बरखा ने लिखा है कि अधार्मिक होने के नाते वो किसी भी धर्म के दृष्टिकोण से कुछ कहने के लिए खुद को बहुत सक्षम नहीं पातीं लेकिन पिछले हफ्ते उनसे पूछा गया था कि अगर वो मुस्लिम होती तो कैसा लगता? बरखा के अनुसार ये सवाल उनकी आत्मा को कुरेदता रहा और उन्हें बेचैन करता रहा। बरखा ने अपने लेख में “अगर मैं मुसलमान होती” सवाल का जवाब देने से पहले कई सवालों पूछे हैं। बरखा ने पूछा है, “अगर देश के मौजूदा राजनीतिक विमर्श में मेरी आवाज नहीं सुनी जाती तो मुझे कैसा लगता क्योंकि अब मेरे बिना चुनाव जीतना संभव हो गया है?” या “जिस प्रदेश में मुसलमानों की भारी तादाद है वहां सत्ताधारी पार्टी के एक भी विधायक उम्मीदवार मुस्लिम नहीं था?”

बरखा ने लिखा है, “जुनैद की खून से लथपथ तस्वीर देखने के बाद क्या मैं ईद मना पाती?” ” पशु व्यापारी पहलू खान को भीड़ ने जिस तरह फुटपाथ के किनारे मार डाला उसे देखकर मैं खुद से क्या कहती?” “क्या मैं वायुसेना के जवाब मोहम्मद सरताज के उस उत्साह को साझा कर पाती जब उन्होंने कहा था कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा?” सरताज का भारतीय न्यायव्यवस्था पर यकीन तब भी बना रहा जब उनके पिता अखलाक अहमद की भीड़ ने बीफ की अफवाह पर हत्या कर दी।
बरखा ने अपने लेख में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कट्टरपंथी मुसलमानों और आतंकवादी संगठनों के बारे में सवाल पूछा है। बरखा ने लिखा है, “अगर मैं मुस्लिम होती तो मैं खुद को कितना असहाय महसूस करती जब कट्टरपंथी इस्लामिक और आतंकवादी मेरे मजहब का नाम खराब करते और मुझे उनके कृत्यों की निंदा करने को मजबूर होना पड़ता जैसे उनके जघन्य कृत्यों के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं?” बरखा ने हाल ही में कश्मीर में भीड़ द्वारा मस्जिद में पीट-पीट कर मार दिए पुलिस डीएसपी अयूब पंडित का मुद्दा भी उठाया है। बरखा ने लिखा है, “मैं बहादुर पुलिस अफसर अयूब पंडित के परिवार से क्या कहती जिन्हें शब-ए-क़द्र की पाक रात को एक मस्जिद के बाहर पीटकर मार डाला गया है। या मैं खूबसूरत नौजवान उमर फयाज की हत्या पर उनके परिवार से क्या कहती?” बरखा ने तीन तलाक को पुरातनपंथी और दकियानूसी बताया है। बरका ने पूछा है, “…मैं अपने धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों से कैसे निपटती?”
बरखा ने तमाम सवालों के बाद बताया है कि वो मुसलमान होने पर कैसा महसूस करतीं। बरखा ने लिखा है कि अगर वो मुसलमान होतीं तो उन सभी राजनीतिक दलों को देखकर हैरान होतीं जो उनका रहुनमा होने का दावा करत रहे हैं लेकिन उनका इस्तेमाल करके उन्हें अलग-थलग छोड़ दिया है। बरखा ने लिखा है कि अगर वो मुसलमान होतीं तो वो शाह बानो के बारे में सोचती जो अपने शौहर से गुजाराभत्ता पाने के लिए अदालत गईं लेकिन राजीव गांधी सरकार ने अदालत के फैसले को पलट दिया।
बरखा ने लिखा है कि अगर वो मुसलमान होतीं तो खुद को अपने देश से प्यार करने के लाखों कारण याद दिलातीं। बरखा ने लेख के अंत में लिखा है, “लेकिन जैसे मुझे हर बार याद दिलाया जाता कि मॉडरेट होने के कारण मुझे बोलना चाहिए, मैं पूछती कि क्या भारत की बहुत बड़ी मॉडरेट हिंदू आबादी मेरे लिए बोलेगी?”