पहले की यात्राओं का परिणाम क्या रहा, ये बात यहां समझते हैं।
1983 में चंद्रशेखर ने पहली बार यात्रा निकाली थी। वो जनता पार्टी के नेता थे। उन्होंने कन्याकुमारी से यात्रा शुरू की और छह महीने के सफर के बाद वो दिल्ली पहुंचे। हालांकि इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से उनकी यात्रा का 1984 के चुनावों पर कोई खास असर देखने को नहीं मिला। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि यात्रा से चंद्रशेखर के रुतबे में इजाफा जरूर हुआ। वो बाद में देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे।
आडवाणी की यात्रा ने बदल दिए थे राजनीतिक समीकरण
भारतीय राजनेताओं की यात्रा की चर्चा हो तो उसमें बीजेपी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी का नाम जरूर आएगा। अयोध्या के राम मंदिर के लिए सितंबर 1990 में शुरू की गई यात्रा तकरीबन 10 हजार किमी की थी। गुजरात के सोमनाथ मंदिर से शुरू हुई यात्रा हालांकि अपने पड़ाव तक नहीं पहुंच सकी। बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन सीएम लालू यादव ने उन्हें अरेस्ट कर लिया। यात्रा तो रुक गई लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी राजनीतिक लाभ हासिल कर चुके थे। बीजेपी की जड़ इसके बाद मजबूत हुई तो राम मंदिर आंदोलन ने भी जोर पकड़ा।
2004 में भी एलके आडवाणी ने एक यात्रा निकाली थी। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की उपलब्धियों को लोगों तक पहुंचाने के लिए आडवाणी ने भारत उदय यात्रा का अगाज किया। इंडिया शाइनिंग का नारा आडवाणी हर जगह दे रहे थे। अलबत्ता आम चुनाव में बीजेपी को शिकस्त झेलनी पड़ी। विश्लेषक मानते हैं कि आडवाणी की यात्रा वो उत्साह पैदा नहीं कर सकी जो उन्होंने 1990 में कर दिखाया था।
1991 में बीजेपी के एक और दिग्गज मुरली मनोहर जोशी ने भी एक यात्रा निकाली। लेकिन ये भी जोरदार नहीं रही। बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा भी फहराया। फिर भी उनकी यात्रा तो बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया।
राजीव गांधी के इशारे पर निकली थी संदेश यात्रा
1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इशारे पर कांग्रेस के नेताओं ने संदेश यात्रा निकाली थी। मुंबई के AICC सेशन के बाद यात्रा का शुभारंभ हुआ। तीन महीने बाद दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में यात्रा का समापन हुआ। लेकिन यात्रा का कोई ज्यादा असर नहीं दिख सका।
राजशेखर रेड्डी ने बदल दिया था चुनाव
एक यात्रा जो राजनीतिक स्तर पर समीकरण बदलने वाली रही वो आंध्र प्रदेश के नेता वाईएस राज शेखर रेड्डी की 14 हजार किमी की यात्रा रही। झुलसाने वाली गर्मी में रेड्डी ने चुनाव से पहले ये यात्रा निकाली। एक साल बाद चुनाव हुए तो परिणाम सामने रहा। रेड्डी ने सभी का सफाया कर डाला। 2017 में उनके बेटे वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने प्रजा संकल्प यात्रा निकाली और सीएम की कुर्सी तक जा पहुंचे।
इनके अलावा कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा यात्रा 2017 में निकाली। उसके बाद कांग्रेस मध्य प्रदेश की सत्ता तक जा पहुंची। बीजेपी ने मोदी सरकार की उपलब्धियों को लोगों तक पहुंचाने के लिए जन आशिर्वाद यात्रा निकाली। ये पांच दिनों तक चली। इसका क्या परिणाम रहा ये 2024 का आम चुनाव ही बेहतर बता सकता है। जैसे राहुल गांधी की यात्रा का प्रभाव भी 2024 के चुनाव से जोड़कर देखा जाएगा।