भारत ने तत्काल प्रभाव से गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है। इसके पीछे खाद्य सुरक्षा का हवाला दिया गया है और इस हालात के लिए यूक्रेन युद्ध को जिम्मेदार माना गया है। हालांकि, भारत सरकार ने इससे पहले गेहूं का निर्यात बढ़ाने की बात कही थी। सरकार के ताजा निर्देश को लेकर दुनिया के कई देशों ने चिंता जताई है और कहा है कि इसका एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों पर बुरा असर होगा। शुक्रवार को विदेश व्यापार निदेशालय की तरफ से जारी नोटिस में कहा गया है कि दुनिया में बढ़ती कीमतों के कारण भारत एवं उसके पड़ोसी और संकट वाले देशों में खाद्य सुरक्षा को खतरा है। गेहूं का निर्यात रोकने की प्रमुख वजह है घरेलू बाजार में उसकी कीमतों का बढ़ना।
इस घोषणा के बाद कानपुर समेत कई मंडियों में गेहूं की कीमतें घटने की खबरें आईं। हालांकि, आशंका जताई जा रही है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें और ज्यादा बढ़ सकती हैं। इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 40 फीसद तक बढ़ चुकी है। भारत के कुछ बाजारों में इसकी कीमत 25,000 रुपए प्रति टन है, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 20,150 रुपए ही है।
सरकार ने कहा है कि अब सिर्फ उसी निर्यात को मंजूरी दी जाएगी, जिसे पहले ही लेटर आफ क्रेडिट जारी किया जा चुका है। इसके साथ ही उन देशों को भी निर्यात किया जाएगा, जिन्होंने भोजन की सुरक्षा की जरूरत को पूरा करने के लिए आपूर्ति जारी रखने का आग्रह किया है।
युद्ध शुरू होने से पहले यूक्रेन और रूस दुनिया भर में पैदा होने वाले गेहूं में एक तिहाई की हिस्सेदारी करते थे। पिछले दिनों युद्ध के कारण ना सिर्फ उनके उत्पादन पर असर पड़ा है, बल्कि निर्यात तो लगभग पूरी तरह से बंद हो गया। यूक्रेन के बंदरगाहों पर रूसी सेना की घेराबंदी है और बुनियादी ढांचे के साथ ही अनाजों के गोदाम भी युद्ध में तबाह हो रहे हैं।
दूसरी ओर, भारत में इसी वक्त गेहूं की फसल को अभूतपूर्व लू के कारण काफी नुकसान हुआ है और उत्पादन घट गया है। उत्पादन घटने की वजह से भारत में गेहूं की कीमत पहले ही अपने उच्चतम स्तर पर चली गई है। गेंहू के अंतरराष्ट्रीय खरीदारों को भारत से बहुत उम्मीदें थीं। हालांकि मध्य मार्च में अचानक बदले मौसम के मिजाज ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
जानकार आशंका जता रहे हैं कि इस साल उपज घट कर 10 करोड़ टन या इससे भी कम रह सकती है। सरकार ने इससे पहले उत्पादन 11.13 करोड़ टन रहने की उम्मीद जताई थी जो अब तक का सर्वाधिक है। सरकार की खरीद 50 फीसद से भी कम है, बाजारों को पिछले साल की तुलना में कम आपूर्ति है।
सरकारी एजंसियों की गेहूं खरीद इस साल घट कर 1.8 करोड़ टन पर आ गई है। यह बीते 15 साल में सबसे कम है। वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 4.33 करोड़ टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ज्यादातर खरीदारी अप्रैल से मध्य मई के बीच ही होती है ऐसे में सरकारी गोदामों में अब और ज्यादा गेहूं आएगा, इसकी उम्मीद न के बराबर है।
रेकार्ड निर्यात के बाद पाबंदी
दुनिया में बढ़ती कीमतों का फायदा उठाने के लिए भारत ने इस साल मार्च तक करीब 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया जो पिछले साल की तुलना में 250 फीसद ज्यादा है। अप्रैल में भारत ने रेकार्ड 14 लाख टन गेहूं का निर्यात किया और मई में पहले से ही 15 लाख टन गेहूं के निर्यात के सौदे हो चुके हैं।
वर्ष 2022-23 के लिए भारत ने एक करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य रखा था। भारत अपने गेहूं के लिए यूरोप, अफ्रीका और एशिया में नए बाजार खोजने की कोशिश में था। इसमें से ज्यादातर हिस्सा इंडोनेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड जैसे देशों को भेजा जाता। फिलहाल तो स्थिति बदल गई है। मौसम की समस्याओं के अलावा भारत के अपने अनाज भंडार पर भी दबाव बढ़ गया है।महामारी के दौर में भारत ने करीब 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांटा है और उसकी वजह से उसके भंडार में उतना अनाज नहीं है कि वह खुद को सुरक्षित महसूस करे।