सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में गुरुवार को 10वें दिन भी सुनवाई की। इस दौरान मूल याचियों में से एक के वकील ने विवादित स्थल में पूजा करने का उसका अधिकार लागू किए जाने का अनुरोध किया। मूल याचियों में शामिल गोपाल सिंह विशारद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने मालिकाना हक मामले की सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलीलें आरंभ कीं। न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी इस पीठ में शामिल हैं।
कुमार ने पीठ से कहा- मैं परासरण और वैद्यनाथन के अभ्यावेदनों के संदर्भ में अपना अभ्यावेदन दे रहा हूं कि यह जन्मस्थल अपने आप में एक दैवीय स्थल है और उपासक होने के नाते पूजा करना मेरा नागरिक अधिकार है जो छीना नहीं जाना चाहिए। दशकों पुराने विवाद के पक्षों में से एक पक्ष ‘राम लला विराजमान’ की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों के परासरण और सीएस वैद्यनाथन ने इससे पहले पीठ से कहा था कि अयोध्या में भगवान राम का जन्मस्थल अपने आप में एक दैवीय स्थल है और कोई भी महज मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कर इस पवित्र स्थल पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता।
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वैद्यनाथन ने पीठ से कहा कि न तो निर्मोही अखाड़ा और न ही मुसलिम पक्ष प्रतिकूल कब्जा के कानूनी सिद्धांत के तहत अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर स्वामित्व अधिकार का दावा कर सकते हैं। विशारद ने विवादित स्थल पर पूजा-अर्चना के अपने अधिकार को लागू करने की मांग करते हुए 1950 में मुकदमा दायर किया था। चार दीवानी मामलों में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि अयोध्या की 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बांटा जाए।